श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के बलिदानी साहिबजादों को सम्मान देने के लिए प्रधानमंत्री ने 9 जनवरी, 2022 को वीर बाल बलिदान दिवस मनाने की घोषणा की। इस पहल का जोरदार स्वागत हो रहा है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ जश्न के एक हिस्से के रूप में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। यह गुरु गोबिंद सिंह जी के वीर पुत्रों को उनके सर्वोच्च बलिदान और बहादुरी के प्रति श्रद्धांजलि है। प्रधानमंत्री मोदी ने सतगुरु के पुत्रों की याद में इस दिन को समर्पित कर भारत की जनता को जगाया है और हिंदवासियों को उनके बलिदान को याद करने का संदेश दिया है एवं पहली बार इस सर्वोच्च बलिदान को देश के समक्ष लाने का सार्थक प्रयास किया है। इससे निश्चित ही बच्चों में अपने कर्तव्य पथ के समर्पण का भाव जाग्रत करने में मदद मिलेगी।
सिख और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले चार साहिबजादों की याद में 21 से 27 दिसंबर का सप्ताह बलिदानी सप्ताह के तौर पर मनाया जाता है। साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन धर्म पर आंच नहीं आने दी। आमतौर पर देश, धर्म और संस्कृति के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने वालों की सूची में कई नाम दर्ज हैं, लेकिन बच्चों द्वारा दिए गए सर्वोच्च बलिदान के उदाहरण इतिहास में विरले ही देखने को मिलते हैं। साहिबजादों द्वारा दिया गया यह बलिदान एक ऐसा ही उदाहरण है। 300 से ज्यादा वर्ष का समय बीत चुका है, लेकिन अगर इस बलिदान को देशव्यापी स्तर पर उतना याद नहीं किया गया। सिख समुदाय को छोड़ दें तो बाकी लोगों को इसके बारे में कम ही जानकारी है।
हमारा देश अपने भीतर समृद्ध संस्कृति और ऐतिहासिकता को संजोए हुए है। लेकिन आजादी के बाद जब देश के इन पहलुओं को जनमानस के बीच प्रसारित करने का समय था, तब उसे लेकर नीरसता दिखाई गई। जो बाल वीर हमारे देश के बच्चों के प्रेरणास्रोत होने चाहिए थे, उनके बारे में बच्चों को न के बराबर जानकारी है। उसके अभाव में वीरता के संदेश इतिहास के पन्नों में दबे हुए हैं और उनको जितना महत्व दिया जाना चाहिए था, उतना नहीं दिया गया।
प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी एक ऐसा ही प्रयास शुरू किया है, जिससे हम उन बाल शहीदों को याद कर प्रेरणा ले सकें, जिन्होंने अपने बचपन को देश के नाम सर्वोच्च बलिदान देकर आज के भारत की नींव रखी। आयोग समय-समय पर ऐसे सभी बाल वीरों पर प्रदर्शनी का आयोजन कर रहा है, जिन्होंने देश की आजादी में अपना योगदान दिया, जिन पर चर्चा नहीं की जाती। अगर हम बच्चों के बलिदान को याद नहीं रखेंगे तो यह उनके साथ हमारी पीढ़ी द्वारा किया जा रहा घोर अन्याय होगा। ऐसे में वर्तमान में सरकार द्वारा इस दिशा में किया यह एक सराहनीय प्रयास है
उल्लेखनीय है कि साहिबजादों ने इस्लाम न कबूलने और अपने धर्म के संरक्षण के लिए बलिदान दिया। आज के बच्चों और युवाओं को अपने धर्म और संस्कृति के प्रति ऐसी ही प्रतिबद्धता की जरूरत है, जिससे वे अपनी संस्कृति को संरक्षित कर देश के विकास को दिशा दे सकें। आज भी देश में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो किसी न किसी रूप में बच्चों के कन्वर्जन की गतिविधियों में संलग्न हैं। फर्क इतना है कि पहले यह कार्य जबरन कराया जाता था, किंतु अब इसका स्वरूप बदल चुका है। आज शिक्षा तथा अन्य प्रलोभनों के माध्यम से बच्चों को कन्वर्जन के लिए राजी किया जा रहा है। आजाद भारत में भी इस तरह की गतिविधियां जारी रहना सीधे-सीधे बच्चों को उनके संवैधानिक अधिकारों और संस्कृति से विमुख करने का षड्यंत्र है, जिसे तत्काल रोकने की आवश्यकता है।
ऐसे में बच्चों को कन्वर्जन से बचाने के लिए तंत्र को मजबूत कर ऐसे प्रेरणास्रोतों को बच्चों और समाज के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ेगा, जिन्होंने न सिर्फ विदेशी आक्रांताओं का डटकर सामना किया, बल्कि अपने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटे। इसके साथ ही जनमानस में भी अपने धर्म और संस्कृति के प्रति गौरव का भाव जगाने की आवश्यकता है, जिससे कि साहिबजादों जैसे बाल वीरों का बलिदान निरर्थक न जाए।
प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी एक ऐसा ही प्रयास शुरू किया है, जिससे हम उन बाल शहीदों को याद कर प्रेरणा ले सकें, जिन्होंने अपने बचपन को देश के नाम सर्वोच्च बलिदान देकर आज के भारत की नींव रखी। आयोग समय-समय पर ऐसे सभी बाल वीरों पर प्रदर्शनी का आयोजन कर रहा है, जिन्होंने देश की आजादी में अपना योगदान दिया, जिन पर चर्चा नहीं की जाती। अगर हम बच्चों के बलिदान को याद नहीं रखेंगे तो यह उनके साथ हमारी पीढ़ी द्वारा किया जा रहा घोर अन्याय होगा। ऐसे में वर्तमान में सरकार द्वारा इस दिशा में किया यह एक सराहनीय प्रयास है जिससे निकट भविष्य में ऐसे बाल वीरों की गाथाएं देश में भविष्य के वीरों को तैयार करने का कार्य करेंगी।
बच्चों के अधिकारों के संरक्षक के तौर पर आयोग लगातार ऐसे प्रयास कर रहा है जिससे कि अवैध रूप से बच्चों के धर्म परिवर्तन की गतिविधियों को रोका जा सके। आयोग के पास ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं, जहां पर बच्चों का इस्तेमाल अपने धर्म के प्रचार-प्रसार तथा देश विरोधी गतिविधियों के लिए किया गया है। वर्तमान सरकार ने प्रथम बार इस विषय की गंभीरता को समझा और इसे रोकने की दिशा में प्रभावी कदम उठाने शुरू किए तथा देश के धर्म और संस्कृति को संरक्षण देने का कार्य किया है।
(लेखक राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष हैं)
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