महर्षि वाल्मीकि : रामकथा के प्रथम प्रवक्ता
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम धर्म-संस्कृति

महर्षि वाल्मीकि : रामकथा के प्रथम प्रवक्ता

महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था

by पूनम नेगी
Oct 9, 2022, 12:16 pm IST
in धर्म-संस्कृति
महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकि

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

‘रामायण’ के सृजेता महर्षि वाल्मीकि को देवभाषा संस्कृत का पितामह माना जाता है। महर्षि वाल्मीकि के जीवन में घटित एक घटना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जीवनगाथा के लेखन का आधार मानी जाती है। कथानक है कि एक दिन वह तमसा नदी पर स्नान करने के लिए जा रहे थे तभी उनकी दृष्टि वहां प्रेम निमग्न क्रौंच पक्षियों के एक जोड़े पर पड़ी। तभी एक व्याध्र ने अपने बाण से नर क्रौंच को मार दिया और साथी की मृत्यु से आहत मादा क्रौंच ने भी करुण-क्रंदन करते हुए कुछ ही पल में अपने प्राण त्याग दिये। यह करुण दृश्य देख कर कर महर्षि वाल्मीकि का हृदय द्रवित हो उठा और पीड़ा से उनके मुख से सहज ही यह श्लोक निकला – मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥ अर्थात्– अरे बहेलिये (निषाद), जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी। तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला।

महर्षि आश्रम लौटे तो सोचने लगे कि क्यों उनके मुख से बहेलिए के प्रति ऐसे शाप-वचन निकले। इस पूरी घटना का वर्णन उन्होंने अपने शिष्य भरद्वाज से किया। उस दौरान उनके मुख से अनायास जो ‘श्लोक’ निकला था उसमें आठ-आठ अक्षरों के चार चरणों, कुल बत्तीस अक्षर थे। इस ‘श्लोक’ को उन्होंने अनुष्टुप छंद निबद्ध नाम दिया। तभी सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिये और देवर्षि नारद द्वारा उन्हें सुनायी गयी रामकथा का स्मरण कराकर महर्षि को प्रेरित किया कि वे पुरुषोत्तम राम की कथा को देवभाषा में काव्यबद्ध करें। रामायण के इन दो श्लोकों में इस प्रेरणा का उल्लेख है-

रामस्य चरितं कृत्स्नं कुरु त्वमृषिसत्तम ।
धर्मात्मनो भगवतो लोके रामस्य धीमतः ।।
वृत्तं कथय धीरस्य यथा ते नारदाच्छ्रुतम् ।
रहस्यं च प्रकाशं च यद् वृत्तं तस्य धीमतः ।।
ऋषि-सत्तम, त्वम् रामस्य कृत्स्नं चरितं कुरु, कस्य |
लोके धर्मात्मनः धीमतः भगवतः रामस्य ||
(रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक ३२ एवं ३३)

अर्थात्– हे ऋषिश्रेष्ठ, तुम श्रीराम के समस्त चरित्र का काव्यात्मक वर्णन करो, उन भगवान् राम का जो धर्मात्मा हैं, धैर्यवान् हैं, बुद्धिमान् हैं। देवर्षि नारद के मुख से जैसा सुना है, वैसा उस धीर पुरुष के जीवनवृत्त का बखान करो; उस बुद्धिमान् पुरुष के साथ प्रकाशित (ज्ञात रूप में) तथा अप्रकाशित (अज्ञात रूप में) जो कुछ घटित हुआ उसकी चर्चा करो। सृष्टिकर्ता ने उन्हें आश्वस्त किया कि अंतर्दृष्टि के द्वारा उन्हें श्रीराम के जीवन की घटनाओं का ज्ञान हो जायेगा।

इस तरह देवर्षि नारद द्वारा बतायी गयी बातें, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के आशीर्वाद और अन्तःप्रेरणा से महर्षि वाल्मीकि ने देवभाषा में जिस प्रथम रामकथा की रचना की; कालांतर में वह अन्य सभी भाषाओं में रचित रामकथा की प्रेरणा और आधार बनी। क्रौंच पक्षी के वध के दौरान ऋषि वाल्मीकि के मुख से जो श्लोक फूटा वह मानव इतिहास की पहली महागाथा “रामायण” का आधार बना। उनके मुख से निकला श्राप विश्व साहित्य की प्रथम कविता मानी जाती है। स्रष्टि का यह पहला महाकाव्य मानव जीवन की आदर्श आचार संहिता माना जाता है। अन्याय के विरुद्ध, निरीह के पक्ष में, सत्य की रक्षा में बोला गया इस महाग्रंथ का शब्द- शब्द अनूठी प्रेरणा से भरा हुआ है।

