बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हंसते हुए विधानसभा में कहा कि जो पीएगा, वह मरेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे लोगों के साथ सहानुभूति जताने की आवश्यकता नहीं है और न ही उनके परिजनों को मुआवजा देने की जरूरत है। इसे बिहार के लोग ठीक नहीं मान रहे हैं और कह रहे हैं कि नीतीश कुमार अपने पतन की राह पर निकल चुके हैं।
इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक अलग ही रूप दिख रहा है। वे बात—बात में गुस्से में आ जाते हैं और तुम—तड़ाक की भाषा बोलने लगते हैं, वह भी संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति के लिए भी। ऐसा लगता है कि उनसे सवाल पूछना कोई अपराध है। विपक्षी दल भाजपा के नेता केवल यही पूछ रहे हैं कि जिस बिहार में शराबबंदी है, वहां लोग कच्ची शराब पीकर कैसे मर रहे हैं!
इसका नीतीश कुमार ने कभी कोई उत्तर नहीं दिया और न अब दे रहे हैं। उल्टे अपनी प्रशासनिक विफलता को ढकने के लिए आरोप लगा रहे हैं कि बिहार में भाजपा शासित हरियाणा और उत्तर प्रदेश से शराब भेजी जाती है। यही नहीं, वे सवालों से इस कदर तिलमिला जाते हैं कि कांपने लगते हैं। इस दौरान उनकी हालत यह हो जाती है कि किसी का सहारा लेकर उन्हें चलना पड़ता है।
कहा जाता है कि गुस्सा व्यक्ति के अंदर की संवेदनशीलता और विवेक को मार देता है। यह बात नीतीश कुमार पर पूरी तरह लागू होती दिख रही है। शायद यही कारण है कि उन्होंने उन लोगों को मुआवजा देने से मना कर दिया है, जिनके परिजन जहरीली शराब पीकर अपनी जान गंवा चुके हैं। विधानसभा में नीतीश कुमार ने हंसते हुए कहा, ‘जो शराब पीएगा, वह मरेगा ही।’ जब नीतीश कुमार यह बात कह रहे थे, उस समय उनके बगल में बैठे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और अन्य मंत्री भी हंस रहे थे।
कल्पना करिए कि इस दृश्य को देखकर उन लोगों पर क्या बीती होगी, जिनके परिजन मर गए। नीतीश कुमार से पूछा जाना चाहिए कि उन महिलाओं का क्या दोष है, जो विधवा हो गईं! उन बच्चों का क्या दोष है, जो अनाथ हो गए! ऐसी महिलाओं या बच्चों को कौन देखेगा! उनका गुजारा कैसे होगा! स्वाभाविक है इसकी पहली जिम्मेदारी तो सरकार की ही है, लेकिन सरकार मुआवजा देने से साफ मना कर रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता ब्रजेश कुमार कहते हैं, ”नीतीश कुमार इस बात से कन्नी नहीं काट सकते कि वे शराबबंदी को ठीक से लागू नहीं करवा पा रहे हैं। इस कारण शराब माफिया जहरीली शराब बना रहे हैं और बेच रहे हैं। शराब माफिया को पुलिस का संरक्षण मिलता है।” उन्होंने यह भी कहा कि पूरे बिहार में कहीं भी और कभी भी शराब मिल जाती है। यहां तक कि जिस पुलिस विभाग पर शराबबंदी लागू करने का जिम्मा है, उसके लोग भी दारू पीते पकड़े जा रहे हैं। यही कारण है कि शराबबंदी होते हुए भी बिहार में शराब मिल रही है और बिक रही है। यह सरकार की नाकामी है। एक रिपोर्ट के अनुसार एक साल के अंदर बिहार में जहरीली शराब पीने से लगभग 150 लोग मारे जा चुके हैं।
अभी सारण जिले में 60 से अधिक लोगों की जान गई है। इसके अलावा सिवान, बेगूसराय आदि जिलों में भी मौैत हुई है। जो चला गया, वह चला गया, लेकिन उसके परिजनों का बुरा हाल है। बच्चे बिलख रहे हैं, महिलाएं बेसुध हो रही हैं। लेकिन ‘सरकार’ नीतीश कुमार कह रहे हैं कि ऐसे लोगों के प्रति हमदर्दी जताने की आवश्यकता नहीं है। उनके इस रवैए को भाजपा ने अहंकार बताया है। भाजपा की तरह ही नीतीश के करीबी रहे प्रशांत किशोर भी इसे उनका अहंकार बता रहे हैं।
जैसे ही नीतीश कुमार ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने से मना किया, वैसे ही सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई। इसमें शराब कांड की एसआईटी से जांच कराने के साथ ही पीड़ित परिवारों को मुआवाजा देने की मांग की गई है।
बिहार में जहरीली शराब से हो रही मौतों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी चिन्तित है। आयोग ने इसे स्वत: संज्ञान में लिया है और बिहार के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी किया है। आयोग ने चार हफ्ते में नोटिस का जवाब मांगा है। इसमें एफआईआर, अस्पतालों में भर्ती लोगों की स्थिति और यदि मुआवजा दिया गया हो तो उसका विवरण आदि मांगा है। आयोग का कहना है कि मीडिया में जो रिपोर्ट आ रही है, वह यदि सही है, तो यह निश्चित रूप से मानवाधिकार का उल्लंघन है।
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