31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उसके बाद दंगे में निर्दोष सिखों की हत्या की गई. सिखों के घर को लूट लिया गया. उस दंगे में उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद में 127 सिखों की हत्या की गई थी. वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद एसआईटी का गठन किया गया. एसआईटी ने फिर से उस दंगे की परत खंगालनी शुरू की तो नए अभियुक्त सामने आये. एसआईटी का 30 नवंबर को कार्यकाल समाप्त हो गया. डीआईजी एसआईटी बालेंदु भूषण ने शासन को प्रस्ताव भेजा है कि एसआइटी का कार्यकाल एक महीने और बढ़ा दिया जाए. एसआईटी इस मामले 41 में से 40 अभियुक्तों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर चुकी है मगर दंगे के कई अभियुक्तों की गिरफ्तारी होना अभी शेष है.
जानकारी के अनुसार, दादानगर हत्याकांड के 5 और अन्य स्थानों पर हुई हिंसा के 4 अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था मगर इन अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं की गई थी. इनकी तरफ से गंभीर रूप से बीमार होने के साक्ष्य दिए गए थे. इसी प्रकार निराला नगर हत्याकांड से 7 अभियुक्तों, रतनलाल नगर और अरमापुर से एक-एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया जाना शेष है.
कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगे को कांग्रेसियों ने पीछे से हवा दी थी. दंगों के बाद 19 नवंबर 1984 को एक सभा को संबोधित करते हुए राजीव गांधी ने कहा था “ जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी तब हमारे देश में कुछ दंगे – फसाद हुए थे. हमें मालूम है कि भारत की जनता क्रोधित हो उठी थी. कुछ दिन के लिए लोगों को ऐसा महसूस हुआ था कि भारत हिल रहा है. जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है.”
सन 84 के दंगे, कांग्रेस पार्टी के लिए दाग की तरह है जिससे वह कभी मुक्त नहीं हो पाई. राजीव गांधी के करीबी माने जाने वाले नेता जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार दंगे के आरोपी बनाये गए. दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सज्जन कुमार को दंगे का दोषी माना और आजीवन कारावास की सजा सुनाई. सज्जन कुमार को दिल्ली के कैंट इलाके में आपराधिक षड्यंत्र रचने और दंगा भड़काने का दोषी माना गया. कांग्रेस के एक और बड़े नेता जगदीश टाइटलर पर भी दंगा भड़काने के आरोप लगे. उन पर गुरुद्वारा के सामने 3 सिखों की हत्या करने का आरोप लगा था. सिख दंगों को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी माफी मांग चुके हैं. उन्होंने कहा था कि “जो कुछ भी हुआ, उससे उनका सिर शर्म से झुक जाता है. इन दंगों की तपिश को आज तक सिख महसूस करते हैं.”
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