देश को जोड़ने की शुरुआत मन को जोड़ने से होती है। मन से विचार और विचार से राष्ट्र जुड़ता है तो राष्ट्र आगे बढ़ता है। यह शुरुआत अटल जी ने सुशासन के जरिए की थी। हमें उनके विचारों को आधुनिक स्वरूप में लाने के लिए मंथन करना चाहिए। प्रस्तुत है पाञ्चजन्य के सागर मंथन-सुशासन संवाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु के वक्तव्य पर आधारित आलेख
अटल जी कवि थे, नेता थे, वक्ता थे। इसके साथ ही वे पत्रकार थे, पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक थे। अटल जी ने इन अलग-अलग भूमिकाओं का जो निर्वहन किया, उनमें समानता क्या है? इसके पीछे चिंतन यही था कि समाज, भारत, हमारी संस्कृति, हमारी हजारों साल से चली आ रही पहचान, उसको किस तरह आगे बढ़ाया जाए। उन्होंने एक पत्रकार के रूप में कलम हाथ में ली तो इसी कारण से ली। नेता के नाते मंच पर आए तो इसी के कारण आए। जब अवसर मिला कि सरकार बनानी चाहिए तो उन्होंने सरकार भी इसीलिए बनाई कि हम किस तरह से सुशासन के द्वारा समाज को बनाएं। मैं विद्वान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने सुशासन दिवस की शुरुआत की।
देश जोड़ने की शुरुआत
देश को जोड़ने का काम अटल जी ने किया। भारत जोड़ो यात्रा उस समय से जारी है। सही मायने में भारत जोड़ो की शुरुआत मन को जोड़ने से होती है। मन को जोड़ने के लिए विचार के साथ मन को जोड़ना चाहिए और राष्ट्र को किस तरह आगे लाना है, विचार उससे भी जोड़ना चाहिए। तो जोड़ने की शुरुआत अटल जी ने बहुत पहले से कर दी थी। जनसंघ इसीलिए बनाया गया था। बाद में भाजपा की स्थापना हुई। इन सभी में समानता है कि व्यक्ति को समाज के साथ और समाज को राष्ट्र के साथ जोड़ना चाहिए। तो सही मायनों में जोड़ने की शुरुआत अटल जी ने सुशासन के जरिए की थी।
सुशासन कैसा हो, यह इस उदाहरण से समझा जा सकता है। तेरह दिन की सरकार गिरी। तब अटल जी ने कहा था कि हम वापस आएंगे और आ भी गए। वह सरकार 13 महीने में चली गई, एक वोट के कारण। एक वोट से सरकार गिर गई। उसमें उस समय के ओडिशा के मुख्यमंत्री कांग्रेस के गिरिधर गोमांग ने वोट डाला। वैसे तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी। अब वोट देना तकनीकी रूप से भले सही हो, लेकिन नैतिक रूप से सही था या गलत, यह उनके विचार पर निर्भर करता था। लेकिन उस समय कई सारे सांसद थे जो कुछ सौदा बनता तो मदद करने के लिए तैयार थे।
अपने 6 दशक के राजनीतिक जीवन में अटल जी ने जो सबसे बड़ा काम किया, वह था सुशासन। देश सुशासन के जरिए ही बढ़ सकता है। सुशासन होने पर ही समाज का सरकार के प्रति जुड़ाव होगा। इसीलिए सुशासन के जरिए देश और समाज को आगे लाने में अटल जी ने अपना पूरा जीवन व्यतीत किया।
अटल जी ने कहा, हम बिल्कुल मदद नहीं लेंगे। हमारी सरकार जाती है, कोई चिंता नहीं लेकिन हमने सरकार इसलिए नहीं बनाई थी कि हम सत्ता में रहें। हमने सरकार इसलिए बनाई थी कि हम सुशासन के जरिए समाज को उभारने के लिए काम करें। हमने सत्ता का त्याग किया। मैं उसका गवाह हूं, मैंने वह सब बहुत नजदीक से देखा। बाद में अटल जी की सरकार वापस आई और उन्होंने कई मायनों में सुशासन की सही शुरुआत की।
