बात 27 सितंबर 1981 की है। नयी दिल्ली के पंचतारा होटल अशोक में तबस्सुम के संगीतमय कार्यक्रम ‘तब्बसुम हिट परेड’ में जाने का आमंत्रण मिला। तबस्सुम को हम इससे पहले एक बाल कलाकार, एक अभिनेत्री के साथ दूरदर्शन के कार्यक्रम ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ की होस्ट के रूप में जानते थे। तबस्सुम का यह नया अवतार कैसा होगा। यह देखने के लिए जब मैं अशोक होटल पहुंचा तो हैरान रह गया। तबस्सुम के इस शो को देखने के लिए वहाँ का कन्वेन्शन हॉल खचाखच भरा था। लोग महंगी महंगी टिकट लेकर उस शो के शुरू होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।
बड़ी बात यह थी कि उस कार्यक्रम में उस दौर के तीन मशहूर सितारे मौजूद थे-संजय खान, सुलक्षणा पंडित और सारिका। लेकिन दर्शकों की ज्यादा दिलचस्पी तबस्सुम को देखने और उन्हें सुनने की थी। दो घंटे से ज्यादा चले इस कार्यक्रम में ये तीनों सितारे मंच पर कुल मिलाकर 15 मिनट बोले होंगे। लेकिन तबस्सुम और उनकी टीम के कलाकारों ने पूरा शो अपने कंधों पर उठाकर इतनी देर लगातार दर्शकों को बांधे रखा।
तबस्सुम ने कुछ समय पहले ही ‘तबस्सुम एंड हर परेड’ के नाम से अपना अलग संगीतमय समूह बनाया था। दिल्ली में तो उनका यह शायद पहला ही कार्यक्रम था। जिसे दिल्ली के ‘सरस्वती संगीत विद्यालय’ ने आयोजित कराया था। लेकिन उससे पहले मुंबई और देश-विदेश के कुछ अन्य शहरों में उनके इस समूह को इतनी सफलता मिल चुकी थी कि तबस्सुम ने इस शो का नाम बदलकर ‘तबस्सुम एंड हिट परेड’ कर दिया।
बात तबस्सुम की ज़िंदगी और उनके कामों की करें इससे पहले यह बताना भी जरूरी है कि तबस्सुम ने संगीतमय समूह क्यों बनाया। असल में उससे पहले तबस्सुम कल्याणजी आनंदजी सहित विभिन्न संगीतकारों के साथ जाकर उनके शो को होस्ट करने और उस दौरान अपने चुट्कलों को सुनाकर दर्शकों का मनोरंजन करती थीं। लेकिन उन शो का दारोमदार उस शो में आए किशोर, लता, आशा, रफी, मुकेश जैसे बड़े गायक-गायिकाओं पर और शो में आए बड़े सितारों पर होता था। दर्शक तब तबस्सुम नहीं इन बड़े कलाकारों को देखने सुनने आते थे।
एक बार तबस्सुम 1979 में किसी शो के सिलसिले में उद्घोषक के रूप में सैन फ्रांसिस्को गई हुई थीं। एक दिन वहाँ भ्रमण के दौरान तबस्सुम का एक चट्टान से पैर इयसा फिसला की वह बुरी तरह घायल हो गईं। पैर की हड्डी टूटने के कारण तो तबस्सुम को लंबे समय तक बिस्तर पर पड़ा रहना पड़ा। तबस्सुम ने अपने उन दिनों को याद करते हुए कहा था-‘’उस दुर्घटना ने ज़िंदगी के प्रति मेरा नज़रिया बदल दिया।मैंने सोचा ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं है। फिर यह भी कि क्या यह ज़िंदगी अपने आप में सिमट कर रहने के लिए है। मेरे अन्तर्मन से आवाज़ आई कि नहीं यह ज़िंदगी सिर्फ अपने लिए नहीं होनी चाहिए। इसे दूसरों के भले के लिए भी समर्पित होना चाहिए। तब मैंने अपने स्वार्थ से उठकर अपना यह संगीत समूह बनाया। जिससे मैं देश भर की प्रतिभाओं को चुनकर उन्हें एक प्लेटफॉर्म दे सकूँ। उन्हें काम, पहचान दे सकूँ। इस समूह से कितनी ही प्रतिभाओं को मंच देकर मुझे जो आत्म संतुष्टी मिली उसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती।‘’
फिल्मों की पहली स्टार बाल कलाकार
