उत्तराखंड के साहिया में वीर योद्धा नंत राम नेगी की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य सुरेश भैय्या जी शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा कि समस्त भारत देवभूमि है, उत्तराखंड देवभूमि का नेतृत्व करता है। मानव जाति का विकास और देश का सामूहिक विकास तभी संभव है। जब हम सृष्टि को समझें, इसके लिए संतुलन आवश्यक है।
भैय्या जी जोशी ने कहा कि उत्तराखंड देव भूमि तो है, ही इसी के साथ-साथ इसका इतिहास भी वीर योद्धाओं की शहादत से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि मात्र इक्कीस साल की आयु में मुगलों के साथ वीरता से युद्ध लड़ने वाले और बलिदान देने वाले सिरमौर जौनसार बावर के योद्धा नंत राम नेगी की वीरगाथा को घर-घर में सुनाए जाने की जरूरत है। नंत राम नेगी के स्मारक स्थल पर करीब नौ फुट ऊंची पीतल की प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस प्रतिमा के लिए पीतल सेवा प्रकल्प संस्थान द्वारा जौनसार बावर के घर-घर से जुटाया गया।
अब आपको बतातें हैं, कि योद्धा नंत राम नेगी कौन थे ? गुलदार की उपाधि से सम्मानित नंत राम नेगी जिन्हें नतिया नेगी भी कहते हैं। उनके वंशजों को जहां उनकी मौत के बाद जौनसार के तमसा नदी क्षेत्र के मलेथा गांव सहित कालसी की जागीर मिली, वहीं यह वीर आज भी अपनी वीरगाथा की गूंज हर तीज त्यौहार में हारुल के रूप में तमसा यमुना घाटी के आर-पार के गांवों में बिखेरते रहते हैं।
13 फरवरी 1746 का वह दिन भला कौन भूल सकता है, जब जीत के जश्न में चूर मुगल सेना द दून घाटी में गौ हत्या और गुरु राम राय के गुरुद्वारे को रौंदती सिरमौर पहुंच गई थी। सवा लाख मुगल सेना ने ऐसे दौर में सिरमौर घेरा जब राजा प्रताप प्रकाश लम्बी बीमारी में जिंदगी की अंतिम सांसें गिन रहे थे, व राजा जगत प्रकाश सिंहासन रूढ़ हुए थे, तब उन्होंने अपने सेनापति भूप सिंह की सलाह पर नंत राम को अपनी सेना की कमान सौंपी।
पोंटा साहिब के पास जमुना किनारे डेरा डाले हुए, जब पूरी मुगल सेना मद व नशे में चूर विजयी जश्न में डूबी थी, तब एक तूफान आया और मुगलों के लिए कहर बन गया। जैसे ही मुगल सेनापति सरदार कादिर खान रोहिल्ला अपने टेंट में घुसा उसकी गर्दन लुढ़कती हुई, अपने तम्बू से बाहर गिर गई। वहीं जब तक मुगल सेना यह सब समझ पाती तब तक नतिया नेगी अंगरक्षकों व सैनिकों की गर्दन मूली, गाजर की तरह काटता हुआ, अपने गांव के तरफ घोड़ा दौड़ाता निकल गया।
कहा जाता है, कि सिरमौर सेना उस वक्त मुगलों की सेना का रौद्र रूप देख कर भयग्रस्त हो गई थी, और उसने नतियाराम नेगी को कोई सहयोग नहीं किया था, नतिया राम अकेले इस विशाल सेना से संघर्ष करता रहा और अपने सैनिकों को धिक्कारता हुआ, अल सुबह मार्कण्डे डांडा की चढ़ाई चढ़ने लगा, लेकिन वो और उसका घोड़ा सुबह की उजली किरण में मुगल सैनिकों को दिख गया। जिनके सैकड़ों तीर एक साथ घोड़े व नतिया का अंग चीरते चले गए। 14 फरवरी 1746 को सुबह की किरणों के साथ इस वीर यौद्धा व उसके घोड़े ने अंतिम सांस ली। 1725 में जन्में नंत राम नेगी की उम्र उस वक्त मात्र 21 साल थी, कहा तो यह भी जाता है, कि नतिया गढ़ राज्य के वीर भड़ रिखोला नेगी व सिरमौर राजा की पुत्री ऐश्वर्या का पुत्र था, जो अपने पिता से विरासत में मिले वैराट गढ़ का क्षत्रप था। इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में आज भी कई चीजें दफन हैं, जिन्हें एक गंभर शोध के साथ सामने लाने की आवश्यकता है।
बहरहाल, गुलदार नतिया राम जिसके वंशजों के राजा जगतप्रकाश ने ‘नेगी’ पदवी व ‘गुलदार’ की उपाधि से सम्मानित किया, उसकी विशाल प्रतिमा का अनावरण सोमवार को साहिया में हुआ है। ऐसे वीर योद्धा व थाती माटी को हर भारतवासी प्रणाम करता है।
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