भगवान राम, शिव, पार्वती उनके आराध्य ही नहीं, बल्कि पूर्वज भी हैं। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि नारी सशक्तिकरण का संदेश जनजातीय परंपराओं से ही मिलता है।
रांची में नवंबर को ‘जनजातीय देवलोक और धार्मिक परम्पराएं’ विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई। इसमें जनजातीय समाज के विभिन्न वर्गों के 22 प्रतिनिधियों के साथ-साथ इतिहासकारों और अन्य प्रबुद्ध लोगों ने भाग लिया।
जनजाति समाज के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि भगवान राम, शिव, पार्वती उनके आराध्य ही नहीं, बल्कि पूर्वज भी हैं। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि नारी सशक्तिकरण का संदेश जनजातीय परंपराओं से ही मिलता है।
रांची विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. दिवाकर मिंज ने कहा कि जनजातीय समाज को सनातनी समाज से अलग करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। इतिहासकार डॉ. आनंद वर्धन ने कहा कि शिव और पार्वती का जनजातीय समाज से बहुत गहरा संबंध है।
पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष करिया मुंडा ने संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि सनातन ही देश का प्राचीनतम धर्म है और जनजातीय समाज उसके वाहक हैं। भगवान बिरसा मुंडा के पौत्र सुखराम मुंडा ने कहा कि हमारी पूजा-पद्धति और परंपराओं को कुछ विदेशी ताकतों ने समाप्त करने का काम किया है। आरोग्य भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री डॉ. अशोक वार्ष्णेय ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया।
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