-अवधेशानंद गिरि जी
आशुतोष भगवान विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में ‘काशी-विश्वनाथ करिडोर’ और हिमालय के उत्तुंग शिखर पर स्थित भगवान केदारनाथ धाम में ‘आद्य जगदगुरु शंकराचार्य जी’ की प्रतिमा राष्ट्र को समर्पित करने के अनंतर भारत की प्राचीन आध्यात्मिक नगरी, मोक्षदा “उज्जैनी” अवंतिका में भगवान महाकाल मंदिर परिसर और निकटवर्ती क्षेत्रों में आध्यात्मिक दिव्यता और सौंदर्यीकरण के लिए ‘महाकाल लोक ‘ का निर्माण किया जा रहा है। इसका आरंभिक चरण पूर्ण हो चुका है। इस निर्माण के साथ- साथ विविध विकास कार्य किए जा रहे हैं, जिसमें श्री महाकाल वाटिका, श्री महाकाल पथ, शिव अवतार वाटिका, मध्य क्षेत्र पथ जैसे अनेक कार्य सम्मिलित हैं।
महाकाल लोक का निर्माण न केवल उज्जैनी नगरी के प्राचीन वैभव को पुनर्स्थापित करेगा,अपितु वैश्विक पटल पर भारत और मध्य प्रदेश के आध्यात्मिक -सांस्कृतिक गौरव को पुन:प्रतिष्ठित करेगा।
भूतभावन भगवान महादेव की नगरी उज्जैन पृथ्वी के नाभि केन्द्र पर स्थित है । योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने विद्या अध्ययन के लिए इसी दिव्य भूमि का चुनाव किया और यद्यपि वे पूर्ण परमात्मा थे, पर ऐसा भी कहा जा सकता है कि विश्व के सबसे महान मोक्षकारक ग्रंथ श्रीमद्भगवत गीता की भूमिका यहीं से बनी। सम्राट विक्रमादित्य ,कालिदास,भतृहरि जैसे अनेक महापुरुयों ने इसी धरा पर जन्म लेकर अनेक लोकोपकारी कार्य किए हैं। अतः सनातन हिन्दू वैदिक संस्कृति की सम्पोषक उज्जैनी की दिव्य धरा पर महाकाल लोक का निर्माण ऐतिहासिक है।
आदरणीय श्रीयुत नरेन्द्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के सांस्कृतिक-आध्यात्मिक उत्कर्ष को सहेजने एवम् राष्ट्र विकास के विविध आयामों को पुनर्स्थापित करने के दैवीय कार्य आरम्भ हो चुके हैं। यह भारत की सांस्कृतिक -आध्यात्मिक चेतना के उन्नयन की दृष्टि से स्वर्णिम काल है । भारत की अस्मिता के प्रतीकों , सांस्कृतिक धार्मिक- धरोहरों और प्राचीन उच्चतम प्रतिमानों को संरक्षित – संवर्धित करने के प्रति आदरणीय शिवराज जी की शुभ संकल्पना, प्रतिबद्धता और सजग तत्परता प्रशंसनीय है । प्राचीन धरोहरों के रक्षण व संवर्धन के क्रम में ‘महाकाल लोक” में पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ‘रुद्र सागर’ का कायाकल्प अकल्पनीय कार्य है। इसके साथ वेद-शिवपुराण, पद्म पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण में उल्लेखित उज्जैनी की दिव्यता – पवित्रता को सहेजने का श्रेष्ठ कार्य भी त्वरित गति से संपादित हो रहा है। भगवान शिव जगत नियंता हैं,शिव का अर्थ है कल्याणकारी !!
समुद्र मंथन के समय अमृत कलश समेत चौदह रत्न निकले जिन पर देव – दानव दोनों ने अपना अधिकार बताकर उन्हें ग्रहण करने की चेष्टा की,किन्तु विष का प्रादुर्भाव होते ही तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। विष जैसे महाविनाशक, हेय -त्याज्य पदार्थ को ग्रहण कर उसके दुष्प्रभावों से समष्टि की रक्षा महादेव के अतिरिक्त भला कौन कर सकता है। प्रतीकात्मक रूप से समुद्र मंथन का अर्थ ‘ मनो मंथन ‘ से है। मन में विष और अमृत दोनों समाहित हैं। मन के नकारात्मक विचार, आलस्य -अकर्मण्यता , भ्रम -भय, अवसाद आदि ही जीवन के विष हैं । जिनका भंजन भगवान शिव की कृपा से ही होता है। इसलिए उन्हें विवेक और विचार का देवता कहा गया है।
विश्व के अलग-अलग राष्ट्रों की अपनी विशिष्ट परंपराएँ , सभ्यता सांस्कृतिक संवेदनायें हैं। पश्चिमात्य संस्कृति से प्रेरित अनेक राष्ट्र भौतिकीय उत्कर्ष, सैन्य संपदा और तात्कालिक भोगवांछाओं के साधन संग्रहित करने में जुटे हैं, चीन अनाधिकारिक रूप से सम्पूर्ण विश्व में अपना प्रभुत्व और वर्चस्व चाहता है, किन्तु भारत अपनी दिव्य यौगिक आभा से उजास – प्रकाश के प्रसार का देश सिद्ध हो रहा है । भारतवर्ष ने विश्व को शान्ति और समन्वय के लिए “सर्वे भवन्तु सुखिन:” और “वसुधैव कुटुंबकम् ” जैसे एकात्मता के दिव्य मंत्र दिए हैं।
आज विश्व के समक्ष जो भी समस्याएँ हैं उनका समाधान भारत के आध्यात्मिक मूल्यों और आचार्य शंकर के अद्वैत वेदान्त में समाहित है। चिरकाल से मानवीय समस्याओं और संघर्ष में समाधान प्रस्तुत करना ही भारतीय संस्कृति का मूल उद्देश्य है। आदरणीय प्रधानमन्त्री श्री मोदी जी हर्षवर्धन विक्रमादित्य एवम् अहिल्याबाई होल्कर की लोककल्याणकारी शासन व्यवस्था के अग्रदूत सिद्ध हुए हैं ।
मध्यप्रदेश सरकार और यहाँ के यशस्वी मुख्यमंत्री आदरणीय श्री शिवराज सिंह चौहान जी ने ‘आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास’ के माध्यम से ओंकारेश्वर में भगवान भाष्यकार के अद्वैत मत के प्रसार हेतु जो उल्लेखनीय और भगवदीय कार्य किया है, उसका लाभ सम्पूर्ण विश्व को प्राप्त होगा।
भूतभावन भगवान महाकाल की नगरी में “महाकाल लोक” द्वारा भारत की कालजयी संस्कृति का संरक्षण युगों युगों तक चिरस्थापित रहेगा !
(लेखक आचार्य महामण्डलेश्वर और “हिन्दू धर्म आचार्य सभा” के अध्यक्ष हैं)
टिप्पणियाँ