भाजपा रूपी वटवृक्ष की जड़ों को जनसंघ के रूप में सींचनेवाले उपाध्याय ही थे. मात्र 52 वर्ष की उम्र में पं दीनदयाल चले गये, पर अपने पीछे इतना कुछ छोड़ गये कि इस देश के राष्ट्रवादी उनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकेंगे.
भारतीय राजनीति को नया वैचारिक धरातल देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय का आज 106वीं जयंती है. हर वर्ष भाजपा और केंद्र तथा प्रदेशों में इसकी सरकारें अनेक कार्यक्रम कर पंडित जी और उनके वैचारिक दर्शन ‘एकात्म मानववाद’ पर चिंतन करती हैं तथा अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं. पर भाजपा से परे अन्य दलों और सामान्य-जन के बीच इस पर चर्चा न के बराबर होती है. यूँ कि दीनदयाल सिर्फ भाजपा के ही हों!
दुर्भाग्य से 20वीं सदी के इस विलक्षण विचारक के बारे में देश में बहुत कम जानकारी है. जो जानते भी हैं, वे भी इतना ही जानते हैं कि भाजपा रूपी वटवृक्ष की जड़ों को जनसंघ के रूप में सींचनेवाले उपाध्याय ही थे. मात्र 52 वर्ष की उम्र में पं दीनदयाल चले गये, पर अपने पीछे इतना कुछ छोड़ गये कि इस देश के राष्ट्रवादी उनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकेंगे. जिस संगठन के पौधे को उन्होंने सींचा, वह आज भाजपा के रूप में हमारे सामने है. लेकिन, जो विचार उन्होंने दिये, वे पूरे देश के हैं. उनकी विचारधारा का मुख्य सोपान था उनका दिया ‘एकात्म मानव-दर्शन’ का सिद्धांत, जिसे आज भाजपा अपनी विचारधारा का आधार कहती है.
पर क्या है यह एकात्म मानव-दर्शन? मूलतः यह भारतीय संस्कृति, विचार और दर्शन का निचोड़ है. जिस समय पूरा विश्व पूंजीवाद और साम्यवाद की अच्छाई-बुराई की बहस में उलझा था, पं दीनदयाल ने हस्तक्षेप करते हुए इन दो चरम विचारधाराओं से इतर एकात्म मानववाद की सम्यक अवधारणा दी थी. जहाँ पूंजीवाद ने मानव को एक आर्थिक इकाई माना और उसके समाज से संबंधों को एक अनुबंध से ज्यादा कुछ नहीं समझा, साम्यवाद ने व्यक्ति को मात्र एक राजनीतिक और कार्मिक इकाई माना. साम्यवाद के प्रवर्तक मार्क्स ने मानव-समाज को एक विखंडित आपसी संबंध-विहीन भीड़ की तरह देखा, जिसमें एक वर्ग अपना आधिपत्य जमाने के लिए स्वार्थपूर्ण नियम और प्रथाओं को लागू करता है. समाजवाद में भी व्यक्ति को एकांगी माना गया. पर इन सबसे परे, एकात्म मानववाद ने व्यक्ति को परिवार से, परिवार को समाज से, समाज को राष्ट्र से और फिर मानवता और चराचर सृष्टि से जोड़ कर देखा. ‘एकात्म मानववाद’ इन सब इकाइयों में अंतर्निहित, परस्पर-पूरक संबंध देखता है.
भारतीय चिंतन जिस तरह से सृष्टि और समष्टि को एक समग्र रूप में देखता है, वैसे ही पं दीनदयाल ने मानव, समाज और प्रकृति व उसके संबंध को समग्र रूप में देखा. मनुष्य को ‘एकात्म मानव-दर्शन’ में तन-मन-बुद्धि और आत्मा का सम्मिलित स्वरूप माना गया. मानव की यह समग्रता ही उसे समाज के लिए उपयुक्त और उपादेय बनाती है.
मोदी सरकार आज घोषित तौर पर ‘अंत्योदय’ को अपना लक्ष्य मानती है. अंत्योदय यानि समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की चिंता और उसका सम्यक उद्धार. अंत्योदय की इस परिकल्पना को साकार करने के लिए 2014 से ही मोदी सरकार काम कर रही है. चाहे वो हर घर में शौचालय या इज्जत घर का निर्माण हो, मुफ्त सिलिंडर दे कर हमारी गरीब माताओं बहनों को चूल्हे चौके के धुंए से बचाना हो, प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से हर गरीब के सर पर छत मुहैय्या करना हो, कोविड के समय 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देना हो या फिर किसानों को मानदेय देना हो, इस सरकार के हर कार्यक्रम में ‘अंत्योदय’ का संकल्प नज़र आता है.
