विश्व में इन दिनों हिजाब को लेकर दो घटनाएं प्रमुखता से ध्यानाकर्षित कर रही हैं और यह दोनों ही अपने आप में रोचक हैं। रोचक इसलिए हैं क्योंकि दोनों ही घटनाएं एक प्रवृत्ति को प्रदर्शित कर रही हैं। जहां एक ओर ईरान में मुस्लिम युवक एवं युवतियां इस आजादी के लिए अपना सर्वस्व तक बलिदान कर रहे हैं कि उन्हें जबरन हिजाब वाले मामले से दूर रखा जाए। वह यूरोप की ओर आशा भरी दृष्टि से ताक रहे हैं कि उन्हें कुछ तो राहत मिले और विश्व उनका साथ दे, तो वहीं यूरोप इस अवधारणात्मक आजादी को नकार कर कट्टरता के समक्ष घुटने टेकता हुआ दिखाई दे रहा है।
ईरान में लगातार इसी मामले पर फांसियों का दौर चालू है। आए दिन किसी न किसी युवक या युवती को मृत्यु दंड की सूचना इंटरनेट की हलचल बनती है। आए दिन पीड़ा की एक लहर जैसे तमाम बंधन तोड़कर चली जाती है। ईरान में जहां लड़कियां अपने मूलभूत इस अधिकार के लिए लड़ रही हैं कि उन पर जबरन हिजाब की बंदिश न थोपी जाए और इसके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े वह चुका रही हैं। वह झुक नहीं रही हैं। उनके साथ युवा पुरुष भी देश बदलने का सपना लेकर कीमत चुका रहे हैं। अभी 7 जनवरी को ही दो युवकों को मृत्युदंड दे दिया था। मसीह अलीनेजाद ने विश्व से गुहार लगाते हुए कहा था कि आज फिर से रक्त पिपासु इस्लामिस्ट सरकार ने ईरान में दो और निर्दोष आन्दोलनकारियों की हत्या कर दी। उन्होंने कहा था कि इन दोनों ही युवाओं ने ईरान में लोकतंत्र के लिए अपना जीवन खतरे में डाल दिया था। हमारी सहायता करें!
Dear world. Today, the bloodthirsty Islamist regime in Iran has executed 2 more innocent protesters:#MohammadMehdiKarami #MohammadHosseini
These innocent idealistic young men put their lives in danger for democracy in Iran. We are mourning as a nation. Help us save others pic.twitter.com/rpjH5GzkrR
— Masih Alinejad 🏳️ (@AlinejadMasih) January 7, 2023
महिलाओं को गिरफ्तार किया जा रहा है। ईरानी अभिनेत्री कतायूं रिआही “महिला, जीवन और आजादी” आन्दोलन का समर्थन करने के लिए सबसे पहले आगे आई थीं, और उन्हें भी 20 नवम्बर को हिरासत में ले लिया गया था। यहाँ तक कि ईरान की महिलाओं ने पश्चिमी देशों का समर्थन पाने के लिए लंदन में एक मौन आन्दोलन भी किया था। चुप रहकर ईरान की महिलाओं की स्थिति के विषय में बात की थी और साथ ही वैश्विक समर्थन भी माँगा था। उन्होंने कहा था कि विश्व इस प्रकार मौन नहीं रह सकता है। उन्हें आवाज उठानी ही होगी।
क्या उन्हें यह आशा थी कि पश्चिम उनकी बात सुनेगा? पश्चिम के अधिकारी उन्हें इस पीड़ा से मुक्त कराने के लिए कोई कदम उठाएंगे? क्या उन्हें यह क्षीण से आस थी कि ऐसे आन्दोलन उन्हें एक नई पनाह देंगे? और इस प्रकर चल रहे अत्याचारों को रोक देंगे?
