अटल जी ने कई अवसरों पर इस्लाम, मुसलमान और कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के छिपे इरादों को रेखांकित किया। इस संदर्भ में उनके सारगर्भित भाषणों के अंश प्रस्तुत हैं-
इस्लाम के दो रूप हैं। एक इस्लाम ऐसा है जो सबको सहन करता है, जो सच्चाई के रास्ते पर चलने की सीख देता है, जो संवेदना और दया सिखाता है। लेकिन आजकल जिस इस्लाम को लेकर आतंकवाद अपनाया जा रहा है, उसमें सहिष्णुता के लिए कोई स्थान नहीं है। वह जिहाद के नारे पर चलता है। सारी दुनिया को अपने सांचे में ढालने का सपना देखता है। … आज आरोप लगाए जा रहे हैं कि सेकुलरवाद खतरे में है। कौन हैं यह आरोप लगाने वाले? क्या मतलब है सेकुलरवाद का उनके लिए? जब यहां मुसलमान नहीं आए थे, जब यहां ईसाइयों का पदार्पण नहीं हुआ था, तब भी भारत सेकुलर था। उनके आने के बाद भारत सेकुलर हुआ हो, ऐसा नहीं है। वे अपनी पूजा-पद्धति लेकर आए, उनको भी सम्मान का स्थान मिला।
(12 अप्रैल, 2002 को पणजी में भाजपा द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभा में दिया गया भाषण)
… मजहब के आधार पर बना पाकिस्तान एक नहीं रह सका, स्वाधीन बांग्लादेश का आविर्भाव हुआ। अब भारत का भी वातावरण बदलेगा और मजहब के आधार पर संघर्ष या विशेषाधिकारों की मांग नहीं होगी, लेकिन ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की मुक्ति से हमने कोई पाठ नहीं सीखा। … आज देश का साम्प्रदायिक वातावरण क्यों बिगड़ रहा है? आज मुस्लिम समाज में से एक वर्ग ऐसा क्यों निकल रहा है … जो कहता है कि हम वंदेमातरम् कहने के लिए तैयार नहीं हैं। वंदेमातरम् इस्लाम का विरोधी नहीं है। क्या इस्लाम को मानने वाले जब नमाज पढ़ते हैं तो इस देश की धरती पर, इस देश की पाक जमीन पर सिर नहीं टेकते हैं? … क्या दुनिया के और देशों में राष्टगीत नहीं है? … ऐसे मुद्दों पर किसी को भी असहमत होने की इजाजत नहीं दी जा सकती। कल यह कहेंगे कि तिरंगा झंडा है। हम तिरंगे झंडे के आगे नहीं झुकेंगे, क्योंकि हम अल्लाह के आगे झुकते हैं। हिंदुस्थान में रहने वाले हर आदमी को तिरंगे के सामने झुकना पड़ेगा।
लगता है कि पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की मुक्ति से हमने कोई पाठ नहीं सीखा। … आज देश का साम्प्रदायिक वातावरण क्यों बिगड़ रहा है?
… कहा जा रहा है कि अलीगढ़ युनिवर्सिटी का मुस्लिम ‘कैरेक्टर’ सुरक्षित रहना चाहिए। … मुसलमान केवल हिंदुस्थान में ही नहीं हैं, मुसलमान बांग्लादेश में हैं, मुसलमान दुनिया के और देशों में हैं। क्या उन सबके विश्वविद्यालयों का ‘कैरेक्टर’ एक ही होगा? विश्वविद्यालय जिस मिट्टी पर बना है, उस मिट्टी का रंग विश्वविद्यालय पर चढ़ेगा या नहीं चढ़ेगा? विश्वविद्यालय जिस समाज में काम करेगा, उस समाज की आशा और अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करेगा या नहीं करेगा?
(29 मार्च, 1973 में गृह मंत्रालय की अनुदान मांगों पर हुई चर्चा से उद्धृत)
…मकतूबात शेखुल इस्लाम … इसका पत्र संख्या 33। यह 1947 के पहले का है। ‘हिंदुस्तान दारूल हरब है’(दुश्मन का देश)- यह उस पत्र में लिखा है: ‘‘वो उस वक्त तक दारूल हरब बाकी रहेगा, जब तक इसमें कुफ्र को गलवा हासिल रहेगा।’’ लेकिन 1947 के बाद भी जमीयते उलेमा उसी रवैये पर कायम है। मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने यह बात साफ-साफ कही कि हम हिंदुस्थान में खालिस इस्लामी हुकूमत कायम करना चाहते हैं। लेकिन सीधे-सीधे खाली इस्लामी हुकूमत कायम नहीं हो सकती। इसके लिए हमें अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।
(कांग्रेस सांसद इंदर मल्होत्रा द्वारा पेश ‘साम्प्रदायिक अर्द्धसैनिक संगठन’
पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव के विरोध में 21 अप्रैल, 1972 के वक्तव्य के अंश)
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