देश के पूर्व प्रधानमंत्री, सर्वप्रिय राजनेता, कवि, पत्रकार और पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक स्व. अटल बिहारी वाजपेयी का पाञ्चजन्य के साथ संवाद सदैव बना रहा। यहां तक कि पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने सबसे पहले पाञ्चजन्य को ही साक्षात्कार दिया था। संभवत: अटल जी ने पाञ्चजन्य को ही सबसे अधिक साक्षात्कार दिए। उन्हीं साक्षात्कारों में से यहां प्रस्तुत हैं चुनिंदा प्रश्न और अटल जी के कालजयी उत्तर
मुस्लिम समुदाय का बड़ी संख्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ संवाद और भाजपा के साथ जुड़ाव दिखने लगा है। अभी तक राष्ट्रभावी विचारधारा के विरोधी यह कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए पर मुस्लिम समाज इस विचारधारा और इससे जुड़े संगठनों के निकट नहीं आएगा। इस बदलाव के पीछे आप क्या कारण मानते हैं?
यह तो बदले हुए वक्त का तकाजा है। मुस्लिम समाज भी यह समझ रहा है कि उसे यहीं रहना है और यहीं अपना भविष्य बनाना है। या तो हमेशा झगड़ा करते रहें और तनाव का संबंध बना रहे। या भाईचारे के साथ आगे बढ़ें। वे भाईचारे के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। यह अच्छी बात है।
जब एक वोट से सरकार गिर गई, उस समय मन में क्या भाव थे? क्या वेदना थी?
सरकार एक वोट से गिर गई, इसका इतना दुख नहीं था। चिंता इस बात की थी कि राजनीति पूरी तरह नकारात्मक और पूरी तरह निषेधात्मक हो गई है। भाजपा के विरोध के नाम पर सेकुलरवादी मोर्चा खड़ा करने का जोर-शोर से ऐलान किया गया था। लेकिन उसे भी विवाद में मुद्दा नहीं बनाया गया। अगर लोकसभा में सेकुलरवाद पर तर्कसंगत बहस होती तो वह समझ में आ सकता था। केवल दोषारोपण के लिए, देश के विभिन्न भागों में छिटपुट घटनाओं का उल्लेख कर दिया। जब सत्ता पक्ष की ओर से तथ्य सामने रखे गए तो उन्हें समझने की तैयारी भी विपक्ष में दिखाई नहीं दी। उनके लिए मानो वह एक कर्मकांड था, जिसे पूरा करने के लिए वे एकत्र हुए थे। क्या संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीति इसी तरह से चलेगी?
मार्क्सवादियों की भूमिका पर आप क्या सोचते हैं?
उनका आचरण उनके अब तक के व्यवहार के अनुरूप ही रहा है। वे नहीं चाहते कि राष्ट्रवाद प्रखर हो, देश में स्थिरता रहे, देश लोकतांत्रिक तरीके से समृद्धि की ओर आगे बढ़े।
कहा जाता है कि आप हिन्दुत्व से अलग हट रहे हैं?
गलत कहा जाता है। भारत का शक्तिशाली और समृद्ध होना ही हमारी मूल विचारधारा है। यही भारतीयता है। सुरक्षा की दृष्टि से हमने एक ऐसा राष्ट्र बनाया है, जो किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने में पूरी तरह समर्थ है। हम ऐसा देश बनाना चाहते हैं जो अविजेय हो। यह हमारी पहले से ही मूल प्रेरणा रही है। पिछली सरकारों के समय तीन लड़ाइयां हुर्इं और तीनों में हमने चोट खाई। पर हमने कारगिल में ऐसा नहीं होने दिया। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने, इस लड़ाई में पाकिस्तान की फौजों ने हमारे हाथों कैसे मार खाई, इसका वर्णन किया है। उनको तब अमेरिका ने रातोंरात वाशिंगटन बुला लिया था। वे गए। पर हमने जाने से मना कर दिया। नवाज शरीफ ने उस साक्षात्कार में कहा कि ‘बिल क्लिंटन ने वाजपेयी को बुलाया लेकिन वाजपेयी ने मना कर दिया’। तो यह स्थिति कैसे आई कि अमेरिका बुला रहा है और हम मना कर रहे हैं? हम अपनी ताकत पर डटे रहे और दुनिया ने माना। यही है हमारी भारतीयता, यही है हमारी राष्ट्रीयता। यह हमारी राष्ट्रीयता का ही अंग है कि हम एक ऐसा देश बनाना चाहते हैं कि जिसमें ‘दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, राम राज काहू नहीं व्यापा’ की बात फलीभूत हो।
अपनी सरकार के कार्यकाल का कोई ऐसा क्षण बताइए जो आपको सर्वाधिक आनंद देता है।
लंबी-चौड़ी सूची है। क्या-क्या बताएं? लेकिन भारत को परमाणु शस्त्रों से सुसज्जित करना (पोकरण) सबसे तृप्तिदायक मानता हूं।
आपकी सरकार से क्या अपेक्षा करें? इसके साथ ही अपने मित्रों और कार्यकर्ताओं से क्या अपेक्षा है?
देश को अच्छे शासन की जरूरत है। शासन अपने प्राथमिक कर्तव्यों का पालन करे, हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा दे, उसके लिए शिक्षा, उपचार और आवास का प्रबंध करे। इसकी बड़ी आवश्यकता है। पिछले 50 साल में यह कार्य जिस गति से होना चाहिए था, नहीं हुआ। लोग अच्छी सरकार भी चाहते हैं और स्वच्छ सरकार भी चाहते हैं। जहां मजबूती और कठोरता की आवश्यकता होगी, वहां हमारी सरकार मजबूती दिखाएगी और जहां समझा-बुझाकर समस्याओं के समाधान निकालना संभव हो, तो वहां उस दिशा में प्रयत्न किए जाएंगे। रही बात कार्यकर्ताओं की तो मेरा अनुरोध है कि वे हमारी सरकार और उसके क्रियाकलापों के संबंध में तत्काल कोई राय न बनाएं। जिन परिस्थितियों में हम सत्ता ग्रहण करने जा रहे हैं, वे परिस्थितियां बड़ी जटिल हैं। गत 50 वर्षों की साधना और संघर्ष हमें वर्तमान स्थिति तक पहुंचाने में समर्थ हुए हैं। लोगों का प्रेम हमारा पाथेय है। कार्यकर्ताओं का सहयोग हमारी पूंजी है। हमें विश्वास है कि हम समय की कसौटी पर खरे उतरेंगे।
हम यह जानना चाहते हैं कि अटल जी अपने-आपको किस रूप में याद किया जाना पसंद करेंगे?
टेढ़ा सवाल है। लोग याद करेंगे भी या नहीं करेंगे, इसके बारे में मुझे संदेह है। कोई याद करे, इसकी क्या जरूरत है।
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