बलूचिस्तान की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे छात्रों के संगठन बीएसओ आजाद ने कहा है, ‘‘बलूच शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन सशस्त्र बलों ने उन पर फायरिंग कर दी जिसमें कई लोगों की जान चली गई। यह बलूचों को उकसाने की कार्रवाई है।’’
ईरान में सिस्तान और बलूचिस्तान का इलाका सुलग रहा है। एक नाबालिग बलूच लड़की के साथ हिरासत में बलात्कार के कारण लोगों में उबाल है और इस उबाल को देख ईरानी सुरक्षा बलों ने जिस तरह आपा खोया, उसने वहां गंभीर हालात पैदा कर दिए हैं। ईरान में कुर्द युवती महसा अमीनी की मौत के बाद से पहले से ही हिजाब विरोधी आंदोलन भड़का हुआ है।
पहले से तय थी गोलाबारी की योजना
इस हिंसा की शुरुआत सिस्तान की राजधानी जेहदान से हुई। 27 सितंबर को इस खबर के आने के बाद से ही कि चाबहार के पुलिस प्रमुख इब्राहीम कोचजई ने हिरासत में एक 15 साल की बलोच बच्ची के साथ बलात्कार किया है, लोग गुस्से में थे। प्रशासन की ओर से बच्ची के परिवार पर मामले को रफा-दफा करने का दबाव डाला गया, लेकिन परिवार झुका नहीं। तीन दिन बाद जेहदान में जब जुमे की नमाज खत्म होते लोग उस पुलिस अफसर इब्राहीम को गिरफ्तार करने और सजा देने के नारे लगाने लगे।
उसी समय सैनिकों ने उन पर फायरिंग शुरू कर दी। प्रदर्शन के 10 मिनट के भीतर सेना के हेलिकॉप्टर पहुंच गए और उनसे भी फायरिंग शुरू कर दी गई। इससे यह संदेह पैदा होता है कि ईरान प्रशासन ने पहले ही विरोध से इसी तरह निपटने का फैसला कर लिया था। उसके बाद चारों ओर प्रदर्शन शुरू हो गए। लोगों ने सरकारी दफ्तरों और सुरक्षाबलों की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया।
बलूचिस्तान में इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के इंटेलिजेंस कमांडर अली मौसावी की भी हत्या कर दी गई। ईरान में बलूचिस्तान की आजादी के लिए संशस्त्र संघर्ष कर रहे संगठन जैश अल-अद्ल ने मौसावी की हत्या की जिम्मेदारी ली है। ईरान मानवाधिकार संगठन के मुताबिक हिंसा में कम से कम 133 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हैं। मरने वालों की संख्या के अभी और बढ़ने का अनुमान है।
पूरे इलाके पर असर
इस बीच, बलूचिस्तान की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे छात्रों के संगठन बीएसओ आजाद ने कहा है, ‘‘बलूच शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन सशस्त्र बलों ने उन पर फायरिंग कर दी जिसमें कई लोगों की जान चली गई। यह बलूचों को उकसाने की कार्रवाई है।’’
बलूचिस्तान से ईरान की लगभग 575 मील लंबी सीमा लगती है और अफगानिस्तान के साथ-साथ ईरान के सीमावर्ती इलाकों में बलूच आबादी रहती है। सिस्तान और बलूचिस्तान क्षेत्रफल के हिसाब से ईरान का दूसरा सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यहां केवल 3 प्रतिशत आबादी रहती है। इस प्रांत के दो भाग हैं- उत्तरी सिस्तान जहां शिया रहते हैं और दक्षिणी बलूचिस्तान जहां बलूच रहते हैं।
शिया बहुल ईरान के इस प्रांत में सुन्नी बलूच बहुमत में हैं। इसी प्रांत में ओमान की खाड़ी के तट पर चाबहार बंदरगाह है, जहां के पुलिस प्रमुख की करतूत ने पूरे इलाके को आग में झोंक दिया है। चाबहार से लगभग पौने दो सौ किलोमीटर नीचे ग्वादर बंदरगाह स्थित है। चूंकि बलूचों की आबादी ईरान और अफगानिस्तान के सीमांत इलाकों में भी रहती है, इस दृष्टि से सीमा के पार जाने वाला कोई भी बलूच विद्रोह पूरे इलाके को प्रभावित करता है।
