उज्जैन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार शाम को महाकाल मंदिर के समीप 46 हेक्टेयर क्षेत्र में 856 करोड़ रुपये की लागत से बनाए जा रहे महाकाल लोक कॉरीडोर के प्रथम चरण के कार्यो का लोकार्पण करेंगे। यह भारत का सबसे बड़ा सांस्कृतिक गलियारा है। यह 900 मीटर लम्बा है और इसके साथ दो राजसी प्रवेश द्वार हैं, जोकि प्राचीन वैभव समेटे हैं।
उज्जैन आगमन पर हरीफाटक ओवरब्रिज की ओर से त्रिवेणी संग्रहालय जाते हैं, वहीं से महाकाल लोक पहुंचने के लिए रास्ता मिलता है। संग्रहालय के ठीक सामने लगभग 450 वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था है। पार्किंग शेड के ऊपर सोलर पैनल लगाये गये हैं। दो प्रवेश द्वार बनाए गए हैं, जिन्हें नन्दी द्वार और पिनाक द्वार नाम दिया गया है। पार्किंग के ठीक सामने पिनाक द्वार है। श्री महाकाल लोक में प्रवेश करने के पहले नन्दी द्वार बनाया गया है। द्वार के बाहरी हिस्से में भगवान गणेश के दर्शन होते हैं। प्रवेश द्वार पर विशाल नन्दी की प्रतिमा बनाई गई है, जो कि अत्यन्त आकर्षक है।
बलुआ पत्थरों से निर्मित दीवार पर शिव लीला
श्री महाकाल लोक में राजस्थान में पहाड़पुर क्षेत्र से प्राप्त बलुआ पत्थरों का उपयोग संरचनाओं के निर्माण के लिये किया गया है। राजस्थान, गुजरात और ओडिशा के कलाकारों और शिल्पकारों ने मुख्य रूप से बलुआ पत्थरों को तराशकर और उन्हें अलंकृत कर सौंदर्य स्तंभों और पैनल में तब्दील किया है। महाकाल लोक के दाहिनी तरफ कमल ताल, शिव स्तंभ, सप्तऋषि परिसर, पब्लिक प्लाजा और नवग्रह परिसर बनाये गये हैं। यहां पर बैठक व्यवस्था भी की गई है। पास ही में कमल ताल है,जहां 25 फीट ऊंची शिव की प्रतिमा बनाई गई है।
पैदल चलते हुए शिव, देवी और श्रीकृष्ण से जुड़ी प्रतिमाएं नजर आती हैं। चित्रों के नीचे सम्बन्धित कथाएं भी अंकित की गई हैं। क्यूआर कोड भी बनाये गये हैं, जिन्हें मोबाइल से स्कैन कर कथा सुनी जा सकती है। इनमें शिव बारात का आकर्षक चित्रण किया गया है। एक शिल्प में कैलाश पर्वत को रावण ने उठा रखा है। कैलाश पर शिव परिवार भी विराजित है। एक शिल्प में देवी की नृत्य मुद्रा बनाई गई है। सप्तऋषि परिसर में ऋषियों की विशाल प्रतिमाओं के दर्शन के साथ उनके बारे में आवश्यक जानकारी दी गई है। त्रिपुरासुर वध का चित्रण विशाल शिल्प में किया गया है। यहां रथ पर सवार भगवान शिव त्रिपुरासुर का वध कर रहे हैं। पिनाक द्वार उनके लिये है जो सीधे मन्दिर में प्रवेश करना चाहते हैं। यह पौराणिक रूद्र सागर का घाट है। रूद्र सागर में लाईट एण्ड साउण्ड शो,लेजर शो और वाटर कर्टन शो दिखाये जायेंगे।
देश की सबसे भित्ति चित्र वाली दीवार
महाकाल लोक में देश की सबसे लम्बी भित्ति चित्र वाली दीवार है। इस दीवार पर पत्थरों पर शिव कथाएं उकेरी गई हैं। महाकाल लोक दो हिस्सों में बना है। एक तरफ पैदल पथ और दूसरी तरफ ई-कार्ट पथ। दोनों पथ के बीच 108 शिवस्तंभ शिव की विभिन्न मुद्राओं सहित निर्मित हैं, जो अलग ही छटा बिखेर रहे हैं। यह स्तंभ साधारण नहीं है, हर स्तंभ पर शिव की नृत्य मुद्रा अंकित है। इन्हीं पर सीसीटीवी कैमरे भी लगाये गये हैं।
महाकाल लोक में शॉपिंग कॉम्पलेक्स भी बनाया गया है, जहां फूल-प्रसाद से लेकर धर्म और संस्कृति से जुड़ी विभिन्न वस्तुओं की दुकानें प्रारम्भ होंगी। कॉम्पलेक्स के समीप फेसिलिटी सेन्टर क्रमांक-2 स्थित है, जहां जूते- चप्पल और बैग जमा करने की व्यवस्था की गई है। समीप ही शौचालय और नाश्ते तथा शुद्ध पेयजल की व्यवस्था भी की गई है।
महाकाल लोक में देश का पहला नाइट गार्डन बनाया गया है, जहां दिन में भी रात्रि का एहसास होता है। गोलाकार नाइट गार्डन के बीच भगवान शिव की विशाल ध्यानमग्न प्रतिमा बनाई गई है। इसके ठीक सामने के हिस्से में नीलकंठ परिसर है। लगभग 20 एकड़ में फैले महाकाल लोक में आकर्षक विद्युत सज्जा की गई है। रात्रि के समय जब मूर्तियों और म्युरल्स पर रोशनी पड़ती है तो पूरा लोक स्वर्णिम आभा से चमकने लगता है। महाकवि कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तम में वर्णित बागवानी प्रजातियों के पौधों को महाकाल लोक में लगाया गया है। इनमें रूद्राक्ष, बकुल,कदंब, बेलपत्र, सप्तपर्णी आदि शामिल हैं।
महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार से भी किया गया है
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥
इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर-लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है। मान्यता के अनुसार महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति हैं, साथ ही तीनों लोकों के और सम्पूर्ण जगत के अधिष्ठाता भी है। कई धार्मिक ग्रंथों जैसे शास्त्रों और पुराणों में उनका ज़िक्र इस प्रकार किया गया है कि उनसे ही कालखंड, काल सीमा और काल विभाजन जन्म लेता है और उन्हीं से इसका निर्धारण भी होता है। इसका अर्थ ये है कि उज्जैन से ही समय का चक्र चलता है, पूरे ब्रह्माण्ड में सभी चक्र यहीं से चलते हैं। फिर चाहे पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना हो, चंद्रमा का पृथ्वी का चक्कर लगाना, पृथ्वी का सूर्य का चक्कर लगाना हो या फिर आसमान में किसी प्रकार का चक्र हो यह सब क्रियाएं महाकाल को साक्षी मानकर ही होती हैं।
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