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#दिल्ली का शिक्षा मॉडल : न पैसा न पद

देश-दुनिया में अपने शिक्षा मॉडल का ढिंढोरा पीटने वाली दिल्ली सरकार से 12 कॉलेज नहीं संभल रहे। दिल्ली सरकार इन कॉलेजों के प्राध्यापकों और कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रही है। जुलाई में दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज के सहायक प्राध्यापकों के वेतन में 30 हजार से 50 हजार रुपये की कटौती कर दी गई

by आशीष कुमार अंशु
Sep 29, 2022, 12:07 pm IST
in भारत, विश्लेषण, मत अभिमत, शिक्षा, दिल्ली
डूटा की मांग है कि दिल्ली सरकार के खस्ताहाल 12 कॉलेजों को दिल्ली विश्वविद्यालय के सुपुर्द किया जाए

डूटा की मांग है कि दिल्ली सरकार के खस्ताहाल 12 कॉलेजों को दिल्ली विश्वविद्यालय के सुपुर्द किया जाए

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अपने शिक्षा मॉडल का ढिंढोरा पीटने वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार से 12 कॉलेज नहीं संभल रहे। इन कॉलेजों में न तो नए शिक्षकों की भर्ती हो रही है, न ही अस्थायी शिक्षकों को स्थायी किया जा रहा है। पदोन्नति तो दूर, शिक्षकों को समय पर वेतन तक नहीं मिल रहा

देश-दुनिया में अपने शिक्षा मॉडल का ढिंढोरा पीटने वाली दिल्ली सरकार से 12 कॉलेज नहीं संभल रहे। दिल्ली सरकार इन कॉलेजों के प्राध्यापकों और कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रही है। जुलाई में दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज के सहायक प्राध्यापकों के वेतन में 30 हजार से 50 हजार रुपये की कटौती कर दी गई। वेतन में कटौती केवल दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज तक सीमित नहीं है, बल्कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले और दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित सभी 12 कॉलेजों की यही स्थिति है। इन कॉलेजों के प्राध्यापकों को लंबे समय से पदोन्नति भी नहीं दी गई है।

इसे लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) और दूसरे शिक्षक संगठन अलग-अलग मंचों और उपराज्यपाल के समक्ष इस मुद्दे को उठाते आ रहे हैं। भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा भी शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ अरविंद केजरीवाल को ज्ञापन देने गए थे। लेकिन जनप्रतिनिधियों के अधिकार और सम्मान की बात करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने सांसद से मिलना तक जरूरी नहीं समझा।

अकादमिक परिषद के सदस्य और शहीद भगत सिंह कॉलेज में प्राध्यापक डॉ. अरुण अत्री कहते हैं, ‘‘संवाद होना चाहिए। जब तक केजरीवाल शिक्षकों की समस्या नहीं सुनेंगे, इसे दूर कैसे करेंगे? शिक्षकों का अपना परिवार है, बच्चों की स्कूल फीस है, परिवार में लोग बीमार पड़ते हैं। ईएमआई का बोझ है। यदि समय पर पूरा वेतन नहीं मिलेगा, तो शिक्षकों का परिवार कैसे चलेगा?’’ वे बताते हैं कि दिल्ली सरकार के एक कॉलेज की महिला प्राध्यापक ने मासिक किस्त पर एक एसयूवी खरीदी थी। लेकिन केजरीवाल सरकार की वेतन रोको नीति की वजह से ईएमआई चुकाना मुश्किल हो गया। नतीजा, उन्हें अपनी गाड़ी बेचनी पड़ी।

 

दिल्ली सरकार के दर्जनभर कॉलेजों की ऐसी दर्जनों कहानियां हैं। शिक्षक सहमे हुए हैं। डूटा के अध्यक्ष प्रो. ए.के. भागी कहते हैं कि दिल्ली सरकार ठीक से कॉलेजों को नहीं चला पा रही है तो उन्हें डीयू को वापस कर दे। वापसी प्रक्रिया बेहद सरल है, लेकिन क्या दिल्ली सरकार इसके लिए तैयार होगी? वेतन कटौती को लेकर दिल्ली सरकार के शिक्षकों के आंदोलन को दूसरे कॉलेज के शिक्षकों और छात्रों का भी समर्थन मिल रहा है। लेकिन चुनावी राज्यों में दिल्ली शिक्षा मॉडल को भुनाने में जुटे मुख्यमंत्री केजरीवाल इससे बेखबर हैं। वे शिक्षकों के प्रतिनिधियों से मिलने को भी राजी नहीं हैं।

