शायद इसी को कहते हैं झूठ के झाग बैठना, पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने कानून पढ़ाया तो पंजाब की आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली पूरी सरकार घुटनों के बल आ गई और विधानसभा सत्र का एजेंडा भेजने का फैसला लिया। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार ने बोगस आप्रेशन लोटस का शिगूफा छोड़ कर 22 तारीख को विशेष विधानसभा सत्र बुला कर विश्वास मत हासिल करने की बात की परन्तु नियमों का हवाला देकर राज्यपाल ने इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया।
गुस्साई आम आदमी पार्टी की सरकार ने पूरे गर्जन-तर्जन के बाद 27 सितम्बर को फिर सत्र बुलाने की घोषणा कर दी परन्तु राज्यपाल ने इसका एजेंडा मांग लिया। इस पर मुख्यमन्त्री भगवंत मान आग बबूला हो गए और उन्होंने राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित पर केंद्र का एजेंडा लागू करने का आरोप लगाते हुए विधानसभा सत्र की कार्ययोजना का खाका देने से इंकार कर दिया।
इस पर राज्यपाल ने फिर कानूनों का हवाला दिया तो अब क्रान्तिकारी पार्टी ने कानून के सामने घुटने टेक दिए हैं। सरकार ने राज्यपाल द्वारा प्रस्तावित 27 सितम्बर के सत्र में कार्य को लेकर मांगी जानकारी के बाद पंजाब सरकार ने सदन में की जाने वाली कार्रवाई की जानकारी दे दी है। सरकार ने कहा है कि प्रस्तावित विधानसभा सत्र के दौरान जीएसटी, पराली जलाने और बिजली परिदृश्य जैसे मुद्दों को उठाया जाएगा।
सनद रहे कि रद्द किये 22 सितम्बर के विशेष विधानसभा सत्र को लेकर मुख्यमन्त्री ने अखबारों में गरमागरम ब्यान दे कर राज्यपाल पर तरह-तरह के आरोप लगाए। सरकार द्वारा की जा रही टिप्पणियों पर आज राज्यपाल ने मुख्यमन्त्री को लिखा कि – ‘मुझे लगता है कि आपके कानूनी सलाहकार आपको सही जानकारी नहीं दे रहे हैं, इसलिए मैं आपको संविधान के अनुच्छेद 167 और 168 के प्रावधानों को पढऩे के लिए भेज रहा हूं जिसे पढक़र शायद मेरे बारे में आपकी राय निश्चित रूप से बदल जाए।’
22 सितंबर को विधानसभा के होने वाले विशेष सत्र के रद्द होने के बाद पंजाब सरकार का राज्यपाल पर शब्द आक्रमण जारी था। सरकार ने 27 सितंबर को विधानसभा के सत्र का प्रस्ताव रखा तो राज्यपाल ने इसकी अनुमति देने से पहले विवरण माँगा कि सत्र के दौरान क्या किया जाना है। हालाँकि इस बात को लेकर भी आम आदमी पार्टी के नेता और सरकार के मंत्री, मुख्यमंत्री भड़क गए।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक ट्वीट में कहा था कि विधानसभा के किसी भी सत्र से पहले राज्यपाल/राष्ट्रपति की सहमति एक औपचारिकता है। 75 वर्षों में, किसी भी राष्ट्रपति/राज्यपाल ने सत्र बुलाने से पहले कभी भी विधायी कार्यों की सूची नहीं मांगी। विधायी कार्य बीएसी (बिजनेस एडवाइजरी काउंसिल) और स्पीकर द्वारा तय की जाती है।
मुख्यमंत्री ने ये भी टिप्पणी की कि भविष्य में राज्यपाल सभी भाषणों को भी अपने द्वारा अनुमोदित करने के लिए कहेगा। यह तो हद से ज्यादा है। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में शनिवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में राज्यपाल ने इसका जवाब देते हुए सीएम पंजाब को लिखा कि
‘आज के अखबारों में आपके बयान पढऩे के बाद, मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि शायद आप मुझसे बहुत ज़्यादा नाराज़ हैं। मुझे लगता है कि आपके कानूनी सलाहकार आपको पर्याप्त जानकारी नहीं दे रहे हैं। शायद मेरे बारे में आपकी राय संविधान के अनुच्छेद 167 और 168 के प्रावधानों को पढऩे के बाद निश्चित रूप से बदल जाएगी, जिसे मैं आपके संदर्भ के लिए उद्धृत कर रहा हूं –
अनुच्छेद 167 – राज्यपाल आदि को सूचना देने के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य-प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य होगा-
(ए) राज्य के मामलों के प्रशासन और कानून के प्रस्तावों से संबंधित मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों को राज्य के राज्यपाल को सूचित करना।
(बी) राज्य के मामलों के प्रशासन और कानून के प्रस्तावों से संबंधित ऐसी जानकारी प्रस्तुत करने के लिए जो राज्यपाल मांगे।
(सी) यदि राज्यपाल की आवश्यकता है, तो किसी भी मामले को मंत्रिपरिषद के विचार के लिए प्रस्तुत करने के लिए, जिस पर एक मंत्री द्वारा निर्णय लिया गया है लेकिन परिषद द्वारा विचार नहीं किया गया है।
राज्यपाल द्वारा प्रस्तावित 27 सितम्बर के सत्र के बिजनेस की मांगी जानकारी पर पंजाब सरकार ने जवाब दिया है कि सरकार द्वारा विधानसभा सत्र के दौरान जीएसटी, पराली जलाने और बिजली परिदृश्य जैसे मुद्दों को उठाया जाएगा। पत्र ने राज्यपाल से निवेदन किया गया है कि सत्र की अनुमति दी जाये।
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