क्वेटा के एक छात्र कहते हैं, ‘‘ईरान जिस तरह बलूचों के खिलाफ बेवजह ताकत का इस्तेमाल कर रहा है, उसका नतीजा भी वही होगा जैसा पाकिस्तान में हुआ।’’ पाकिस्तान में बलूचों के खिलाफ जुल्म के बढ़ने के कारण हजारों लोग सीमा पार कर सिस्तान चले गए। लेकिन वहां उन्हें शरणार्थी के तौर पर भी स्वीकार नहीं किया गया है और इस कारण उन्हें स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं हासिल नहीं हैं। लेकिन पहले कम से कम इतना था कि वे वहां जिंदा रह सकते थे।
बलूचों के सामने रास्ता नहीं
अब स्थिति यह है कि बलूच पाकिस्तान और ईरान के बीच ‘सैंडविच’ बनकर रह गए हैं। इसमें शक नहीं कि ईरान के हालात बिगड़ने का बलूचों पर काफी असर पड़ेगा। लेकिन इसका ज्यादा असर ईरान पर पड़ने जा रहा है। एक राजनीतिक कार्यकर्ता कहते हैं, ‘‘इस बार जो भी हुआ, उसकी पहले से कोई तैयारी नहीं थी। लेकिन अगर बलूचों को हथियारबंद संघर्ष की ओर धकेला गया, तो इसका ईरान पर बहुत बुरा असर होगा।’’ वैसे भी अगर ईरान के साथ संघर्ष बढ़ा तो बलूचों के पास खोने को कुछ भी नहीं हैं।
बलूच समाज में महिलाओं को बड़ी इज्जत के साथ देखा जाता है और यही कारण है कि ईरान में इतना बड़ा बवाल मचा हुआ है। इस राजनीतिक कार्यकर्ता ने आगे कहा हैं, ‘‘अगर आप पाकिस्तान के अनुभवों से सीख नहीं सकते तो अपने लिए बड़ी मुसीबत बुला रहे हैं। बलूच समाज में औरतों की इज्जत तथाकथित आधुनिक समाज से कहीं ज्यादा है और अगर उनके साथ कुछ होता है तो बलूचों का खून खौल उठता है। ईरान में इसी वजह से बवाल मचा।’’
ईरान का संघर्ष किधर जा रहा है, इसे एक सामाजिक कार्यकर्ता अलग नजरिये से देखते हैं। वे कहते हैं कि ‘‘दोनों की कौमी रवायतों में काफी फर्क है। ईरान में लोग आम तौर पर हथियार नहीं रखते और निकाह के बाद बच्चे मां-बाप से अलग रहते हैं। इसलिए वहां परिवार और समाज में वह एकजुटता नहीं हैं। वहीं, कबाइली रस्म-रिवाजों के साथ रहने वाले बलूचों में परिवार ही नहीं, पूरी कौम के लिए जान देने और जान लेने का जज्बा होता है। ऐसे में अगर बलूचों को मजबूर किया गया तो इसका नतीजा पूरे ईरान को भुगतना पड़ सकता है।’’
बलूचिस्तान की आजादी के लिए गुरिल्ला युद्ध कर रहे एक युवक का कहना है कि ‘‘दुनिया ने बलूचों का साथ नहीं दिया लेकिन कुदरत ने उसकी बड़ी मदद की। बलूचिस्तान की पहाड़ियों ने हमेशा बलूचों का साथ दिया और उन्हें छापामार लड़ाई का उस्ताद बनाया जिसकी वजह से आज पाकिस्तान और चीन, दोनों की पेशानी पर बल पड़े हुए हैं। ऐसे में अगर ईरान ने बलूचों पर जंग थोपी, तो उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।’’
ईरान के बलूच इलाके में उथल-पुथल का एक असर यह भी होगा कि ग्रेटर बलूचिस्तान की मांग जिंदा हो जाएगी। एक समय था जब निर्वासन की जिंदगी बिता रहे बलूच नेता बरहमदाग बुगती मानते थे कि ‘‘आजाद बलूचिस्तान से हमारा मतलब उस इलाके से है, जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है और हम ग्रेटर बलूचिस्तान की बात नहीं करते, क्योंकि अफगानिस्तान और ईरान की बलूच आबादी उन मुल्कों में ठीक से रह रही है और जब वे वहां खुश हैं तो हमें कोई दिक्कत नहीं।’’ लेकिन अगर ईरान में हालात ऐसे ही रहे तो कल के बलूच आंदोलन की रूपरेखा क्या होगी, कहना मुश्किल है।
ग्वादर के एक व्यक्ति कहते हैं, ‘‘अगर ईरान में सशस्त्र छापामार संघर्ष का दायरा बढ़ता है तो शायद इस बार के हालात कुछ और हों। हो सकता है कि ईरान के दुश्मन देशों से मदद मिल जाए और फिर कहानी कुछ और हो जाए।’’
ईरान से अमेरिका की अदावत कोई छिपी बात नहीं है और जिस तरह हाल के समय में यह बात जाहिर हो चुकी है कि पूरा ईरान शासन-प्रशासन के खिलाफ एकजुट हो सकता है, आगे का रास्ता ईरान के भीतर बड़े बदलाव के संकेत दे रहा है और इसमें आजाद बलूचिस्तान का आंदोलन कैसे, क्या शक्ल लेता है, यह देखने वाली बात होगी।
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