आज जनसंख्या का पहलू भारत के पक्ष में है और आईसीटी सेक्टर के लिहाज से भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। अब भविष्य ही बताएगा कि हम इसका कितना लाभ उठा सकेंगे
माइक्रोसॉफ़्ट के एक सालाना वैश्विक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए मैं 2016 में ओरलैंडो (मियामी, अमेरिका) गया था। विमान यात्रा के दौरान एक सहयात्री से, जो किसी बहुराष्ट्रीय निगम में बड़े अधिकारी थे और कई बार भारत भी आ चुके थे, चर्चा होने लगी। वे भारत के आलोचक प्रतीत हुए। मैंने अक्सर अमेरिका जैसे देशों में भारत को ‘तीसरी दुनिया का देश’ के रूप में संबोधित किए जाते हुए देखा है और ऐसे हर मौके पर मैं संबंधित व्यक्ति को टोकता हूं कि महाशय, आप किस किले में बंद रहते हैं? अखबार-वखबार पढ़ते हैं या नहीं? सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं या नहीं? क्योंकि आप आज के दौर की हकीकतों से कटे हुए हैं। आज का भारत आपकी पसंदीदा छवि को तोड़कर बाहर निकल चुका है और चांद से लेकर मंगल तक जा पहुंचा है!
तो वे सज्जन कहने लगे कि मैंने भारत में बहुत पिछड़ापन देखा है। वहां अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। आप एक नजर अमेरिका के पुलों, सड़कों, गाड़ियों, गगनचुंबी इमारतों पर डालिए और फिर अपने मुंबई या दिल्ली को देखिए, खुद समझ जाएंगे कि विकास कहां है। यहीं मैंने उन्हें पकड़ लिया-यही तो फर्क है भारत और अमेरिका में या भारत और अन्य विकसित देशों में। आपको जो करना था, वह कर चुके हैं और अब ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश नहीं है। आपका बाजार ठहराव पर है। लेकिन हम हिंदुस्थानियों ने वह सब करना शुरू किया है। हमारे यहां विकास, अवसर, मांग और महत्वाकांक्षाओं का दौर है। हम खरीद रहे हैं, आपूर्ति कर रहे हैं, निर्माण कर रहे हैं। तो आप ही बताएं कि अवसर कहां पर हैं, आपके देशों में या हमारे देश में?
आज का भारत दुनिया में अवसरों की राजधानी है। कुछ साल पहले तक चीन था। कोविड के बाद चीन की अर्थव्यवस्था उतार पर है और आईसीटी में भी उसका असर दिख रहा है। वैसे चीन ने सूचना और संचार प्रौद्योगिकी में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है जो आश्चर्यजनक भी है और उसमें हमारे सीखने के लिए भी बहुत कुछ है। लेकिन अब लगता है कि अपने चरम को पाने के बाद वे थम गए हैं। भारत, जहां अवसर पहले से मौजूद हैं, के लिए हमारे कामयाब पड़ोसी के यहां आया धीमापन नए अवसर पैदा करेगा। ऐपल जैसी कुछ कंपनियां अपनी विनिर्माण इकाइयों को चीन से भारत जैसे देशों में स्थानांतरित कर रही हैं।
भारत का संख्याबल हमारे भविष्य को तय करने वाला महत्वपूर्ण कारक है। सन् 2023 में हम आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़कर दुनिया में पहले नंबर पर आ जाएंगे। इतना ही नहीं, हमारी 65 प्रतिशत आबादी 35 साल या उससे कम उम्र के युवाओं की है जो कि उत्पादकता, जोश, नवाचार, नियोजन (योजना बनाने) और जोखिम लेने की उम्र है। दूसरी तरफ चीन, जापान और अमेरिका समेत दुनिया के दिग्गज देशों में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है। बुजुर्ग आबादी सुरक्षा की तलाश करती है। अपने धन को भविष्य के लिए सहेजकर रखना पसंद करती है। अर्थव्यवस्था के चक्र को चलाने में युवाओं की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है।
1970 के दशक की शुरुआत से आर्थिक-राजनैतिक-सामाजिक बदलावों के संदर्भ में एक शब्द अक्सर इस्तेमाल किया जाता रहा है- डेमोग्राफी इज डेस्टिनी (जनसांख्यिकी ही भाग्य है)। कुछ लोगों का मानना है कि 19वीं शताब्दी में ‘सकारात्मकता के दर्शन’ के प्रवर्तक फ्रांसीसी दार्शनिक आगस्टे कॉम्टे ने इस अभिव्यक्ति का प्रयोग किया था जिसके मायने यह हैं कि किसी देश की जनसंख्या का आकार और उसकी संरचना (आयु, लिंग आदि के आधार पर) मोटे तौर पर उस देश के भविष्य को निर्धारित करते हैं। आज जनसंख्या का पहलू भारत के पक्ष में दिखाई देता है और आईसीटी सेक्टर के लिहाज से भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। हालांकि हम सचमुच इसका कितना लाभ उठा सकेंगे, यह भविष्य ही बताएगा।
हमारे पड़ोस में चीन ने आर्थिक तरक्की सुनिश्चित करने के लिए अपनी जनसंख्या का अच्छा उपयोग किया था, जिसे जनसांख्यिक लाभ कहा जाता है। क्या भारत भी ऐसा कर सकेगा? चीन और भारत की राजनैतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों में बहुत अंतर है।
लोकतंत्रविहीन चीन में योजनाएं, नीतियां, रोडमैप आदि बनाना और उन्हें लागू करना अपेक्षाकृत आसान है। वहां चीजें एक निरंतरता में चल सकती हैं। वहां नागरिकों को स्वेच्छा से नहीं तो बलपूर्वक एक दिशा में काम करने के लिए विवश किया जा सकता है। लेकिन भारत में न तो ऐसी परंपरा है और न ही मानसिकता। तो फिर भारत वर्तमान परिस्थितियों का लाभ कैसे उठाए?
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट इंडिया में ‘निदेशक-भारतीय भाषाएं
और सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं।)
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