जयंती विशेष : भारत की महान आध्यात्मिक विभूति महर्षि महेश योगी, जिन्होंने उत्तराखंड में ली धर्म की शिक्षा-दीक्षा
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जयंती विशेष : भारत की महान आध्यात्मिक विभूति महर्षि महेश योगी, जिन्होंने उत्तराखंड में ली धर्म की शिक्षा-दीक्षा

नीदरलैंड में महर्षि महेश योगी द्वारा चलाई गई राम नाम की मुद्रा को आज भी है कानूनी मान्यता

by उत्तराखंड ब्यूरो
Jan 12, 2023, 10:44 am IST
in भारत
महर्षि महेश योगी (फाइल फोटो)

महर्षि महेश योगी (फाइल फोटो)

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महर्षि महेश योगी भारत की महान आध्यात्मिक विभूतियों में से एक थे। उन्होंने भावातीत ज्ञान योग की खोज कर उसकी स्थापना की थी। भावातीत ज्ञान योग के माध्यम से उन्होंने सम्पूर्ण विश्व में मानवीय सेवा का जो महत्वपूर्ण कार्य किया, वह बहुत ही अमूल्य है। उन्होंने भारत के साथ सम्पूर्ण विश्व में भावातीत ज्ञान योग के साथ शैक्षिक संस्थाओं की भी स्थापना की थी। उनके द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थाओं में भारतीय सनातन संस्कृति में धर्म, आध्यात्म के साथ-साथ जीवन के व्यावहारिक मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है। महर्षि महेश योगी का नाम सम्पूर्ण विश्व में भारतीय वैदिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने हेतु उनका योगदान सदैव अमर रहेगा।

महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी सन 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम के पास ग्राम पांडुका में हुआ था। उनका मूल नाम महेश प्रसाद था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की उपाधि अर्जित की थी। तेरह वर्ष तक उन्होंने ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण की थी। महर्षि महेश योगी ने शंकराचार्य की उपस्थिति में रामेश्वरम में 10 हजार बाल–ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी थी। उन्होंने गुरु की आज्ञानुसार समस्त विश्व में वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा उठाया था। उन्होंने हिमालय के बद्रीकाश्रम तथा ज्योर्तिमठों में रहकर ध्यान और योग की कठिन साधना की थी। हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष का कठोर मौन व्रत धारण करने के पश्चात उन्होंने सन 1955 में भावातीत ज्ञान योग (टीएम तकनीक) की शिक्षा देना प्रारम्भ किया था। उन्होंने दिसम्बर सन 1957 में आध्यात्मिक पुनरुत्थान कार्यक्रम शुरू किया था, इसके लिये विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। महर्षि महेश योगी ने सन 1961 में उत्तराखण्ड के ऋषिकेश में अपना प्रथम अंतरराष्ट्रीय शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किया, जहां भारत, कनाडा, डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, मलाया, नॉर्वे, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ग्रीस, इटली और पश्चिम सहित कई देशों के योग–ध्यानी उपस्थित थे।

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महर्षि महेश योगी द्वारा चलाये गए भावातीत ज्ञान योग आंदोलन ने उस समय अधिक जोर पकड़ा जब अंतरराष्ट्रीय रॉक ग्रुप ‘बीटल्स’ ने सन 1968 में ऋषिकेश स्थित उनके आश्रम का दौरा किया था। महर्षि महेश योगी के शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर आध्यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा तक शामिल रहे। महर्षि महेश योगी का ट्रेसडेंशल मेडिटेशन अर्थात भावातीत ध्यान योग पूरी पश्चिमी दुनिया में बेहद लोकप्रिय हुआ था। भावातीत ध्यान योग से आकर्षित होकर हालीबुड की प्रसिद्ध फिल्म स्टार मिया फारो ने महर्षि महेश को अपना गुरु बना लिया था। उन्होंने वेदों में निहित ज्ञान पर अनेक पुस्तकों की रचना की थी। उन्होंने भारत के दक्षिण राज्यों में मुख्यत: आध्यात्मिक विकास केन्द्र की स्थापना की थी। महर्षि महेश योगी ने अपनी शिक्षाओं और उपदेशों के प्रचार–प्रसार के लिये आधुनिक तकनीकों का सहारा लेते थे। उन्होंने महर्षि मुक्त विश्वविद्यालय स्थापित किया जिसके माध्यम से ‘आनलाइन’ शिक्षा दी जाती है।

