उतर प्रदेश सरकार ने 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा देने के लिए दूसरे कार्यों से मुक्त कर शिक्षकों को नई जिम्मेदारी सौंपी है। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को पटरी पर लाने के लिए स्कूल शिक्षा महानिदेशक की नियुक्ति की गई है
जनवरी 2017 की बात है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की अगुआई वाली सपा सरकार का कार्यकाल पूरा होने को था और चुनाव सिर पर था। उस समय एक जनसभा में अखिलेश ने बड़े गर्व से एक किस्सा सुनाया था। उन्होंने कहा था, ‘‘प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों की दशा बहुत खराब है। मैं एक स्कूल में गया। वहां एक बच्चे से पूछा कि मुझे पहचानते हो? बच्चे ने कहा- हां। आपको पहचानता हूं। आप राहुल गांधी हैं।’’
कुछ समय पहले बजट सत्र के दौरान विधानसभा में उन्होंने यही किस्सा फिर सुनाया तो सपा सदस्यों के ठहाकों से सदन गूंज गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए। फिर गंभीर अंदाज में अखिलेश ने कहा था, ‘‘सरकार को इसका दुख नहीं है कि प्राथमिक शिक्षा में प्रदेश नीचे से चौथे स्थान पर है। इन्हें इस बात की खुशी है कि मैंने कांग्रेस के एक बड़े नेता का नाम ले लिया।’’ इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ‘‘बच्चे भोले-भाले होते हैं, मन के सच्चे होते हैं। जो भी बोला होगा सोच-समझ कर ही बोला होगा।’’ इस बार बारी भाजपा सदस्यों की थी। सदन एक बार फिर ठहाकों से गूंज उठा।
शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन
बेसिक शिक्षा की खस्ताहाल स्थिति से अवगत होने के बाद भी अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। उनके कार्यकाल में 2016-17 में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में जहां लगभग 1.52 करोड़ विद्यार्थियों ने दाखिला लिया, वहीं योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद विद्यार्थियों की संख्या बढ़कर 1.88 करोड़ हो गई।
अखिलेश के शासनकाल में विडंबना यह थी कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में तो हर विद्यार्थी दाखिला लेना चाहता था, लेकिन कोई भी संपन्न व्यक्ति अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वर्तमान भाजपा सरकार ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं।
गत दिनों मंत्रिमंडल बैठक में प्रस्ताव पारित कर स्कूल शिक्षा महानिदेशक का पद सृजित किया गया, जो शिक्षण कार्य में आमूलचूल परिवर्तन के लिए प्रभावी कदम उठाएंगे। महानिदेशक को प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। साथ ही, राज्य सरकार ने परिषदीय विद्यालयों की पुरानी व्यवस्था में भी अहम बदलाव किए हैं। इसके अनुसार, निर्धारित शिक्षण अवधि में शिक्षक विद्यालय प्रांगण से बाहर नहीं रहेंगे।
शिक्षकों को शिक्षण अवधि से 15 मिनट पूर्व विद्यालय में उपस्थित होना होगा और पढ़ाई खत्म होने के बाद कम से कम 30 मिनट विद्यालय में रहना होगा। इस दौरान उन्हें पंजिका व अन्य अभिलेख अद्यतन करने के साथ अगले दिन के लिए शिक्षण की रूपरेखा भी तैयार करनी होगी।
साप्ताहिक कैलेंडर का शत-प्रतिशत अनुपालन भी सुनिश्चित किया जाएगा। यदि शैक्षिक कैलेंडर में निर्धारित समय सारिणी का अनुपालन नहीं हुआ तो इसकी प्रतिपूर्ति के लिए अतिरिक्त कक्षा की व्यवस्था की जाएगी। यही नहीं, शैक्षणिक कार्य अवधि के दौरान रैली, प्रभात फेरी, मानव शृंखला और नवाचार गोष्ठी का आयोजन भी नहीं किया जाएगा।