क्या है सुशासन
हम कहते हैं सुशासन। यह सुशासन क्या होता है? जैसे कि सब कुछ देखा जा सकता है, शरीर को, चेहरे को, आंख को, हाथ को, पैर को। पर कुछ चीजें हैं जो प्रत्यक्ष नहीं दिखतीं जैसे मस्तिष्क, हृदय या कुछ अन्य अंग, लेकिन इन्हें डॉक्टर मशीनों के जरिए देख सकते हैं। परन्तु मन को नहीं देखा जा सकता। और, यह मन ही सबको चलाता है। जो दिखता नहीं, वह इतना ताकतवर होता है कि उसके कारण सब चलता है। यह गवर्नेंस ऐसी ही चीज है। सरकार दिखाई देती है, मंत्री दिखाई देते हैं, सचिव दिखाई देते हैं। यह सरकार दिखने वाली चीज है। लेकिन उसको चलाने वाली जो चीज है, वह गवर्नेंस है, वह दिखती नहीं है। वह सुशासन या कुशासन, जो भी हो, उसके कारण यह पूरी यात्रा चल सकती है। कुशासन होगा तो सबकुछ खत्म हो जाएगा। सुशासन होगा तो सागर मंथन होगा, उससे कुछ अच्छा ही निकलेगा।
इस तरह अटल जी ने जब सरकार में थे तो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को साथ में लाने के लिए सुशासन द्वारा और जब विपक्ष में थे तो सुशासन लाने के लिए सरकार पर दबाव डालते हुए काम किया। अपने 6 दशक के राजनीतिक जीवन में अटल जी ने जो सबसे बड़ा काम किया, वह सुशासन था। देश सुशासन के जरिए ही आगे बढ़ सकता है। समाज और सरकार में जो दूरी दिखती थी, उसका कारण था सुशासन न होने के कारण समाज का सरकार के प्रति जुड़ाव न होना। इसीलिए सुशासन के जरिए देश और समाज को आगे लाने में अटल जी ने अपना पूरा जीवन व्यतीत किया।
देश के हर व्यक्ति में शक्ति
इसीलिए आज हमें यह सोचना चाहिए कि एक विचार मंथन हो और उस मंथन द्वारा सुशासन और और आगे बढ़ने के बारे में चिंतन करना चाहिए। यदि सिर्फ सुशासन होगा तो और कुछ करने की जरूरत ही नहीं होगी। हमारे देश में हर व्यक्ति के पास बहुत बड़ी शक्ति है। वह शक्ति बाहर से दिखती नहीं है। सही मायने में जो शक्ति होती है, वह उसके अंदर होती है यानि आध्यात्मिक शक्ति। उस आध्यात्मिक शक्ति से ही व्यक्ति की पहचान होनी चाहिए। यह आध्यात्मिक शक्ति हमारे देश में बहुत है। लेकिन उसे बाहर आने का मौका ही नहीं मिलता क्योंकि शक्ति के पुंज पर सरकार की नियंत्रण है। इसीलिए यदि सुशासन होगा तो यह शक्ति सकारात्मक दिशा में जाएगी। कुशासन होगा तो नकारात्मक दिशा में जाएगी। इसीलिए अटल जी ने सुशासन की बात की थी, जिसके जरिए हमारा पूरा समाज आगे आ सकता है।
विचारों का आधुनिक स्वरूप जरूरी
हमने आचार्य चाणक्य को तो देखा नहीं, भगवान कृष्ण को नहीं देखा। एन.टी. रामाराव ने कई फिल्मों में कृष्ण की भूमिका निभाई थी तो लोगों को लगता था कि कृष्ण जी ऐसे ही रहें होंगे। इतनी सदियों के बाद आज भी हम चाणक्य के विचार पर क्यों चलना चाहते हैं, क्या थे उनके विचार? उनके हर विचार का एक ही मायना था कि सुशासन करें। सुशासन का मतलब चुपचाप बैठना नहीं है। अपना बल दिखाएं। यदि कोई देश के साथ, समाज के साथ गलत हरकत करता है, तो उसका भी सामना करें। ये सब विचार, जो उस समय से चलते आए थे, उनको आज की राजनीति में नया रूप देने का काम अटल जी ने किया। चाणक्य के विचारों को आधुनिक स्वरूप में समाज के सामने सरकार के द्वारा पेश करने का कार्य यदि किसी ने किया है तो वह अटल जी थे। लेकिन मैंने यदि चाणक्य के विचारों को हम आज के स्वरूप में परिवर्तित नहीं करेंगे तो हमें लाभ नहीं होगा। इस तरह अटल जी के विचारों को भी हमें आधुनिक स्वरूप में लाना है।