समस्या का समाधान नहीं होने पर इन कॉलेजों के प्राध्यापक कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं। डूटा का प्रतिनिधिमंडल उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना से भी मिल चुका है। प्रतिनिधिमंडल का कहना था कि यदि केजरीवाल सरकार कॉलेजों का प्रबंधन करने में असमर्थ है तो लिखकर दे दे कि डीयू इनका अधिग्रहण कर ले। प्रो. भागी कहते हैं कि 1986 की शिक्षा नीति में अंगीभूत कॉलेजों को लेकर जो बाधाएं थीं, नई शिक्षा नीति-2020 में उसे दूर कर दिया गया है। अंगीभूत कॉलेज खुलने पर लगी पाबंदी हटाने के बाद इन कॉलेजों का अधिग्रहण आसान हो गया है। केजरीवाल सरकार को केवल लिख कर देना है।

केजरीवाल सरकार से नहीं संभल रहे ये कॉलेज

डीयू के अंतर्गत आने वाले जिन 12 कॉलेजों का प्रबंधन पूरी तरह दिल्ली सरकार के पास है, वे हैं- भास्कराचार्य कॉलेज आफ अप्लायड साइंस, अदिति महाविद्यालय, केशव महाविद्यालय, आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज, शहीद सुखदेव कॉलेज आफ बिजनेस स्टडीज, दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंस, शहीद राजगुरु कॉलेज, भीम राव आंबेडकर कॉलेज, भगिनी निवेदिता कॉलेज, महाराजा अग्रसेन कॉलेज और महर्षि वाल्मीकि कॉलेज आफ एजुकेशन।

‘दिल्ली सरकार से कॉलेज संभल नहीं रहे तो डीयू को सौंप दे’

ए.के. भागी

डीयू के अंतर्गत आने वाले दिल्ली सरकार के 12 कॉलेजों में वेतन संकट को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष ए.के. भागी से आशीष कुमार अंशु ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं, बातचीत के अंश-

दिल्ली सरकार के कॉलेजों में चल रहा वेतन का संकट क्या है?
यह पूरा मामला पैसे की कमी से जुड़ा है। दिल्ली सरकार ने कई कॉलेजों में प्राध्यापकों और कर्मचारियों को 6 महीने तक वेतन नहीं दिया। कॉलेज चलाने का खर्च 80-90 करोड़ रुपये है और देंगे 60-65 करोड़ रुपये तो कॉलेज कैसे चलेगा? तीन माह बाद दो माह का वेतन और 6 माह बाद चार माह का वेतन दिया जाएगा तो दो महीने का वेतन बाकी ही रहेगा। इसी कारण बकाया राशि बढ़ती जा रही है। आवंटित राशि में कटौती कॉलेज के लिए एक तरह से संकेत होता है कि वह निजी हाथों की कठपुतली बन जाए। मतलब, कॉलेज ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करें, जिसे बाजार की शक्तियां नियंत्रित कर रही हैं। उन पाठ्यक्रमों में नामांकन से ही कॉलेज के पास मोटी रकम आ जाएगी। यदि यह नहीं हो पा रहा तो कॉलेज अपनी फीस बढ़ा दे। डीयू में जिस पाठ्यक्रम के 10 हजार रुपये लिए जा रहे हैं, नए कॉलेज उसके तीन-तीन लाख रुपये तक ले रहे हैं। साफ है कि दिल्ली सरकार अपने कॉलेजों को स्ववित्त पोषण पर ले जाना चाहती है, जहां तीन हजार रुपये की फीस, तीस हजार रुपये हो जाए।