शिक्षकों का काम सिर्फ पढ़ाना
स्कूल शिक्षा महानिदेशक विजय किरण आनंद द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि टाइम एंड मोशन स्टडी के आधार पर विद्यालयों में शैक्षणिक कार्यों के लिए अवधि एवं कार्य निर्धारण को लेकर की जा रही कार्यवाही संतोषजनक नहीं है। इसलिए सभी बेसिक शिक्षा अधिकारी अपने-अपने जनपद में इनका अनुपालन सुनिश्चित कराएं। साथ ही, उनसे स्कूलों में पढ़ाई के घंटे सहित शैक्षणिक कार्यों के लिए निर्धारित समय-सारिणी के पालन के संबंध में नवंबर तक रिपोर्ट भी मांगी है।
शासनादेश में प्रत्येक शैक्षिक सत्र में 240 शिक्षण दिवस का संचालन अनिवार्य किया गया है। निशुल्क पाठ्यपुस्तक वितरण, डीबीटी व अन्य सामग्री का वितरण विद्यालय अवधि के बाद करने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही, कहा गया है कि विद्यालयों में शैक्षणिक कार्य अवधि के दौरान शिक्षकों से किसी भी विभाग का हाउस होल्ड सर्वे नहीं कराया जाए। इसके अलावा, विद्यालय में अनुपस्थित मिलने पर शिक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी और उनका वेतन भी कटेगा।
शिक्षकों के लिए राज्य परियोजना कार्यालय और एससीईआरटी के प्रशिक्षणों में शामिल होना अनिवार्य किया गया है। नए निर्देशों के अनुसार, जिला या विकासखंड स्तर पर बीएसए या खंड शिक्षा अधिकारी किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण आयोजित नहीं करेंगे। अनधिकृत प्रशिक्षण आयोजित करने पर उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। परिषदीय शिक्षकों को जिला प्रशासन, बीएसए कार्यालय और खंड शिक्षा अधिकारी के कार्यालय से संबद्ध नहीं किया जाएगा।
शिक्षा सुधार की दिशा में बड़ा कदम
इससे पहले, टाइम एंड मोशन स्टडी के आधार पर विद्यालयों में शैक्षणिक कार्यों के लिए समय अवधि एवं कार्य निर्धारण के संबंध में 14 अगस्त, 2020 को शासनादेश जारी किया गया था। इसमें शैक्षणिक समय के अंतर्गत उल्लिखित समयानुसार प्रार्थना सभा अनिवार्य रूप से कराने पर जोर दिया गया था। इसके अलावा, विद्यालय में शैक्षणिक वातावरण बनाने के लिए अभिनव प्रयास करने के साथ यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया था कि ऐसी कोई भी गतिविधि या क्रिया-कलाप आयोजित नहीं किया जाए, जिससे पठन-पाठन प्रभावित हो।
प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने कहा, ‘‘शिक्षा सुधार की दिशा में सरकार द्वारा बड़ा कदम उठाया गया है। स्कूल शिक्षा महानिदेशक का पद सृजित होने से कक्षा एक से लेकर कक्षा 12वीं तक पठन-पाठन पर बेहतर ढंग से ध्यान दिया जा सकेगा। महानिदेशक पर प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी होगी। हम चाहते हैं कि बच्चों की शिक्षा ठीक हो और योजनाएं तेजी से धरातल पर उतरें।’’
कौशाम्बी जनपद के कंपोजिट स्कूल, लधौना के प्रधानाध्यापक पंकज सिंह कहते हैं कि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग अब स्कूल शिक्षा महानिदेशक के नियंत्रण में आने से बच्चों के पाठ्यक्रम सिलसिलेवार ढंग से बनाए जा सकेंगे और उसी के अनुसार उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। वहीं, शिक्षक नेता एवं राष्ट्रीय प्रशिक्षण अभियान के प्रदेश सह संयोजक शैलेश पाण्डेय का कहना है कि कक्षा एक से 12वीं तक की शिक्षा एक ही जगह से नियंत्रित होने पर पठन-पाठन के स्तर में सुधार तो आएगा ही, छात्र-छात्राओं को अपना लक्ष्य निर्धारित करने में भी आसानी होगी।
