बरेली में करीब तीन साल पहले श्मशान घाट में गड्ढे में दबे मटके में नवजात बच्ची मिली थी, जिसे नाम दिया गया था रीता (काल्पनिक नाम)। अब जब उसका आधार कार्ड बना तो पता चला कि उसको ईसाई बना दिया गया है। ऐसे क्यों हुआ ? क्या सेवा की आड़ में मतांतरण का कोई खेल चल रहा है?
बात 10 अक्टूबर 2019 की है, जब श्मशान भूमि पहुंचे कुछ लोगों को गड्ढे में घड़ा दबा दिखाई दिया, उसमें एक बच्ची रोते हुए दिखाई दी। जब उस बच्ची को बाहर निकाला तो वो अस्वस्थ दिखी। बिथरी चैनपुर के तत्कालीन विधायक राजेश मिश्रा भी भरतौल में उक्त बच्ची को देखने पहुंचे थे और जमीन में दबे घड़े से निकाली गई बच्ची को रीता नाम दिया गया। उन्होंने उसे बाल कल्याण समिति के सामने पेश कर बोर्न बेबी फोल्ड भेज दिया गया था। उसकी हालत गंभीर होने के कारण राजेश मिश्रा ने उपचार का जिम्मा लिया। वह चाहते थे कि बच्ची उनके घर में रहे इसलिए अगले महीने भतीजे अमित मिश्रा के नाम से गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कराई मगर, बच्ची की हालत खराब होने के कारण अनुमति नहीं दी गई। करीब छह महीने उपचार के बाद बच्ची स्वस्थ हुई और राजेश मिश्रा के स्वजन का उससे लगाव बढ़ता गया।
बाल कल्याण समिति लावारिस नवजात मिलने पर गोद देने की प्रक्रिया कराती है। करीब तीन महीने बच्चों के पालन केंद्र बोर्न बेबी फोल्ड में रखकर असली अभिभावकों का इंतजार किया जाता है, विज्ञापनों के माध्यम से सूचना जारी की जाती है। इसके बाद गोद देने की ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू होती है। इसकी प्रक्रिया पूरी करने के लिए केंद्रीय दत्तक ग्रहण संस्थान प्राधिकरण (कारा) की वेबसाइट को वे देखते रहे। ताकि वो आवेदन कर सकें आवेदन के पंजीकरण के बाद वहां से अनुमति के बाद कोर्ट गोद देने का अंतिम आदेश जारी करता है।
पूर्व विधायक राजेश मिश्रा ने बताया कि रीता को गोद लेने के लिए भतीजे लगातार वेबसाइट देख रहे थे। रीता का ब्योरा यहां दिखाया ही नहीं गया। उनका आरोप है षड्यंत्र के अंतर्गत यहां के कई बच्चों का ब्योरा सिर्फ विदेश में दिखाया जाता है। रीता के साथ भी ऐसा ही हुआ और मार्च में माल्टा देश के मिकेल कैमेलेरी ने गोद लेने की ऑनलाइन प्रक्रिया पूरी कर ली और बाल विकास विभाग ने जब बच्ची का आधार कार्ड बनवाया तो उसमें ईसाई नाम लिखवाया गया। ज्ञात हो कि आधार कार्ड के आधार पर ही पासपोर्ट बनाए जाने की कार्रवाई पूरी की जानी होती है। इसकी जानकारी जब राजेश मिश्रा को मिली तो उन्होंने केंद्र एवं राज्य सरकार से शिकायत कर वेबसाइट की फारेंसिक जांच की मांग की। चार अगस्त को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष से भी शिकायत की। जिसपर उन्होंने डीएम बरेली से जांच करने को कहा और बच्ची को माल्टा भेजने पर रोक लगा दी गई।
राजेश मिश्रा ने बताया कि उन्होंने कारा की गड़बड़ी की शिकायत केंद्र सरकार से भी की थी। एक सितंबर को गृह मंत्रालय ने आदेश लागू किया कि डीएम के माध्यम से अंतिम प्रक्रिया पूरी की जाए। जांच के कारण कारा ने बच्ची को माल्टा के दंपति को इंतजार करने को कहा तो वे हाईकोर्ट चले गए। वहां से स्टे मिला कि बच्ची जहां है, वहीं रखी जाए। कारा की तीन सदस्यीय टीम शहर पहुंची। अधिकारियों से बातचीत के बाद टीम बोर्न बेबी फोल्ड पहुंची। बच्ची के हालचाल लिए उधर माल्टा के दंपति ने गोद प्रक्रिया पूरी करने के बाद रीता की पावर ऑफ अटार्नी बाकरगंज व दिल्ली के युवक को दी थी। टीम उनके साथ भी बातचीत कर रही है।
स्थानीय हिंदू संगठनों का कहना है कि यहां की बच्चियों को विदेश लेजाकर ईसाई बनाने का ये षड्यंत्र चल रहा है, जबकि ऐसे बच्चों को गोद लेने वालों की लंबी कतारें लगी हुई हैं। उधर बाल विकास विभाग के अनाथालय के एक अधिकारी का कहना है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया, हमारे पास आवेदन आया तो हमने प्रक्रिया शुरू की। इसके लिए एक स्थानीय परिवार भी कोशिश कर रहा था, किंतु वो आए नहीं, बच्ची प्री मैच्योर थी और उसे दौरे भी पड़ते थे, इसीलिए उसे बार-बार अस्पताल में भर्ती करना पड़ता था। बहरहाल इस अमले पर पुलिस अधीक्षक (सिटी) राहुल भाटी ने कहा, “अनाथालय के खिलाफ बच्चों का समुदाय बदलने की शिकायत मिली थी। रीता के मामले में जांच की जा रही है।” पुलिस ने मामला दर्ज किया है। साथ ही यूपी में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन पर रोक की धारा 3 और 5 (1) भी लगाई गई है।
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