जो भी हो रहा है, क्या वह ईरान का आंतरिक मामला है? क्या वह उन सभी लोगों का मामला नहीं है, जो मूलभूत आजादी के समर्थक हैं? क्या उन महिलाओं की चोटों पर बात भी न हो जो अपनी आने वाली पीढ़ियों की मूलभूत आजादी के लिए लड़ रही हैं? परन्तु कथित सभ्य माने जाने वाले पश्चिम के कई देश केवल इस कारण कहीं न कहीं इस मामले पर बोलने से बच रहे हैं कि उन पर इस्लामोफोबिक होने का आरोप न लग जाए? क्या ऐसी बात है? या फिर कुछ और! परन्तु पश्चिम में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे यह मूलभूत आजादी की आवाज लग रहा है सुनाई नहीं दे रही है। जहाँ एक ओर ईरान की महिलाएं इस जबरन हिजाब की नीति को लेकर अपना आक्रोश और दुःख प्रदर्शन कर रही हैं। तो वहीं ब्रिटिश एयरवेज़ ने ऐसा कदम उठाया जिसे देखकर यह कहा जा सकता है कि ईरान की उन तमाम महिलाओं के आंसुओं पर नमक छिड़का गया है। ब्रिटिश एयरवेज़ ने समावेशी कदम के नाम पर हिजाब को ही सम्मिलित कर लिया है। यह भी एक चौंकाने वाली बात है कि इंग्लैण्ड में वर्ष 2022 में पैदा हुए बच्चों में सबसे लोकप्रिय नाम मोहम्मद था।
ब्रिटिश एयरवेज़ की हिजाब में एयरहोस्टेस की छवि उन तमाम महिलाओं की पीड़ा और आक्रोश पर एक जोरदार तमाचा है, जो लगातार पश्चिम के लोगों से अपने संघर्ष के लिए और अपने साथ हो रहे अन्याय के विरोध में समर्थन मांग रही हैं। जहां ब्रिटेन में या अन्य देशों में कम से कम यह आवाज उठनी चाहिए कि क्यों मजहब के नाम पर लड़कियों को परदे में रखा जा रहा है और अफगानिस्तान में तो लड़कियों को बाहरी परिदृश्य से गायब ही कर दिया गया है तो वहीं ब्रिटिश एयरवेज़ ने जैसे शरिया के सामने अपने घुटने टेकते हुए हिजाब को ही अपनी यूनीफोर्म में सम्मिलित कर लिया।
क्या वहां पर लिया गया निर्णय भारत में चल रहे उस मजहबी कट्टरता के उस आन्दोलन को और तेजी से प्रभावित नहीं करेगा जो यहाँ पर स्कूलों में हिजाब पहनने के अधिकार को लेकर उग्रता से किया जा रहा है? क्या यह उन कट्टरपंथी तत्वों को और प्रोत्साहित नहीं करेगा जो हर कीमत पर लड़कियों को हिजाब में रखना चाहते हैं? जबकि ईरान में अपने सिर को खुला रखने की मूलभूत आजादी मांगने वाली तमाम महिलाएं बार-बार इस बात को कहती हैं कि हिजाब आजादी की बात नहीं करता, वह तो दरअसल महिलाओं का शोषण है। कई सेक्युलर और एक्स इस्लाम मानने वाली महिलाओं के लिए हिजाब और कुछ नहीं बल्कि यह याद दिलाने वाला उपकरण है कि इस्लाम उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक मानता है।
इस आशय के कई वीडियो नेट पर उपलब्ध हैं। परन्तु प्रश्न यहाँ पर यह है कि तमाम पीड़ाओं और ईरान में चल रहे आन्दोलन के कारण असमय जान गंवाने वाले आन्दोलनकारियों तथा साथ ही अफगानिस्तान में हिजाब और बुर्के के पीछे अस्तित्व हीन होती मुस्लिम महिलाओं के गुम होते अस्तित्व पर क्या ब्रिटिश एयरवेज़ की हिजाब वाली यूनीफोर्म एक भद्दा तमाचा नहीं है? rair फाउंडेशन ने एक नहीं कई वीडियो साझा किए हैं, जो इस्लामिक निगरानी पुलिस के आतंक को दिखाते हैं।
Sharia Police patrol the streets of London, harass women, gays, & non-muslims while threatening the overthrow of the UK & U.S. Governments! pic.twitter.com/JiGs0Xkcvv
— Amy Mek (@AmyMek) May 3, 2017
इस यूनीफोर्म के सामने आने के बाद से ही यह विडंबना सामने आने लगी है कि आखिर जिस परदे से बाहर आने के लिए कट्टर इस्लामिक देशों की महिलाएं जहां अपने प्राणों का बलिदान तक करने से नहीं हिचक रही हैं, वहीं उनके शवों पर अट्टाहास करते हुए ब्रिटिश एयरवेज़ दिखाई दे रही है।
प्रश्न तो उठता ही है कि क्या यह कट्टर इस्लामिस्ट तत्वों के प्रति समर्पण है या फिर कुछ और? क्योंकि जहां अभी तक जिहादी तत्वों को यह भय रहता था कि हिजाब को लेकर उनका संस्थागत विरोध होगा तो वहीं इस कदम ने उनके दिल से वह हिचक और फांस निकाल दी होगी और अब वह सहज होकर कह पाएंगे कि यह तो मुख्यधारा के सर्वस्वीकार्य वस्त्रों में से एक वस्त्र और पोशाक है।
मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में कई स्थानों पर हिजाब को लेकर गैर मुस्लिम महिलाओं पर भी जोर दिया जाने लगा है और उन्हें भी हिजाब के दायरे पर लाया जा रहा है। ऐसे में ब्रिटिश एयरवेज का यह निर्णय केवल मुस्लिम महिलाओं के शोषण का ही नहीं बल्कि हर उस महिला के शोषण का मार्ग प्रशस्त करेगा जो कथित रूप से मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके में रहती हैं! तभी इस निर्णय को लेकर विरोध अधिक है एवं ईरान तथा अफगानिस्तान की महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में यह अत्यंत पीड़ादायक निर्णय है।
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