यह आरोप लग रहे हैं कि ‘तालीमुल इस्लाम’ नाम की किताब का सहारा लेकर बच्चों के मन-मस्तिष्क को बदलने का षड्यंत्र किया जा रहा है। जबकि इस किताब का पाठ्यक्रम से कोई सरोकार नहीं है। बच्चों को भविष्य में मतांतरण के लिए तैयार किया जा सके, उसकी नींव तैयार करने के लिये पुस्तक का सहारा लिया जा रहा है।
पुस्तक में एक जगह लिखा है- ‘गवाही देता हूं कि अल्लाह ताला के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं…।’ पुस्तक में कई स्थानों पर यह जोर दिया गया है कि अल्लाह ही सब कुछ है, उसके अलावा अन्य देवता या धर्म का कोई अस्तित्व नहीं।
यह पुस्तक कुतुबखाना अजीजिया से छपी है, जो उर्दू बाजार, जामा मस्जिद, दिल्ली से प्रकाशित है। लोग बताते हैं कि इस पुस्तक की लाखों प्रतियों में प्रतिवर्ष बिकती हैं। जबकि इस पुस्तक का पाठ्यक्रम से कोई सरोकार नहीं है। फिर भी यह पुस्तक मदरसों पढ़ाई जा रही है।
इस बाबत मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने कहा कि हां, यह बात सच है कि विदिशा मे जांच के दौरान मदरसा मरियम से ‘तालीमुल इस्लाम’ पुस्तक मिली है। फिलहाल हमें इस पुस्तक का अध्ययन करना है, उसमें ऐसा क्या लिखा है कि गैर मुस्लिम बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि यह जांच का विषय है। इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। जांच के बाद भी हम कुछ बोल पाएंगे। यदि कुछ गलत मिलता है तो यह निश्चित तौर पर संविधानिक व्यवस्था के अंतर्गत अनुच्छेद 28(3) का सीधा उल्लंघन माना जाएगा।
उल्लेखनीय है कि यह अनुच्छेद किसी भी शिक्षण संस्थान को बिना माता-पिता की सहमति के बच्चों को धार्मिक उपदेश प्राप्त करने के लिए बाध्य करने से रोकता है।
डॉ. शर्मा ने आगे कहा कि संविधान में धारा 295ए के अंतर्गत ऐसे कार्य को दंडनीय बनाया गया है, जिससे किसी वर्ग के धार्मिक विश्वास एवं भावना को आघात पहुंचता हो। भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अंतर्गत तीन वर्ष तक के कारावास के दंड का निर्धारण किया गया है, उसके साथ जुर्माना भी अधिरोपित किया जा सकता है।
इस बाबत राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने प्रभावी कार्रवाई के लिए पत्र भी लिखा है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सभी राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को गैर मुस्लिम बच्चों को दाखिला देने वाले मदरसों की विस्तृत जांच करने का भी निर्देश दिया है। यह आदेश सरकारी अनुदान पाने वाले सभी मदरसों के लिए जारी हुआ है।
इसी पत्र में सभी मदरसों की मैपिंग भी करने के लिए कहा गया है। उल्लेखनीय है कि एनसीपीसीआर के अध्यक्ष का यह पत्र इसी माह आठ दिसंबर को जारी हुआ था। आयोग ने कहा है कि बतौर संस्थान मदरसों का काम मूल रूप से बच्चों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करना है। सरकारी वित्त पोषित या मान्यता प्राप्त मदरसे बच्चों को धार्मिक और कुछ हद तक औपचारिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आयोग अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए गैर-मुस्लिम बच्चों को दाखिला देने वाले सभी सरकारी-वित्त पोषित/मान्यता प्राप्त मदरसों की विस्तृत जांच की सिफारिश करता है।
आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो का स्पष्ट कहना है कि जिस भी मदरसे में गैर मुस्लिम छात्र को मज़हबी तालीम मिल रही हो ऐसे राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस प्रकार के सभी बच्चों का तत्काल प्रभाव से दूसरे स्कूल में दाखिला करवा देना चाहिए।
वहीं बाल मनोविज्ञान पर लम्बे समय से काम कर रहीं मनोवैज्ञानिक अनुकम्पा मिश्रा का इस संबंध में कहना है कि बच्चे भावनाओं और विचारों से सुकोमल होते हैं, उनके मतिष्क में एक बात यदि बार-बार उकेरी जाए, तो वह उसे सच मान लेते हैं।
वे आगे कहती हैं कि जब एक पत्थर या किसी कक्षा में लगे बोर्ड पर कोई शब्द एक ही स्थान पर अनेक बार लिखे जाते हैं, तो वे भी उसपर स्थायी छाप छोड़ देते हैं। फिर तो वे मासूम बच्चे हैं। इस उम्र में उन्हें जो बताया और दिखाया जाएगा, उनके लिए वही हकीकत की दुनिया है।
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