यह कैसा शिक्षा मॉडल है? एक तरफ कोरोना काल में प्राध्यापकों को 6-6 महीने तक वेतन नहीं दिया गया और दूसरी तरफ शुल्क बढ़ाने की भी तैयारी है?
देखिए, अपनी पीठ थपथपाने से बात नहीं बनेगी। कक्षा में अच्छी लाइट, पंखा, एसी लगा हो। दीवारें चमक रही हों, लेकिन उसमें शिक्षक और विद्यार्थी ही न हों, तो क्या उसे कक्षा कहेंगे? कक्षा क्या ब्लैकबोर्ड से बनती है? या शिक्षक विद्यार्थी मिलकर किसी भी कक्ष को कक्षा बना सकते हैं। दिल्ली सरकार को बिल्डिंग गिनाने की जगह यह बताना चाहिए कि उसने कितने नए शिक्षकों की भर्ती की, कितने शिक्षकों को स्थायी किया। कई कॉलेजों में तो प्राचार्य, सह प्राचार्य और कॉलेज प्रबंधक तक नहीं हैं। शिक्षा से जुड़ी कोई एक प्रामाणिक संस्था का नाम बता दीजिए, जिसने दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल की प्रशंसा की हो। डीयू में देशभर के सभी क्षेत्र, जाति, वर्ग, समुदाय, विभिन्न आर्थिक पृष्ठभूमि से छात्र आते हैं। दिल्ली सरकार के कॉलेज में एक ऐसा मॉडल तो चाहिए जो सभी छात्रों के लिए कारगर हो।

स्कूल हो या कॉलेज, उसकी साफ-सफाई, रख-रखाव पर खर्च करना एक बात है। लेकिन वहां शिक्षकों के प्रशिक्षण और शिक्षा स्तर बढ़ाने के लिए जिस तरह का प्रशिक्षण चाहिए, वह दिखाई नहीं देता। पैसा बचाकर दिल्ली सरकार देश को शिक्षा का कौन-सा मॉडल दे रही है। उसे बताना चाहिए।

आपने एक साक्षात्कार में कहा है कि दिल्ली सरकार से कॉलेज संभल नहीं रहे तो वह डीयू को वापस कर दे। इसकी प्रक्रिया क्या होगी?
प्रक्रिया तो यही हो सकती है कि दिल्ली सरकार लिखकर डीयू को दे कि वह इन कॉलेजों को चलाने में सक्षम नहीं है। उसके पास पैसों की कमी है। यदि ऐसा होता है तो हम शिक्षकों के सवालों को लेकर केंद्र सरकार से बातचीत तो कर सकते हैं। अभी हम दिल्ली सरकार के कॉलेजों का मामला लेकर जाते हैं तो हमें जवाब मिलता है कि यह विषय हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। दिल्ली सरकार बातचीत करने को राजी नहीं है। हमने कई बार बात करने की कोशिश की, पर कोई लाभ नहीं हुआ। डीयू इतने सारे कॉलेजों की व्यवस्था देख रहा है। उसमें 12 कॉलेज और जुड़ जाएंगे। यह बेहतर शिक्षा के पक्ष में होगा, लेकिन इसके बाद राजनीति की गुंजाइश नहीं बचेगी। डीयू को इन कॉलेजों को अपने अधिकार में ले लेना चाहिए।

आपको एक उदाहरण से समझाता हूं। किरोड़ीमल कॉलेज ट्रस्ट से चलता था। इसमें 95 प्रतिशत हिस्सा यूजीसी और 5 प्रतिशत ट्रस्ट का था। जब ट्रस्ट सहयोग देने में असमर्थ हो गया तो वह डीयू के अंतर्गत आ गया। इसी तरह, देशबंधु कॉलेज, राम लाल आनंद कॉलेज, दयाल सिंह कॉलेज ट्रस्ट द्वारा संचालित थे। लेकिन आज डीयू उनकी व्यवस्था देख रहा है न। उनका 100 प्रतिशत अनुदान यूजीसी दे रहा है। शिक्षक संघ के अध्यक्ष के नाते हमारी मुश्किल यह है कि 12 कॉलेजों के लिए दिल्ली सरकार के पास जाना पड़ता है, बाकि कॉलेजों के लिए यूजीसी के पास।

 

 

ताक पर शिक्षा
दिल्ली सरकार के कॉलेजों में शिक्षा का स्तर दिनोंदिन गिर रहा है। सरकार न तो नए शिक्षकों की भर्ती कर रही है और न ही अस्थायी शिक्षकों को स्थायी कर रही है। नगर निगम शिक्षक संघ के महासचिव रामनिवास सोलंकी समय पर शिक्षकों को वेतन नहीं देने पर कहते हैं, ‘‘बात सिर्फ कॉलेज की नहीं है। दिल्ली सरकार इस कोशिश में है कि एमसीडी के विद्यालयों की हालत इतनी खराब कर दी जाए कि वे गुजरात-हिमाचल जैसे चुनावी राज्यों में जाकर यह प्रचारित कर सकें कि एमसीडी के स्कूल अच्छे नहीं हैं।