योगी सरकार का ‘स्कूल चलो अभियान’
राज्य सरकार ने 6 से 14 वर्ष के बच्चों को स्कूलों से जोड़ने के लिए अभियान चलाया है। इसके तहत, 2 करोड़ बच्चों को स्कूलों से जोड़ने का लक्ष्य है। अभी तक सूबे के 75 जिलों के 1.3 लाख स्कूलों में 1.88 करोड़ बच्चों का नामांकन कराया जा चुका है, जो नियमित रूप से स्कूल जा रहे हैं। बेसिक शिक्षा विभाग के तुलनात्मक अध्ययन के अनुसार ‘स्कूल चलो अभियान’ के अंतर्गत सभी जिलों में अभिभावकों से बच्चों का नामांकन अनिवार्य रूप से कराने की अपील की गई है।
राज्य सरकार ने परिषदीय विद्यालयों की पुरानी व्यवस्था में भी अहम बदलाव किए हैं। इसके अनुसार, निर्धारित शिक्षण अवधि में शिक्षक विद्यालय प्रांगण से बाहर नहीं रहेंगे। शिक्षकों को शिक्षण अवधि से 15 मिनट पूर्व विद्यालय में उपस्थित होना होगा और पढ़ाई खत्म होने के बाद कम से कम 30 मिनट विद्यालय में रहना होगा। इस दौरान उन्हें पंजिका व अन्य अभिलेख अद्यतन करने के साथ अगले दिन के लिए शिक्षण की रूपरेखा भी तैयार करनी होगी।
इसके अलावा, ईंट-भट्ठों एवं अन्य उद्योगों में लगे बाल श्रमिकों का भी स्कूलों में दाखिला कराया गया है। इन बच्चों की पढ़ाई सुचारू रूप से चलती रहे, इसके लिए उन्हें समय पर कॉपी-किताब, स्कूल ड्रेस के अलावा ठंड से बचाव के लिए स्वेटर और जूते-मोजे भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके अलावा, ऐसे बच्चों को विशेष प्रशिक्षण देकर समाज की मुख्यधारा में शामिल करने की भी व्यवस्था की गई है।
इसके लिए राज्य सरकार ने प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विशेष प्रशिक्षण देने के लिए 2021-22 में 21,30,38,340 रुपये का बजट जारी किया। बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से 7-14 वर्ष के ऐसे ऐसे बच्चे जो किसी कारण से शिक्षा से वंचित हैं, उन्हें स्कूल में दाखिल कराने के लिए ‘शारदा कार्यक्रम’ चलाया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत प्रदेश में दो लाख से अधिक बच्चों को चिह्नित किया गया है।
मेधा पलायन थमा
प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा बताते हैं कि पहले प्रदेश से मेधा का पलायन होता था। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में उठाए जा रहे कदमों का परिणाम यह है कि अब 14 से अधिक देशों के विद्यार्थी यहां पठन-पाठन कर रहे हैं। हमारे चार उद्देश्य हैं- सुखी मन अध्यापक, तनाव मुक्त विद्यार्थी, रोजगारपरक शिक्षा और नकलविहीन परीक्षा। पहले नकल और परीक्षा केंद्र आवंटन उद्योग बन गया था। हमने व्यवस्था को आनलाइन करने के साथ 1.94 लाख सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए। इससे परीक्षा पारदर्शी हुई। इसके अलावा, विद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाई के लिए पूरे सत्र की समय सारणी बनाई गई।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पहली बार पाठ्यक्रम में परिवर्तन कर इसे रोजगारपरक बनाया गया है। साथ ही, शीर्ष 10 संस्कृत विद्यार्थियों को एक लाख रुपये और टैबलेट दिए गए व संस्कृत निदेशालय के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की गई। बेसिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में डेढ़ लाख शिक्षकों की नियुक्ति पारदर्शी तरीके से हुई है।
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