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सोशल मीडिया पर इतनी उपयोगी सेवाएं नि:शुल्क कैसे

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर बनाए जाते हैं तो क्या वहां भी खातों को प्रमाणित करने के पैसे लगेंगे? क्या दूसरी कंपनियां इस बात पर नजर रखे होंगी कि ट्विटर के फैसले पर आगे क्या होता है? हां, जिज्ञासा तो सबको होगी ही

by बालेन्दु शर्मा दाधीच
Dec 11, 2022, 02:40 pm IST
in भारत, विज्ञान और तकनीक
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ट्विटर की ब्लूटिक सेवा पर शुल्क के बाद अन्य प्लेटफॉर्मों की सेवाओं पर शुल्क लगने की संभावना खड़ी हो गई है। परंतु यह उनके लिए लाभप्रद सौदा नहीं होगा

ब्लूटिक के लिए पैसे लेने का ट्विटर का फैसला एकदम से अलग या अप्रत्याशित नहीं है। बात यह है कि हम जिसे सामान्य फीचर समझ रहे हैं, ट्विटर की दृष्टि में वह एक प्रीमियम फीचर है जो खाताधारक के सही व्यक्ति होने का संकेत देता है। चूंकि ऐसे खाते बहुत सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर बनाए जाते हैं तो क्या वहां भी खातों को प्रमाणित करने के पैसे लगेंगे? क्या दूसरी कंपनियां इस बात पर नजर रखे होंगी कि ट्विटर के फैसले पर आगे क्या होता है? हां, जिज्ञासा तो सबको होगी ही।

फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, यूट्यूब आदि फिलहाल ब्लू टिक जैसी अपनी प्रमाणन सेवा नि:शुल्क दे रहे हैं। उनके लिए धन कमाने का एक नया रास्ता तो खुलता ही है। मुझे नहीं लगता कि वे फिलहाल ऐसा करेंगे। हां, भविष्य के लिए वे इस विकल्प को खुला रख सकते हैं। असल में ट्विटर के फैसले के कारोबारी कारण भी होंगे जो फिलहाल अन्य कंपनियों के साथ नहीं हैं।

नए फैसले से ट्विटर को थोड़ी-सी आमदनी जरूर हो सकती है लेकिन जिन लोगों के पास फिलहाल ब्लूटिक है, उनमें से बहुत कम लोग पैसा देकर ऐसा करना चाहेंगे। एक आशंका यह है कि गलत तत्व यह थोड़ी सी फीस देकर उसके प्लेटफॉर्म का अनुचित फायदा उठा सकते हैं। आपने ऐसी खबरें पढ़ी होंगी कि बहुत-सी लोकप्रिय हस्तियों के नाम से बने फर्जी खातों पर पैसा देकर नीला टिक जोड़ दिया गया है। आशंका है कि भूमिगत रहकर काम करने वाले अपराधी तत्व भी नीला टिक लेकर अपने लिए वैधानिक, सुरक्षित और इज्जतदार का रुतबा खरीद लेंगे। तो आगे-आगे देखिए, होता है क्या!

बहरहाल, ब्लूटिक को छोड़ दिया जाए तो आम आदमी का सवाल यह है कि क्या फेसबुक और व्हाट्सएप्प जैसे एप्स उन सामान्य सेवाओं के भी पैसे लेना शुरू कर देंगे जिनका इस्तेमाल आप-हम रोजाना करते हैं? मेरा उत्तर है- नहीं। वजह यह कि इन सेवाओं के लिए यूजर्स की संख्या की बहुत बड़ी अहमियत है और आपका साथ उनके लिए जरूरी है। आपने पढ़ा ही होगा कि जब आप किसी उत्पाद के लिए पैसा नहीं दे रहे होते हैं तो आप खुद ही उत्पाद होते हैं।

एक आशंका यह है कि गलत तत्व यह थोड़ी सी फीस देकर उसके प्लेटफॉर्म का अनुचित फायदा उठा सकते हैं। आपने ऐसी खबरें पढ़ी होंगी कि बहुत-सी लोकप्रिय हस्तियों के नाम से बने फर्जी खातों पर पैसा देकर नीला टिक जोड़ दिया गया है। आशंका है कि भूमिगत रहकर काम करने वाले अपराधी तत्व भी नीला टिक लेकर अपने लिए वैधानिक, सुरक्षित और इज्जतदार का रुतबा खरीद लेंगे। तो आगे-आगे देखिए, होता है क्या!

भले ही आप इन सेवाओं का प्रयोग नि:शुल्क कर रहे हों फिर भी आपकी मौजूदगी, आपका डेटा, आपकी गतिविधियों आदि से इन प्लेटफॉर्मों को लाभ होता है। गूगल और फेसबुक विज्ञापन दिखाने के लिए आपकी सर्च, प्रोफाइल, ईमेल, यात्राओं, डेटा आदि का इस्तेमाल करते हैं और उन्हें इससे जो धन मिलता है, वह इतना है कि आज ये कंपनियां दुनिया की सबसे शीर्ष कंपनियों में शामिल हैं। हम जैसे उपभोक्ता उन विज्ञापनदाताओं के लिए अथाह बाजार भी उपलब्ध कराते हैं। संख्या के बिना यह बाजार कहां? याद रखिए कि अगर सामान्य सेवाओं पर भी शुल्क लगा दिया जाएगा तो ऐसे संस्थान आपको विज्ञापन दिखाने का नैतिक अधिकार खो देंगे। कम से कम उस तरह से विज्ञापनों की झड़ी तो नहीं लगाई जा सकती जैसी कि फिलहाल लगाई जाती है। हां, इक्का-दुक्का विज्ञापन तब भी दिखाए जा सकते हैं।

फेसबुक के बारे में हाल ही में खबर आई थी कि उसकी 97 प्रतिशत से ज्यादा कमाई विज्ञापनों से है। पिछले साल फेसबुक ने विज्ञापनों से 114 अरब डॉलर की रकम कमाई। अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखें। पिछले साल फेसबुक के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या करीब 2.8 करोड़ थी। अगर इनमें से हर एक व्यक्ति पर सालाना दस डॉलर का भी शुल्क लगा दिया जाए (800 रुपए) तो कुल कमाई होगी 28 करोड़ डॉलर जबकि उसकी मौजूदा कमाई है 11,400 करोड़। यही बात गूगल पर भी लागू होती है जिसकी पैतृक कंपनी अल्फाबेट की कुल कमाई का 80 प्रतिशत हिस्सा विज्ञापनों से आता है। अगर दुनिया के डिजिटल विज्ञापन बाजार पर नजर डाली जाए तो मौजूदा साल में यह 600 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है जिसमें से गूगल की हिस्सेदारी करीब 29 प्रतिशत और फेसबुक की करीब 22 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सेवाओं पर शुल्क लगाने से डिजिटल विज्ञापनों पर उनका एकाधिकार (या द्वाधिकार) प्रभावित हो जाएगा।

दूसरी तरफ सामान्य सेवाओं पर शुल्क लगाने पर उपभोक्ताओं के दूसरे प्लेटफॉर्मों की तरफ जाने और नए प्लेटफॉर्मों का उभार होने की भी संभावना है। यह एक बड़ा कारोबारी जोखिम होगा। संदेश स्पष्ट है। इंटरनेट आधारित कंपनियों के लिए ज्यादा बेहतर यही होगा कि वे अपनी सेवाओं को और बेहतर बनाएं, उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ाती रहें और फायदे उठाती रहें।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक-भारतीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)

Topics: ट्विटरलिंक्डइनफेसबुकयूट्यूबइंस्टाग्राम
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