इस भारत भूमि ने ऐसे बेटों को जन्म दिया है, जिनकी शौर्य गाथा युगों-युगों तक गाई जाती रहेगी। भारत माता के ऐसे सपूत हैं मेजर शैतान सिंह। आज यानि 1 दिसंबर को उनका जन्मदिवस है। अपने 120 सैनिकों के साथ उन्होंने चीनी सेना को नाको चने चबवा दिए थे।
कुमाऊं रेजिमेंट के महान नायक मेजर शैतान सिंह ने 16 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई पर चुशूल सेक्टर के रेजांग्ला में भारी बर्फवारी के बीच दुश्मनों का बहादुरी के साथ मुकाबला किया। उनका शरीर गोलियों से छलनी होता रहा। किंतु आखिरी सांस तक उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा। मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। उनके नेतृत्व में लड़ा गया यह युद्ध इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय सेना की एक छोटी से टुकड़ी ने चीनी सेना को खदेड़ दिया था।
एक दिसंबर 1924 को जोधपुर राजस्थान के बाणासर गांव में लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह के घर में उनका जन्म हुआ। एक अगस्त 1949 को कमीशन प्राप्त किया और कुमाऊं रेजीमेंट में नियुक्ति प्राप्त की। 1962 में चीन ने उत्तरी सीमाओं पर आक्रमण कर दिया था। लेह-लद्दाख में मेजर शैतान सिंह इन्फैंट्री बटालियन की एक कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे। वह रेजांग्ला में तैनात थे। 18 नवंबर 1962 को चीन की सेना ने भारी मोर्टार तोपों और छोटे हथियारों से गोलाबारी शुरू कर दी। कुमाऊं रेजीमेंट की कंपनी में 120 सैनिक तैनात थे, जबकि दुश्मनों की संख्या काफी अधिक थी। इसके बावजूद भारतीय सेना ने कई दुश्मनों को मार गिराया। जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए मेजर शैतान सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर निर्भीक होकर दौड़ते रहे और स्वयं गोलाबारी करते हुए साथियों का हौसला बढ़ाते रहे।
इसी बीच उनके कंधे और पेट में गोलियां लग गईं और उनका खून लगातार बहता रहा। वह अंतिम सांस तक लड़ते रहे। जवानों ने उन्हें मोर्चे से हटाने का प्रयास किया, किंतु भारी मशीनगनों की गोलाबारी के बीच मेजर शैतान सिंह ने सैनिकों को वहां से हटाया। रेजांग्ला में उस वक्त भारी बर्फबारी हो रही थी।
विपरीत परिस्थितियों में अप्रतिम बहादुरी का परिचय देने के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र दिया गया। इस युद्ध में कुमाऊं रेजीमेंट के 114 जवान बलिदान हुए थे। लेकिन उन्होंने एक हजार से अधिक चीनी सैनिकों को यमलोक भेज दिया था।
17- 18 नवंबर 1962 को यह भीषण युद्ध हुआ था। रेगिस्तानी और मैदानी इलाकों के शूरवीरों ने बर्फीली चोटियों पर लड़ने के अभ्यस्त चीनियों को अपने शौर्य से परिचित कराया था। गोला बारूद खत्म होने पर हाथों, बूटों और संगीनों से हमला किया था। इन वीरों का पराक्रम देखकर चीनी सैनिक नतमस्तक हो गए थे। उन्होंने ब्रेव भी लिखा था। इस कुमाऊं बटालियन के अधिकांश जवान हरियाणा के रेवाड़ी, गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ और नारनौल के थे। इस युद्ध की स्मृति में हरियाणा के रेवाड़ी में रेजांग्ला स्मारक भी है।
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