उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण को रद्द करते हुए तत्काल चुनाव कराने का आदेश दिया है।
जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने यह फैसला ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया। हाई कोर्ट ने 87 पेज के अपने फैसले में कहा है कि बिना ट्रिपल सर्वे के भी चुनाव हो सकता है। कोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण के जल्द से जल्द चुनाव सम्पन्न कराने के आदेश दिए हैं।
जानिए क्या कहा सीएम योगी ने
वहीं हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बयान जारी कर कहा है कि प्रदेश सरकार नगरीय निकाय चुनाव के लिए आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। इसके बाद ही निकाय चुनाव सम्पन्न कराया जाएगा। यदि आवश्यक हुआ तो राज्य सरकार उच्च न्यायालय के निर्णय के क्रम में तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार करके सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी करेगी।
क्या है ओबीसी आरक्षित कोटा ?
ओबीसी के लिए आरक्षित 27 प्रतिशत कोटे में संपन्न पिछड़ी जातियों में यादव, अहीर, जाट, कुर्मी, सुनार और चौरसिया जैसी जातियां आती हैं। इन्हें 7 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई है। इसके बाद अति पिछड़ा वर्ग में गिरी, गुर्रज, गोसाईं, लोधी, कुशवाहा, कुम्हार, माली, लोहार समेत 65 अन्य जातियों को 11 प्रतिशत आरक्षण और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग में मल्लाह, केवट, निषाद, राई, गद्दी, घोसी, राजभर जैसी 95 जातियां जिन्हें 9 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की गई है।
जानिए रिजर्व सीटों का निकाय चुनाव में आंकड़ा
उत्तर प्रदेश के अंदर 762 शहरी निकाय हैं, इसमें से 17 म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, 200 नगरपालिका परिषद और 545 नगर पंचायत हैं। 762 शहरी निकाय की कुल आबादी करीब करीब 5 करोड़ है। 17 म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में से 2 सीटें अनुसूचित जाति यानि एससी के लिए आरक्षित हैं। इसमें से भी एक सीट अनुसूचित जाति की महिला उम्मीदवार के लिए आरक्षित है जिसमें आगरा की सीट आती है। इसके अलावा 4 मेयर की सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित हैं।
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