दिल्ली सरकार के स्कूल अच्छे हैं। राजनीतिक लाभ के लिए निगम के स्कूल शिक्षकों का वेतन रोकना उचित नहीं है।’’ हालांकि एमसीडी के स्कूल शिक्षकों की गुहार पर उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शिक्षा एवं स्वास्थ्य मदों में दिल्ली नगर निगम का बकाया 383.74 करोड़ रुपये जारी करने को कहा है। बीते 14 सितंबर को उपराज्यपाल कार्यालय के ट्विटर हैंडल पर जारी पत्र में उपराज्यपाल ने 2020-21 और 2021-22 की लंबित बकाया राशि जारी करने का आग्रह किया है। इसमें मुख्यमंत्री के लिए एक संदेश भी है, जिसमें कहा गया है कि अकारण शिक्षकों और स्वास्थ्यकर्मियों का पैसा रोकने से दिल्ली में प्राथमिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।

विज्ञापन वाली सरकार
दिल्ली सरकार विज्ञापनों पर पानी की तरह पैसे बहा रही है। यूं कहें कि दिल्ली सरकार विज्ञापन पर ही चल रही है तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी। विज्ञापन पर बेतहाशा खर्च को देखते हुए लोगों ने आआपा का नाम ‘अरविंद एडवरटाइजिंग पार्टी’ रख दिया है। दिल्ली सरकार 2015 से ‘दिल्ली उच्च शिक्षा और कौशल विकास गारंटी योजना’ चला रही है। इस योजना के तहत एक छात्र 10 लाख रुपये तक शिक्षा ऋण ले सकता है। इस ऋण के लिए गांरटी दिल्ली सरकार लेती है। लेकिन वित्त वर्ष 2021-22 में केवल दो छात्रों को ही यह ऋण दिया गया। यानी 20 लाख रुपये के ऋण बांटे गए, लेकिन योजना के प्रचार पर केजरीवाल सरकार ने 19 करोड़ रुपये से अधिक फूंक दिए।

सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के अनुसार, केजरीवाल सरकार ने 2021-22 में अखबारों को 46,22,685 रुपये और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को 1,81,00,615 रुपये के विज्ञापन दिए। आरटीआई कार्यकर्ता पार्थ कुमार को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, दिल्ली सरकार ने 2020-21 में बायो डी-कंपोजर कैप्सूल खरीदने पर 40,000 रुपये, गुड़ खरीदने पर 27,280 रुपये, बेसन खरीदने पर 8,500 रुपये, छिड़काव के लिए किराए के ट्रैक्टर पर 11,61,000 रुपये व टेंट पर 9,60,000 रुपये खर्च किए। यानी 21,96,780 रुपये खर्च किए गए, लेकिन बायो डी-कंपोजर छिड़काव से संबंधित विज्ञापन पर सरकार ने 15,80,36,828 रुपये खर्च किए।

नौकरी देने में फिसड्डी
इसी तरह, केजरीवाल सरकार के रोजगार देने के दावों की भी कलई खुल गई है। कांग्रेस ने दिल्ली सरकार के दावों पर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता अजय कुमार के अनुसार, अरविंद केजरीवाल 10 लाख लोगों को रोजगार देने का दावा करते हैं, जो सरासर झूठ है। सच्चाई यह है कि 2018 में केजरीवाल ने केवल एक व्यक्ति को नौकरी दी थी। 2019 में दिल्ली सरकार ने 260 लोगों को नौकरी दी, लेकिन 2020 में यह संख्या घटकर महज 23 रह गई। भाजपा भी लगातार केजरीवाल से उन 10 लाख लोगों की सूची मांगती रही है, जिन्हें नौकरी दी गई। लेकिन अब तक दिल्ली सरकार की तरफ से ऐसी कोई सूची जारी नहीं की गई।

Topics: केजरीवाल सरकारशिक्षा मॉडलदिल्ली विश्वविद्यालयताक पर शिक्षा
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