भारत-चीन संबंधों के डगमगाते कदमों के बीच चालाक ड्रैगन अब एक और पैंतरा सामने लाया है। उसने उइगर बहुत सिंक्यांग प्रांत और तिब्बत को जोड़ते राजमार्ग पर कई गांवों, सड़कों और पुलों के नाम उन सैनिकों के नाम पर रखे हैं, जो जून 2020 में गलवान में भारत के बहादुर और निहत्थे सैनिकों के हाथों हलाक हुए थे। चीन के सरकारी मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने इस समाचार में बताया है कि आज मारे गए उन सैनिकों के नाम तिब्बत से लेकर सिंक्यांग स्वायत्त क्षेत्र तक जाते जी-219 मार्ग पर साइनबोर्ड पर दिखाई देने लगे हैं।
चीन ने खासकर ऐसे चार सैनिकों के नामों पर कई सड़कों, पुलों और गांवों को नाम दिए हैं जिन पर शायद उसे बड़ा ‘नाज’ है। ग्लोबल टाइम्स के समाचार के अनुसार, गलवान में मारे गए सैनिकों के नाम उनके अपने शहरों, गांवों को दिए गए हैं, और साथ ही जी-219 राजमार्ग पर पड़ने वाले 11 पुलों को भी उन्हीं का नाम दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि गलवान में मरे सैनिकों की याद में स्थानों के ये नए नाम रखने से कुछ ही दिन पहले बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी और चाइना का महाधिवेशन संपन्न हुआ था। उसमें गलवान में लड़ा चीनी सैन्य कमांडर क्यूई फाबाओ भी प्रतिनिधि के नाते शामिल हुआ था। ये फाबाओ बहादुर भारतीय सैनिकों के साथ गालवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष में बुरी तरह घायल हुआ था।
चीनी सेना पीएलए की गलवान लड़ाई का एक वीडियो भी उक्त अधिवेशन के उद्घाटन वाले दिन यानी 16 अक्तूबर को ‘ग्रेट हॉल ऑफ पीपुल’ में बड़े पर्दे पर दिखाया गया था। उस वीडियो में फाबाओ को देखा जा सकता था। अधिवेशन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तीसरी बार सत्तारूढ़ पार्टी का महासचिव चुना गया था।
फाबाओ का वह वीडियो दिखाना और अब सड़कों, पुलों के नाम अपने मारे गए सैनिकों के नाम पर रखकर चीन क्या दिखाना चाहता है? इस सवाल पर कुछ विशेषज्ञों की राय है कि बीजिंग फौज का मनोबल बढ़ाए रखना चाहता है क्योंकि उसके कई देशों से सीमा विवाद चल रहे हैं। इसके अलावा उसके विस्तारवादी मंसूबे तो हैं ही। शी जिनपिंग सेना के सर्वोच्च कमांडर हैं इसलिए नई कार्यकारिणी में सेना का दखल भी अब ज्यादा दिख रहा है। चीन के आक्रामक पैंतरों के प्रति भारत को और सावधान रहने की जरूरत है।
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