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महर्षि महेश योगी के दर्शन का मूल आधार था ‘जीवन परम आनंद से भरपूर है और मनुष्य का जन्म इसका आनंद उठाने के लिए हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति में ऊर्जा, ज्ञान और सामर्थ्य का अपार भंडार है तथा इसके सदुपयोग से वह जीवन को सुखद बना सकता है’। उन्होंने सन 1975 में स्वीटजरलैण्ड में महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी स्थापना की थी। सन 1990 में हॉलैंड के व्लोड्राप गाँव में अपनी सभी संस्थाओं का मुख्यालय बनाकर स्थायी रूप से वहीं पर बस गए और वहीं से ही संगठन से जुड़ी गतिविधियों का संचालन करते थे। पश्चिम देशों में जाकर उन्होंने “रासायनिक द्रव्यों के कुप्रभाव के साथ-साथ पदार्थवादी सभ्यता से बचने और ध्यान पद्धति के द्वारा मादक द्रव्यों के सेवन के बिना किस तरह तनाव पर विजय प्राप्त की जा सकती है, इसका व्यावहारिक रूप उन्होंने प्रस्तुत किया था”। पश्चिम देशों के वैज्ञानिकों को उन्होंने सिद्ध कर दिखाया कि भावातीत ध्यान योग से किस तरह मनुष्य को शान्ति प्राप्त होती है और इसके माध्यम से बुद्धि, ज्ञान तथा योग्यता की क्षमताओं में वृद्धि होती है”। विश्वशान्ति, विश्वबन्धुत्व, पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति, वैदिक शिक्षा का प्रचार, भावातीत ध्यान योग के महत्त्व को संसार में फैलाना उनका प्रमुख उद्देश्य था। वैदिक शिक्षा के माध्यम से आदर्श व्यक्ति, समस्याहीन, रोगहीन, दु:खविहीन, संघर्षविहीन, आदर्श समाज, आदर्श भारत का निर्माण करते हुए भारत सहित समस्त विश्व में दिव्य जागरण लाना उनका ध्येय था। विश्वभर में फैले लगभग 60 लाख अनुयाईयों के माध्यम से उनकी संस्थाओं ने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और प्राकृतिक तरीके से तैयार हर्बल दवाओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया था।

महर्षि महेश योगी की भावातीत ध्यान योग साधना एवं वैदिक शिक्षा की महत्त्वपूर्ण विशेषता प्राचीन भारतीय शिक्षा के साथ-साथ पाश्चात्य शिक्षा का इसमें अनूठा समन्वय करना है। मनुष्य अपनी समस्त शक्तियों को भावातीत ज्ञान योग के माध्यम से एकीकृत चेतना में समाहित कर पूर्ण शान्ति और विकास को प्राप्त हो सकता है। महर्षि महेश योगी ने अपनी शिक्षाओं, ज्ञान के लिए एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करने, अध्ययन के विविध क्षेत्रों को एकीकृत करने के लिए वैज्ञानिकों, शिक्षकों और वैदिक ज्ञान के प्रतिपादकों के साथ अथक परिश्रम किया था। उन्होंने अनेकों किताबें लिखीं, विश्व के प्रमुख व्यक्ति और नेताओं से वार्ता की और व्यापक रूप से व्याख्यान प्रस्तुत किया था।

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महर्षि महेश योगी ने राम नाम से एक मुद्रा की स्थापना की थी। उनकी मुद्रा राम को नीदरलैंड में क़ानूनी मान्यता प्राप्त है। राम नाम की इस मुद्रा में चमकदार रंगों वाले एक, पाँच और दस के नोट प्रचलन में हैं। मुद्रा राम को महर्षि महेश योगी की संस्था ग्लोबल कंट्री ऑफ वर्ल्ड पीस ने अक्टूबर सन 2002 में जारी किया था। डच सेंट्रल बैंक मुद्रा राम के उपयोग को क़ानून का उल्लंघन नहीं मानता है। बैंक के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया था कि इस मुद्रा राम के सीमित उपयोग की अनुमति ही दी गई है। अमेरिकी राज्य आइवा के महर्षि वैदिक सिटी में भी राम मुद्रा का प्रचलन है। वर्तमान में 35 अमेरिकी राज्यों में राम पर आधारित बॉन्डस चलते हैं। नीदरलैंड की डच दुकानों में एक राम के बदले दस यूरो मिल सकते हैं। डच सेंट्रल बैंक के प्रवक्ता का कहना है कि इस वक्त कोई एक लाख राम नोट चल रहे हैं। महर्षि महेश योगी ने तीन अंतरराष्ट्रीय भावातीत राजधानियों में स्वीटजरलैण्ड में सीलिसबर्ग, न्यूयार्क में साउथ फाल्सबर्ग और ऋषिकेश में शंकराचार्य नगर की स्थापना की थी। उन्होंने नयी दिल्ली के पास नोएडा में महर्षि नगर तथा आयुर्वेद विश्वविद्यालय और वैदिक विज्ञान महाविद्यालय की भी संकल्पना की थी। सम्पूर्ण विश्व के 150 स्थानों पर 4 हजार से अधिक केन्द्र उनकी संस्थाओं द्वारा संचालित हो रहे हैं।

नीदरलैंड के स्थानीय समय के अनुसार व्लोड्राप में स्थित आश्रम में 5 फरवरी सन 2008 की देर रात उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। मृत्यु पूर्व महर्षि महेश योगी ने ये कहते हुए अपने आपको सेवानिवृत्त घोषित कर दिया था कि उनका काम पूरा हो गया है और अपने गुरु के प्रति उनका जो कर्तव्य था उन्होंने वह पूरा कर दिया है।

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