भारत को बिजली निर्यात करके नेपाल और भूटान अपनी आर्थिक प्रगति कर सकते हैं, लेकिन इसमें शर्त यही है, कि भारत उसी जलविद्युत परियोजना से बिजली खरीदेगा जिसमें चीन शामिल नहीं होगा। पीएम मोदी ने अपनी नेपाल यात्रा के दौरान वहां की संसद में अपने संबोधन में ये संभावना जताई थी, कि नेपाल बिजली उत्पादन कर भारत को निर्यात करे, तो दोनों देशों के बीच अरबों डॉलर का व्यापार हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस मामले में भारत के नेपाल को परियोजना में सहयोग दिए जाने की भी बात कही थी। नेपाल में करीब छह हजार नदियां हैं, जो कि हिमालय से निकलती हुई, भारत में आती हैं। इन नदियों में 47000 मेगावॉट विद्युत उत्पादन करने की क्षमता नेपाल विकसित कर सकता है। अभी नेपाल इसका दस प्रतिशत भी उत्पादन नहीं कर रहा है।
नेपाल पर चीन हाइड्रो प्रोजेक्ट को लेकर डोरे डालता रहा है, तीन चार बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट चीन समर्थक नेपाल की पूर्व सरकारों ने उन्हें दिए भी हैं। जिसपर भारत ने कई बार एतराज भी जताया है, वर्तमान में देवपा सरकार ने दो बड़ी योजनाओं पर चीन के साथ किए करार को रद्द करके भारत की कंपनियों को सौंपा है।
इस करार को तोड़ने की सबसे बड़ी वजह भारत का नेपाल को स्पष्ट संदेश है, कि वो वही बिजली खरीदेगा जिसके उत्पादन में चीन की कंपनियां नहीं होंगी। नेपाल भारत का सबसे बड़ा बिजली खरीदने वाला हो सकता है, चीन नहीं, क्योंकि चीन को बिजली पहुंचाने के लिए हिमालय श्रृंखला को पार करना आसान नहीं है। वहीं भारत ने नेपाल को ये भी समझा दिया है, कि वो श्रीलंका और पाकिस्तान के साथ चीन ने किए बिजली के आर्थिक खेल को समझे।
नेपाल ने भी इस खेल को समझ लिया है, कि चीन बिजली बेचने का कारोबार करने नेपाल आ रहा है, और उसकी नजर भारत के बिजली बाजार पर है, क्योंकि नेपाल के पास अपनी जरूरत की बिजली है। नेपाल ने अब तेजी से भारत के साथ जलविद्युत प्रोजेक्ट्स के एमओयू साइन करने शुरू कर दिए हैं।
हाल ही में नेपाल इलेक्ट्रिसिटी ऑथार्टी की रिपोर्ट के अनुसार नेपाल ने पिछले चार महीने में भारत को 56 मिलियन डॉलर की बिजली का निर्यात किया है, और यह दिसंबर तक 234 मिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। भारत ने नेपाल के साथ उत्तराखंड सीमा पर शारदा नदी में बनने वाले पंचेश्वर जल विद्युत परियोजना पर भी काम शुरू कर दिया है। ये टिहरी से भी बड़ी बांध परियोजना है।
वहीं भारत का नेपाल के साथ जल विद्युत परियोजनाओं को बनाने और इनकी बिजली खरीदने के पीछे एक बड़ा कारण और भी है। जिन नदियों पर ये परियोजनाएं हैं, वे सभी भारत में आती हैं, और वर्षा काल में इनकी बाढ़ का पानी नेपाल में कम और भारत में ज्यादा तबाही लाता है। बांध बन जाने से बाढ़ भी नियंत्रित होगी और वहीं अगर यहां बांध चीन बनाएगा तो उसपर नियंत्रण उसका होगा और वो जब चाहे भारत में पानी छोड़ देगा।
बरहाल, भारत ने नेपाल को स्पष्ट संदेश दे दिया है, कि वो वही बिजली खरीदेगा जो भारत अथवा नेपाल खुद बनाएगा।
वहीं नेपाल की तरह भारत ने पड़ोसी देश भूटान को भी ये स्पष्ट हिदायत दे दी है, कि वो चीन की विद्युत उत्पादक कंपनियों को किसी भी हाल में अपने यहां प्रवेश नहीं लेने दें। भूटान के आगे भारत और बांग्लादेश दो ऐसे देश हैं, जिन्हें वो बिजली बेच सकता है। भारत ने अपनी नीति स्पष्ट बता दी है, और भूटान की नदियों में साझा प्रोजेक्ट बनाने के लिए भी ऑफर दिए हैं।
भारत ने भूटान को बंग्लदेश तक बिजली पहुंचाने की भी सुविधा दिए जाने का वायदा किया है। बंग्लादेश इस समय सिल्क कारोबार और अन्य उद्योग का हब बन रहा है। वहां लेबर सस्ती है, और भारत वहां के उत्पादों का बड़ा बाजार भी है। भारत ने बंग्लादेश को भी भूटान से बिजली की आपूर्ति किए जाने के लिए सहयोग की बात कही है।
भारत ने श्रीलंका को भी बिजली के संकट से उबारा है, और वहां चीन के मंसूबों को सफल नहीं होने दिया है। दक्षेश के कमजोर पड़ने के बाद भारत ने दक्षिण एशिया देशों में पाकिस्तान को अलग थलग करते हुए, अपने आपको आर्थिक शक्ति के रूप में एक बड़ी सहयोगी के रूप में सामने खड़ा किया है। ये मोदी सरकार की सफल विदेश और आर्थिक नीति का सबसे बड़ा उदाहरण है।
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