पंडित मदन मोहन मालवीय की जयंती पर बीएचयू में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। विश्वविद्यालय स्थित स्वतंत्रता भवन सभागार में बीएचयू के संस्थापक भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जयंती की पूर्व संध्या पर “महामना- धारा के विरुद्ध, समय के साथ” नाटक का मंचन हुआ, जिसके माध्यम से महामना के जीवन संघर्षो एवं उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का नाट्य रूपान्तरण किया गया।
बाल महामना की प्रतिभा, युवा महामना का दृढ़ निश्चय व स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी तथा शिक्षाविद् महामना के संघर्ष के नाट्य रूपांतरण से जहां काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिवार के सदस्य रोमांचित हुए, तो वहीं, दर्शकों को बीएचयू की स्थापना की पृष्ठभूमि की जानकारी मिली।
नाटक का आरम्भ महामना क़े जन्म के समय की देश काल एवं परिस्थितियों के मंचन से हुआ। नाटक के मंचन के माध्यम से 1857 की महान क्रांति से प्रभावित भारत के परिदृश्य को भी प्रदर्शित किया गया, साथ ही विश्वविद्यालय के संस्थापक के एक राष्ट्रीय चिंतक तथा महान शिक्षाविद के रूप में विकास और जीवन संघर्षो को भी संक्षेप में प्रदर्शित किया गया। नाटक में मालवीय जी द्वारा धर्मसभाओं, मित्र मंडलियों में दिए गए वक्तव्य को भी जगह दी गई। नाटक के माध्यम से महामना द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के क्रम में आने वाली चुनौतियों एवं उनके त्याग की कथा का भी वर्णन किया गया।
गिरमिटिया मजदूरी प्रथा विरोध हो या जलियावाला बाग में रॉलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे भारतीयों पर गोलियां चलाने पर उनका दुख, बचाऊ बाबा की मृत्यु पर मालवीय जी का विलाप हो या चौरी चौरा कांड में गिरफ्तार 171 भारतीयों को अपनी प्रखर वकालत के द्वारा निर्दोष साबित करना, ऐसे तमाम महत्वपूर्ण प्रसंगों को नाटक का हिस्सा बनाया गया, जिन्हें अपने शानदार अभिनय के दम पर भावपूर्ण प्रस्तुति कर कलाकारों ने दर्शकों को भावविह्वल कर दिया। मंचन के दौरान अनेक पल ऐसे रहे जब सभागार तालियों व मालवीय जी के जयघोष से गूंज उठा।
नाटक का लेखन समाजिक विज्ञान संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो. मंजीत चतुर्वेदी द्वारा किया गया तथा निर्देशन अंग्रेजी विभाग के शोधार्थी रवि कुमार राय द्वारा किया गया। मुख्य पात्रों में पंडित मदन मोहन मालवीय का पात्र, प्रतीक त्रिपाठी, एलीना सिंह व सौरभ शांडिल्य द्वारा निभाया गया। सूत्रधार के रूप में हिमांशु तिवारी, काशी नरेश के रूप में प्रो सदाशिव द्विवेदी, राजा राम पाल सिंह और दरभंगा महाराज के रूप में डॉ ज्ञानेंद्र राय दिखे, इसके अतिरिक्त आलोक भारद्वाज, डॉ अमित पाण्डेय, दिव्यांशी भारद्वाज, ईशा भारती, अजय चौहान, नीतीश पाराशर, सम्राट सिंह कपूर, अंकित मिश्रा, समीर तिवारी, सोनू कुमार, सुप्रिया नंदी, शुशांत कुमार, रिमी सरकार एवं कुंतोलिका झारिमूने ने भूमिका निभाई। नाटक के अंत में निर्देशक रवि कुमार राय ने सभी कलाकारों का परिचय दिया। प्रो. मंजीत चतुर्वेदी ने नाटक के लेखन व प्रस्तुतिकरण के पीछे का विचार साझा किया।
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