हमारे देश में हर व्यक्ति के पास बहुत बड़ी शक्ति है। यदि सुशासन होगा तो यह शक्ति सकारात्मक दिशा में जाएगी। कुशासन होगा तो नकारात्मक दिशा में जाएगी। इसीलिए अटल जी ने जो सुशासन की बात की थी, सिर्फ उस सुशासन के जरिए ही हमारा पूरा समाज आगे आ सकता है
अटल जी ने आज से 50-60 वर्ष पहले जो विचार दिया था, उसे समाज के आज के स्वरूप में लागू करने के लिए क्या करना चाहिए? इस विचार मंथन में हम सोचेंगे कि आज और क्या करना चाहिए। चाणक्य हों, अटल जी हों, उन्होंने हमें जो दिशा दी थी, उसे लागू करके आज समाज को सही दिशा देने के लिए, बदलाव लाने के लिए, समाज की क्षमता को पूरी मात्रा में देश के सामने लाने के लिए, उसका इस्तेमाल करने के लिए हमें आज इस मंथन की जरूरत है। हमारे शास्त्रों में, हमारी संस्कृति में सागर मंथन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। सागर मंथन से अमृत निकलने के बाद उसे ग्रहण कर हम आगे बढ़े। मुझे विश्वास है कि इस कार्यक्रम में हम जरूर समाज को आगे ले जाने पर विचार करेंगे।
वैश्विक चिंताएं, भारत का दायित्व
आज विश्व की स्थिति सही मायने में बहुत ही चिंताजनक है। रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त होता नजर नहीं आ रहा। जब यह शुरू हुआ था तो रूस के राष्ट्राध्यक्ष पुतिन ने कहा था कि यह स्पेशल आॅपरेशन है। अब वे बता रहे हैं कि यह युद्ध है। जल्द ही इसे शुरू हुए एक वर्ष हो जाएगा। उसके आगे क्या होगा, उसके बारे में हम सभी चिंतित हैं, क्योंकि उसका असर हमारे ऊपर भी होगा, सबके ऊपर होगा। आज युद्ध किसी स्थान विशेष की समस्या नहीं है, उसका असर पूरे विश्व पर पड़ सकता है।
आज उन दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं। लेकिन यूक्रेन को पूरी ताकत अमेरिका दे रहा है। कुछ समय पहले जब यूक्रेन के राष्ट्रपति वाशिंगटन डीसी गए थे, तो अमेरिका ने उसे एक बड़ा पैकेज देने की बात कही थी। कुछेक दिन पहले ही अमेरिकी संसद ने 40-45 बिलियन डॉलर का पैकेज देने की बात की है। और ताकत मिलेगी तो युद्ध और चलेगा। इसके अलावा कोविड दुबारा सर उठा रहा है। यह बड़ी चिंता की बात है। विश्व की आर्थिक स्थिति भी डावांडोल है।
इन सभी चिंताओं को दूर करने के लिए एक ही रास्ता हो सकता है कि सही विचार पर चलें। सही विचार क्या होगा? जो देश हजारों वर्षों से दुनिया को रास्ता दिखाता रहा है, उसकी जिम्मेदारी है। केवल हमारी नहीं, बल्कि विश्व के लोगों की चिंता दूर करने के लिए भारत, भारतीयों की यह जिम्मेदारी है। विचार भी सही होने चाहिए। हमारे देश से जो विचार निकले हैं, उन पर भी मंथन होना चाहिए। फिर वह बेहतर होकर आगे बढ़ेगा तो चिंताएं दूर होंगी।
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