स्वतंत्र भारत के इस मन्दिर की नींव में पड़े हुए असंख्य पत्थरों को कौन भुला सकता है, जो स्वयं स्वाहा हो गए किन्तु भारत के इस भव्य और स्वाभिमानी मंदिर की आधारशिला बन गए हैं। स्वतंत्र भारत की नींव के एक ऐसे ही गुमनाम पत्थर के रूप में सम्पूर्ण भारत के साथ उत्तराखण्ड में भी स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांति की अलख जगाने वाले देवभूमि हरिद्वार में जन्में क्रान्तिकारी रामस्वरुप आर्य प्रजापति थें।
जन्म – 9 अप्रैल सन 1904 ग्राम रोहालकी किशनपुर, बहादराबाद, हरिद्वार, उत्तराखंण्ड़.
देहावसान – 31 दिसंबर 2010 ग्राम रोहालकी किशनपुर, बहादराबाद, हरिद्वार, उत्तराखंण्ड़.
भारत के स्वंतत्रता प्राप्ति संग्राम की उत्तराखण्ड में क्रांति के महान क्रान्तिकारी रामस्वरुप आर्य प्रजापति जिन्होंने देवभूमि हरिद्वार में आजादी के महासमर की चिंगारी जलायी थी। जिनका केवल नाम लेने मात्र से युवकों में राष्ट्रभक्ति जागृत हो जाती थी। रामस्वरुप आर्य प्रजापति भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति संग्राम के आंदोलन में भाग लेने के कारण पहले दो वर्ष सन 1939 से सन 1941 तक कठोर कारावास का दण्ड भोगने के तत्पश्चात तीन वर्ष सन 1942 से सन 1945 तक ब्रिटिश सरकार द्वारा नजरबंद रहे थे।
संदर्भ – राजा विजय सिंह स्मारक, कुंजा बहादरपुर, रुडकी, हरिद्वार, उत्तराखंड के संग्रहालय की चित्र दीर्घा से प्राप्त जानकारी के अनुसार।
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