तबस्सुम का जन्म 9 जुलाई 1944 को मुंबई में हुआ था। हालांकि इनके पिता अयोध्या नाथ सचदेव मुंबई से पहले उत्तर प्रदेश में रहे। वह एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। तबस्सुम की माँ असगरी बेगम भी एक स्वतन्त्रता सेनानी होने के साथ पत्रकार भी थीं, जो उर्दू की एक पत्रिका ‘तनवीर’ निकाला करती थीं। बहुत कम लोग जानते हैं कि असगरी मशहूर शायर जोश मलीहाबादी की भांजी थी। साथ ही कुछ फिल्मों में उन्होंने संवाद भी लिखे। ‘तनवीर’ में किस्से, कहानियों, शेर ओ शायरी के साथ फिल्मों के बारे में भी प्रकाशित होता था। इसलिए मुंबई में इनके घर पर फिल्म से जुड़े लोग भी आते रहते थे।
अयोध्या नाथ और असगरी बेगम के यहाँ जब तबस्सुम का जन्म हुआ तो इनके पिता ने अपनी बेगम के मजहब का सम्मान करते हुए अपनी बेटी को तबस्सुम नाम दिया। जबकि माँ ने अपने पति के धर्म का सम्मान करते हुए उसे किरण बाला का नाम दिया। स्कूल में पढ़ाई के दौरान और कागज-पत्रों में सभी जगह इनका नाम किरण बाला सचदेव ही रहा। लेकिन घर में इन्हें तबस्सुम कहकर पुकारा जाता था। क्योंकि इनकी मुस्कान बचपन से ही बहुत मधुर थी। इसलिए बाद में वह तबस्सुम ही हो गईं।
तबस्सुम अभी ढाई साल की ही थीं कि इनकी मधुर मुस्कान निर्देशक डीडी कश्यप को इतनी पसंद आई कि उन्होने तबस्सुम को अपनी फिल्म ‘नर्गिस’ में बाल कलाकार के रूप में ले लिया। जिसमें नर्गिस नायिका थीं और रहमान नायक। तबस्सुम फिल्म में नर्गिस की छोटी से बहन बनी थीं। यह फिल्म हिट हो गयी। साथ ही तबस्सुम का काम सभी को इतना पसंद आया कि उनके पास फिल्मों का ढेर लग गया। तबस्सुम की लोकप्रियता का अंदाज़ इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जिस फिल्म में भी तबस्सुम होती थी, उसमें पोस्टर से लेकर पर्दे तक मुख्य कलाकारों में नायक नायिका आदि के बाद और बेबी तबस्सुम लिखा जाता था। इससे तबस्सुम को लगा कि उनका नाम ‘और बेबी तबस्सुम’ ही है। इसलिए जब भी कोई उनसे उनका नाम पूछता तो वह झट से बोलती-और बेबी तबस्सुम।
तबस्सुम के दमदार अभिनय को देख उस दौर के दिग्गज फ़िल्मकार सोहराब मोदी ने बेबी तबस्सुम को अपनी फिल्म ‘मंझधार’ के लिए 10 हज़ार रुपए में अनुबंधित करके सभी को हैरान कर दिया था। जबकि तबस्सुम का काम देखकर सोहराब मोदी इतने खुश हुए कि उन्होंने पुराना अनुबंध फाड़कर उन्हें 12 हज़ार कर दिया। साथ ही अयोध्यानाथ से मोदी ने यह भी कहा-‘’आपकी बेटी इससे ज्यादा की हकदार है। लेकिन मैं इससे ज्यादा नहीं दे सकता।‘’ यह घटना तब इतनी सुर्खियों में आई कि बड़े बड़े नायक-नायिका बेबी तबस्सुम को हैरत से देखने लगे। ‘बचपन के दिन भुला ना देना’ जैसे कई गीत बेबी तबस्सुम पर फिल्मांकित होने लगे। वह देश की पहली स्टार बाल कलाकार बन गईं। देखते देखते बेबी तबस्सुम ने 150 फिल्में कर डालीं। जिनमें ‘दीदार’, ‘सुहाग’, ‘बैजू बावरा’, ‘बड़ी बहन’, ‘छोटी भाभी’ ‘सरगम’ और ‘बहार’ भी हैं।
नायिका के रूप में नहीं सफलता
हालांकि हैरान कर देने वाली बात यह भी रही कि तबस्सुम बड़ी होने पर नायिका के रूप में सफल नहीं हो सकीं। नायिका के रूप में तबस्सुम की पहली फिल्म गुजराती की ‘लाखों बंजारों’ थी। फिल्म के नायक थे प्रदीप कुमार। यह फिल्म सफल रही। गुजराती की कुछ और फिल्में भी चल निकलीं। लेकिन हिन्दी फिल्मों के नाम पर तबस्सुम को कुछेक स्टंट फिल्मों में ही नायिका की भूमिका मिली। जिनमें ‘टारजन की महबूबा’, ‘सन ऑफ रॉबिनहुड’, ‘दारा सिंह आयरमैन’, ‘’जादूगर और लुटेरा’ ‘गोगोला’। लेकिन बाद में हिन्दी की बड़ी और अन्य फिल्मों में तबस्सुम को सहायक भूमिकाओं में ही संतोष करना पड़ा। जिनमें ‘धर्म पुत्र’, ‘फिर वही दिल लाया हूँ’ ‘मुगल ए आजम’, ‘हीर राँझा’, ‘’श्री कृष्ण लीला’, ‘प्यार का मौसम’ ‘गंवार’, ‘जॉनी मेरा नाम’ और ‘गँवार’ के नाम लिए जा सकते हैं। इस दौरान तबस्सुम ने विजय गोविल से विवाह भी कर लिया था। इधर जब तबस्सुम को लगा कि फिल्मों में उन्हें बड़ी भूमिकाएँ नहीं मिल रहीं तो उन्होने 1971 में ‘अधिकार’ फिल्म के बाद फिल्मों को अलविदा कह दिया।
हालांकि घर में खाली बैठे बैठे तबस्सुम बोर हो गईं। 1971 में ही उन्हें एक पार्टी में अमीन सयानी मिले। जो तब रेडियो सिलोन के अपने बिनाका गीतमाला’ कार्यक्रम से स्टार बन गए थे। उन्होने तबस्सुम को अपने साथ रेडियो कार्यक्रम में शामिल कर लिया। इससे तबस्सुम एक नयी भूमिका में आ गईं। यह भूमिका उनकी ज़िंदगी का तब एक बड़ा मोड़ बन गयी जब उन्हें दूरदर्शन के ‘कार्यक्रम ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ को होस्ट करने का मौका मिला। असल में 1972 में दूरदर्शन का मुंबई केंद्र खुला तो उस पर फिल्म आधारित कार्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया गया। ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ इस तरह दूरदर्शन का पहला टॉक शो बना और तबस्सुम टीवी की पहली होस्ट। तबस्सुम ने फिल्मों में अपने पुराने सम्बन्धों के चलते इस शो में बड़े बड़े कलाकारों के इंटरव्यू लेना शुरू किया तो यह शो सुपर हिट हो गया। इसे पहले दर्शक फिल्म सितारों को पर्दे पर सिर्फ उनकी भूमिकाओं में ही देखते थे। लेकिन इस शो से पहली बार सितारे अपने व्यक्तिगत रूप में दिखाई दिये।
‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ 1993 तक चला। जिसके पुराने अंश या उन पुराने यादों को नयी यादों के साथ जोड़कर तबस्सुम अपने यू ट्यूब चैनल ‘तबस्सुम टाकीज़’ में भी दिखाती बताती रहती थीं।
तबस्सुम ने अपना यू ट्यूब चैनल शुरू करने से पहले 1985 में एक बार फिर से फिल्मों में अभिनय भी किया था। चरित्र भूमिकाओं वाली उनकी फिल्मों में ‘चमेली की शादी’, ‘साहिल से दूर’ ‘हम नौजवान’, ‘सुर संगम,’ ‘नाचे मयूरी’ और ’हकीकत प्रमुख हैं।
साथ ही उन्होंने अपनी इकलौती संतान होशांग गोविल के लिए 1985 में एक फिल्म ‘तुम पर हम कुर्बान’ का निर्माण निर्देशन और लेखन भी किया। लेकिन यह फिल्म उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुई। इसके बाद 2006 में स्टार प्लस के सीरियल ‘प्यार के दो नाम, एक राधा एक श्याम’ में भी तबस्सुम ने अभिनय किया। लेकिन उसके बाद कुछ दिन फिल्मों-टीवी से दूर रहकर अपना यू ट्यूब चैनल शुरू किया तो यह सफल हो गया।
तबस्सुम का अब जब गत 18 नवंबर को दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ तब वह 78 साल की थीं। उनकी इच्छा थी कि उनके निधन का समाचार एक दो दिन बाद ही लोगों को बताया जाए। इसलिए 19 नवंबर शाम को उनके पुत्र होशांग और फिर उनके अभिनेता देवर अरुण गोविल (रामायण’ सीरियल के राम) ने तबस्सुम के निधन का समाचार साझा किया, तो सभी गमगीन हो गए।
तबस्सुम ने 78 बरस की उम्र में 75 बरस फिल्म-टीवी-रेडियो को देकर जो काम किया है, उसे भुलाना आसान नहीं। उनका हँसता-मुस्कुराता चेहरा हमेशा याद रहेगा।
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