हिमाचल-उत्तराखंड के बीच यमुना और टौंस घाटी की काष्ठ भवन शैली विलुप्ती के कगार पर पहुंची है। इस पर उत्तरकाशी निवासी कृषण कुड़ियाल ने उत्तराखंड में अभूतपूर्व कार्य किया है। इस कार्य के जरिए उन्होंने उत्तराखंड के कामगारों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए हैं।
आईआईटी रुड़की से भवन शैली में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर कृषण ने उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों और भवनों का अध्ययन किया। विशेषकर यमुना टौंस घाटी की शानदार प्राचीन भवन शैली पर उन्होंने ध्यान केंद्रित करते हुए पुराने मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम शुरू किया और साथ ही साथ उसी शैली में नए भवनों का निर्माण कार्य भी शुरू किया। उनके मिशन का असर यह हुआ कि उनके नेतृत्व में अब तक यमुना एवं टौंस घाटी में करीब चार दर्जन मंदिरों का निर्माण हो चुका है।
कृषण ने प्राचीन भवन शैली के करीब 30 कारीगरों को अपने साथ जोड़ा है और उन्हें न सिर्फ काम दिया, बल्कि उन्हें आधुनिक औजार व नए स्किल देकर प्रशिक्षित भी किया, जो कार्य पहली पीढ़ी छोड़ना चाहती थी, अब उनकी दूसरी पीढ़ी इस काम में जुड़ने लगी है। पूरे केदारनाथ में कंक्रीट के जंगल के बजाय पहाड़ी भवन शैली वाले लकड़ी के मकान बनेंगे, जिसमें इन कारीगरों के लिए रोजगार के नए द्वार खुल रहे हैं।
कृषण कुड़ियाल ने बताया कि उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान का विशाल म्यूजियम एवं लैंसडाऊन में गढ़वाल रेजिमेंट का करीब तीन सौ साल पुराना मुख्यालय भवन का जीर्णोद्धार करके उसे पहाड़ी शैली में बनाया जाएगा, जिसमें करीब 15 से 20 करोड़ रुपये की लागत आएगी। उनके निर्माण में इन्हीं कारीगरों की जरूरत पड़ेगी। इस अभियान में उनका मार्ग दर्शन केदारनाथ के भागीरथ के नाम से प्रसिद्ध कर्नल अजय कोठियाल कर रहे हैं।
उनका कहना है कि अब पहाड़ के कई होटल व्यवसायी अपने होटलों को पहाड़ी भवन शैली में ही बनवाना चाहते हैं। पर्यटन व्यवसाय से जुड़े रूद्रप्रयाग के भंडारी ब्रदर्स तो कंक्रीट से बने अपने विशाल होटल मोनाल रिजॉट को तोड़कर पहाड़ी भवन शैली में बदल रहे हैं। इस प्रकार नागराज के सेम मुखीम मंदिर के भव्य गेट निर्माण से शुरू हुआ उनका अभियान गंगटीड़ी (रघुनाथ मंदिर रवांई) महासू मंदिर बिसोई (जौनसार बावर) होते हुए केदारनाथ तक पहुंच गया है।
कृषण कुड़ियाल का कहना है कि उनके पास जितने कारीगर मौजूद हैं उनके लिए उनके पास अभी से दस साल तक का रोजगार उपलब्ध है। जिस तेजी से लोगों का रूझान इस ओर बढ़ रहा है भविष्य में यह क्षेत्र पढ़े लिखे युवाओं के लिए रोजगार के नये द्वार खोलेगा। जौनसार बावर व रंवाई जौनपुर के स्नातक एवं स्नात्तकोत्तर शिक्षा प्राप्त युवा इस शानदार काम से जुड़कर प्रतिमाह 20 से 30 हजार रुपये कमा रहे हैं।
वैसे भी इस विधा के कारीगरों को लोग बड़ी इज्जत की दृष्टि से देखते हैं और काम के दौरान उनके आवास व भोजन की विशेष व्यवस्था की जाती है। इन्हें लोग ईंट गारे वाले मजदूरों के बजाय विशिष्ट कारीगरों की श्रेणी में रखते हैं। कुड़ियाल ने बताया कि इन कारीगरों ने एक फोल्डिंग तेवारी को सेना के लिए देहरादून में बनाया, जिसे वे अपने कश्मीर के मुख्यालय ले गए। देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल में शिक्षा पाए कुड़ियाल का कहना है कि उनके जीवन में दून स्कूल के शिक्षक एवं “टेंपल ऑफ गढ़वाल” जैसी प्रतिष्ठित पुस्तक के लेखक रतन मित्रा एवं आईआईटी रुड़की के आर्किटेक्चर विभाग के प्रमुख आर शंकर उनके प्रेरणा श्रोत रहे हैं, जिन्होंने उन्हें अपने पहाड़ में काम करने के लिए प्रेरित किया। अब उन्हें कर्नल कोठियाल का मार्ग दर्शन मिल रहा है, जिनके रोम रोम में पहाड़ और हिमालय बसता है।
उन्हें सरकार से इस बात की नाराजगी है कि उत्तराखंड की राजधानी के लिए तैयार गैरसैण तथा दिल्ली सहित अन्य शहरों में बनने वाले उत्तराखंड भवन भी पहाड़ी शैली में बनने चाहिए थे पर ऐसा नहीं हो सका। दिल्ली में अन्य राज्यों के अपने अपने भवन उस राज्य की भवन शैली को दर्शाता है पर उत्तराखंड भवन में ऐसा कहीं नजर नहीं आता। वे कई स्थानों पर पलायन के बाद जर्जर हो चुके भवनों का पहाड़ी शैली में जीर्णोद्धार कर ग्रामीण पर्यटन को नए पंख लगाने की योजना पर भी काम कर रहे हैं।
कृषण कुड़ियाल को इस बात की खुशी है कि उनके छोटे से प्रयास से आज प्राचीन भवन शैली के कारीगरों की मांग उनकी उपलब्धता से अधिक पहुंच गई है। कई कारीगरों के पास काफी काम है। वे अब इस क्षेत्र में पहाड़ के युवाओं के कौशल विकास की योजना पर काम कर रहे हैं। आने वाले समय में यह क्षेत्र रोजगार के नये द्वार खोलेगा और इससे होनहार कारीगरों को अपने ही पहाड़ में शानदार रोजगार उपलब्ध होगा।
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