1889 में जब स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील को फांसी दी गई थी, उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार कुछ ही महीने के थे। इसके बाद भी राहुल गांधी ने कहा है कि टंट्या भील को फांसी पर चढ़वाने में संघ विचार परिवार ने मदद की थी।
ऐसा लगता है कि कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के सलाहकारों में ऐसे लोग हैं, जिन्हें न तो देश का इतिहास पता है, और न ही उन्हें भारत की संस्कृति की जानकारी है। इस कारण राहुल गांधी जो भी बोलते हैं, वे झूठे निकलते हैं। बाद में राहुल गांधी की ही किरकिरी होती है। इसका ताजा उदाहरण है महान स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील पर दिया गया उनका बयान। दो दिन पहले राहुल गांधी ने कहा था, ”अंग्रेजों ने टंट्या भील को फांसी पर चढ़ाया था और यह सब जानते हैं कि इस मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी विचारधारा ने अंग्रेजों की सहायता की थी।”
उल्लेखनीय है कि अपनी भारत यात्रा के दौरान राहुल गांधी इन दिनों मध्य प्रदेश में हैं। दो दिन पहले राहुल गांधी टंट्या भील की जन्मस्थली छैगांव माखन पहुंचे थे। यह गांव मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में पड़ता है। वहीं उन्होंने उपरोक्त बयान दिया था।
उनके इस बयान का विरोध करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा है कि राहुल गांधी का बयान एक महान स्वतंत्रता सेनानी का अपमान है। उन्होंने कहा कि राजनीति के लिए ऐसे समय में झूठ बोला जा रहा है, जब भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है।
वहीं वरिष्ठ पत्रकार और लेखक नरेन्द्र सहगल ने बताया कि अंग्रेजों ने 1889 में स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील को फांसी पर लटकाया था और उसी वर्ष संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्म हुआ था। यानी जब टंट्या भील को फांसी दी गई थी उस समय डॉ. हेडगेवार की आयु कुछ महीने की ही थी। उस समय न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ था और न ही उसकी विचारधारा थी। संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन हुई थी। फिर राहुल गांधी किस आधार पर यह कह रहे हैं कि टंट्या भील को फांसी दिलाने में संघ विचार परिवार का हाथ है! उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी अपने सलाहकारों में अच्छे लोगों को रखें।
बता दें कि महान स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील को टंट्या मामा भी कहा जाता है। ऐसे उनका असली नाम तांतिया था। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध जमकर लड़ाई लड़ी थी। जब तक उनके अंदर सांस रही तब तक वे अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते रहे। मध्य प्रदेश का जनजाति समाज अभी भी इन्हें अपना आदर्श मानता है।
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