काठमांडू में राजनीति एक बार फिर तेजी से करवट बदल रही है। वहां देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उनके घर में ही नजरबंद कर दिया गया है। उनके विरुद्ध विशेषाधिकार दुरुपयोग के आरोप में महाभियोग चलाए जाने की प्रक्रिया खत्म हो गई है।
नेपाल की देउबा सरकार द्वारा अचानक उठाए गए इस कदम ने वहां राजनीतिक भूचाल ला दिया है। देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चोलेंद्र शमशेर राणा को जैसे ही शेर बहादुर देउबा सरकार ने उनके ही घर में नजरबंद किया, विपक्षी दलों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया।
कैसे, क्या हुआ इस बारे में न्यायमूर्ति शमशेर राणा ने कहा कि वे सर्वोच्च न्यायालय जाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन देउबा की सरकार ने उन्हें जाने से रोक दिया। पुलिस ने उनके रास्ते बंद कर दिए, उन्हें उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया, बाहर पुलिस का कड़ा पहरा लगा दिया गया।
प्राप्त समाचारों के अनुसार, इस घटनाक्रम से पूर्व न्यायमूर्ति राणा ने सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी। उसमें उन्होंने कहा था कि क्यों कि संसद का आखिरी सत्र अब पूरा हो चुका है। नवंबर माह में चुनाव होने तय हैं। इन परिस्थितियों में उनके विरुद्ध महाभियोग की जो प्रक्रिया चल रही थी, वह भी खत्म ही हो चुकी है। अब वे मुख्य न्यायाधीश के नाते अपना काम आगे जारी रख सकते हैं। इसलिए वे अदालत जाएंगे। लेकिन असल में तो सरकार ने इस चिट्ठी के बाद फौरन हरकत में आते हुए उन्हें उनके ही घर में नजरबंद कर दिया।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष 13 फरवरी के दिन नेपाली कांग्रेस, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) और सीपीएन (यूएस) के 98 सांसदों ने न्यायमूर्ति राणा के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। न्यायमूर्ति राणा पर भ्रष्टाचार तथा सरकार में हिस्सेदारी की सौदेबाजी सहित 21 आरोप लगाए गए थे, उसी माह उन्हें निलंबित कर दिया गया था।
लेकिन वह महाभियोग प्रस्ताव संसद में पारित ही नहीं हो पाया। गत शनिवार यानी 17 तारीख को संसद का आखिरी सत्र भी खत्म हो गया। इसलिए न्यायमूर्ति राणा का तर्क था कि वे अब अदालत जा सकते हैं, क्योंकि अब तो महाभियोग की बाध्यता खत्म हो चुकी है। लेकिन दूसरी तरफ, नेपाल बार एसोसिएशन तथा सर्वोच्च न्यायालय की बार एसोसिएशन भी कमर कसकर मैदान में आ गई है। दोनों संगठनों का कहना है कि वे अदालत में न्यायमूर्ति राणा के विरुद्ध मोर्चा खोले रखेंगे। यानी आने वाला वक्त नेपाल की राजनीति में एक नया हंगामा पैदा कर सकता है।
इस प्रकरण के संदर्भ में पूर्व प्रधानममंत्री के.पी. शर्मा ओली का कहना अब संसद महाभियोग प्रस्ताव पारित करने में नाकाम रही है, इसलिए न्यायमूर्ति राणा को अदालत में लौटने की इजाजत दी जानी चाहिए। राणा को नजरबंद करना दिखाता है कि सरकार कितनी गैर-जिम्मेदार है।
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