ऐसा नहीं कि पं दीनदयाल का ‘एकात्म मानववाद’ महज एक वैचारिक अनुष्ठान था. इसमें राजनीति, समाजनीति, अर्थव्यवस्था, उद्योग, उत्पादन, शिक्षा, लोक-नीति आदि पर व्यापक और व्यावहारिक नीति-निर्देश शामिल थे, जिन्हें आज केंद्र में शाषित भाजपा सरकार अपना मार्ग-दर्शक सिद्धांत मानती है. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पेश की गयीं ज्यादातर योजनाएं- दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण-कौशल योजना, स्टार्ट-अप व स्टैंड-अप इंडिया, मुद्रा बैंक योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, सांसद आदर्श-ग्राम योजना, मेक-इन-इंडिया आदि एकात्म मानववाद के सिद्धांतों से प्रेरित हैं. ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसा नारा भी उन्हीं की ‘अंत्योदय’ (समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान) की अवधारणा पर आधारित है.
पं दीनदयाल एक युग-द्रष्टा थे. आजादी के बाद जब उन्होंने भारत के विकास के लिए ग्रामीण-विकास और लघु-उद्योग को बढ़ावा देने की बात की, तो किसी ने ध्यान नहीं दिया. 1950 के दशक में जब बड़े-बड़े सार्वजनिक निर्गमों की स्थापना सोवियत रूस की नकल पर ‘महालनोबिस’ माॅडल पर हो रही थी, उन्होंने इसका विरोध किया था. उनके विरोध का आधार था भारत के संदर्भ में पश्चिम की अंधी नकल. वे बड़े उद्योगों के विरोधी नहीं थे, परंतु वे भारत की तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर लघु-उद्योगों को बढ़ावा देना चाहते थे, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधरे. वे मानते थे कि देश की औद्योगीकरण का आधार उसकी परिस्थितियां व जरूरतें हों, न कि औरों की नकल.
दीन दयाल जी के इस विचार को मोदी सरकार ने गंभीरता से लिया और उसका नतीजा यह हुआ समझा कि देश आज लघु और मझोले उद्योगों की महत्ता को समझ रहा है. आज हमारे कुल सकल घरेलु उत्पाद का 30% से ज्यादा और निर्यात का लगभग 50% प्रतिशत इन छोटे उद्योगों से ही आता है. देश में सबसे ज्यादा रोजगार सृजन भी इन्ही लघु उद्योगों के द्वारा है. आज हमारी सरकार हर स्तर पर लघु और मंझोले उद्योगों के संवर्धन और विकास में लगी है. इसमें छोटी लघु औद्योगिक इकाईया भी शामिल हैं, छोटे घरेलु गृह उद्योग भी और यहाँ तक रेहड़ी पटरी वाले भी. जहाँ मुद्रा योजना जैसी ऋण सुविधाओं ने इन उद्यमियों को साहूकारों के चंगुल से निकल कर व्यापार वृद्धि की सुविधा दी वहीँ यूपीआई जैसे तकनीक ने मूंगफली और सब्जी बेचने वालों तक को देश की आर्थिक मुख्यधारा में शामिल कर दिया.
इसके साथ ही मोदी सरकार आज घोषित तौर पर ‘अंत्योदय’ को अपना लक्ष्य मानती है. अंत्योदय यानि समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की चिंता और उसका सम्यक उद्धार. अंत्योदय की इस परिकल्पना को साकार करने के लिए 2014 से ही मोदी सरकार काम कर रही है. चाहे वो हर घर में शौचालय या इज्जत घर का निर्माण हो, मुफ्त सिलिंडर दे कर हमारी गरीब माताओं बहनों को चूल्हे चौके के धुंए से बचाना हो, प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से हर गरीब के सर पर छत मुहैय्या करना हो, कोविड के समय 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देना हो या फिर किसानों को मानदेय देना हो, इस सरकार के हर कार्यक्रम में ‘अंत्योदय’ का संकल्प नज़र आता है.
काश आज़ादी के बाद ही हमारे नीति-नियंताओं ने पं दीनदयाल उपाध्याय जी की बात तब सुनी होती, तो आज भारत का आर्थिक और औद्योगिक परिदृश्य ही कुछ और होता. देर से ही सही पर अब इस पर अमल शुरू हो गया है. आज गरीबी रेखा से ऊपर उठकर स्वाभिमान पूर्ण जीवन-यापन कर रही देश की बड़ी संख्या इस बात का प्रमाण हैं कि प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व में देश की सरकार ने दीन दयाल जी के ‘एकात्म मानववाद’ की संकल्पना को मूर्त आकार दिया है.
अब समय आ गया है कि देश के अन्य दल भी इस पुरोधा को जाने, समझे और उनके दिये चिंतन पर व्यवहार करे. पं दीनदयाल और उनके विचार सिर्फ एक दल के नहीं हैं, वे पूरे देश के हैं. हम सभी के हैं.
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