मान्यता के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। वे महर्षि कश्यप के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी की संतान थे। ऋषि भृगु इनके बड़े भ्राता हैं। किवदन्ती है कि बाल्यावस्था में एक निःसंतान भीलनी ने उनको चुरा लिया था। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहां का भील समुदाय वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म करते थे। भील समाज में उन्हें रत्नाकर नाम से बुलाया जाता था लेकिन एक घटना ने उनका जीवन पूरी तरह बदलकर रख दिया। एक दिन जंगल में उनकी मुलाक़ात देवर्षि नारद से हुई। उन्होंने नारद जी से कहा कि ‘तुम्हारे पास जो कुछ है, उसे निकालकर रख दो! नहीं तो जीवन से हाथ धोना पड़ेगा।’ देवर्षि नारद ने कहा- ‘मेरे पास इस वीणा और वस्त्र के अतिरिक्त है ही क्या? तुम लेना चाहो तो इन्हें ले सकते हो, लेकिन तुम यह क्रूर कर्म करके भयंकर पाप क्यों करते हो? देवर्षि की कोमल वाणी सुनकर वाल्मीकि का कठोर हृदय कुछ द्रवित हुआ। लेकिन उन्होंने कहा- भगवान्! मेरी आजीविका का यही साधन है। इसके द्वारा मैं अपने परिवार का भरण-पोषण करता हूँ।’ देवर्षि बोले- ‘तुम जाकर पहले अपने परिवार वालों से पूछकर आओ कि वे तुम्हारे द्वारा केवल भरण-पोषण के अधिकारी हैं या तुम्हारे पाप-कर्मों में भी हिस्सा बटायेंगे। तुम्हारे लौटने तक हम कहीं नहीं जाएंगे। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो मुझे इस पेड़ से बाँध दो।’ देवर्षि को पेड़ से बाँध कर वे अपने घर गये और कुटुम्बियों से पूछा कि ‘तुम लोग मेरे पापों में भी हिस्सा लोगे या मुझ से केवल भरण-पोषण ही चाहते हो।’ सभी ने कहा कि ‘हमारा भरण-पोषण तुम्हारा कर्तव्य है। तुम कैसे धन लाते हो, यह तुम्हारे सोचने का विषय है। हम तुम्हारे पापों के हिस्सेदार क्यों बनें!’

परिवारीजनों की बात सुनकर वाल्मीकि के हृदय में गहरा आघात लगा। उनके ज्ञान नेत्र खुल गये। उन्होंने जल्दी से जंगल में जाकर देवर्षि के बन्धन खोले और रोते हुए उनके चरणों में गिर गये। नारद जी ने उन्हें धैर्य बँधाया और राम-नाम के जप का उपदेश दिया, किन्तु पूर्वकृत भयंकर पापों के कारण उनसे राम-नाम का उच्चारण नहीं हो पाया। तदनन्तर नारद जी ने सोच-समझकर उनसे मरा-मरा जपने के लिये कहा। शास्त्र कहते हैं कि मरा-मरा का निरन्तर जप करने में वे इतने निमग्न हो गये कि उनके पूरे शरीर पर दीमक लग गयी। चूंकि दीमक जिस जगह अपना घर बना लेती है उसे बांबी कहते हैं, इसलिए उन्हें वाल्मीकि के नाम से जाना जाने लगा। वह अब ऋषि हो गये। उनके पहले की क्रूरता अब प्राणिमात्र के प्रति दया में बदल गयी। स्वयं भगवान श्री राम ने स्वयं उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ किया। सीता जी ने अपने वनवास का अन्तिम काल उनके ही आश्रम पर व्यतीत किया और वहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ जिनके गुरु भी महर्षि वाल्मीकि ही बने।

Topics: रामकथारामायणbirth anniversaryMaharishi Valmikiवाल्मीकि जयंती
Share69TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

क्या आप जानते हैं कि रामायण में एक और गीता छिपी है?

यत्र-तत्र-सर्वत्र राम

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिनके जीवन का हर क्षण राष्ट्र और लोक कल्याण के लिए रहा समर्पित

Tapi district Morari bapu conversion

मोरारी बापू की रामकथा के दौरान ईसाई शिक्षकों पर धर्मांतरण का आरोप, शिक्षा मंत्री ने दी कानूनी कार्रवाई की चेतावनी

Ramayan Film screening in Parliment

Ramayana: भगवान राम पर बनी जापानी-भारतीय फिल्म इस दिन संसद में दिखाई जाएगी

बाली द्वीप के एक भित्ति चित्र में राम और सीता

जित देखें तित राम

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

जिन्होंने ने बसाया उन्ही के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिलवुमन का झलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

मिशनरियों-नक्सलियों के बीच हमेशा रहा मौन तालमेल, लालच देकर कन्वर्जन 30 सालों से देख रहा हूं: पूर्व कांग्रेसी नेता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies