धान की फसल में बौनेपन का कारण कोई भी खोज नहीं पा रहा था। इधर, एक के बाद एक कई किसानों के खेतों में यह बीमारी नजर आने लगी। हरियाणा, पंजाब ही नहीं, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों से भी शिकायतें मिलने लगीं। स्थानीय वैज्ञानिक इस बीमारी का कारण नहीं खोज पाए तो केंद्र की चिंता बढ़ गई। प्रभावित राज्यों में धान की फसल में 5 से 20 प्रतिशत तक बौनेपन की बीमारी देखी जा रही है।
पंजाब के बरनाला जिले के बजिदा कलानी के 60 वर्षीय किसान सुखपाल सिंह संधू बहुत परेशान हैं। उनके खेत में पिछले साल की तुलना में डेढ़ गुना खाद डालने के बाद भी धान के पौधों की लंबाई नहीं बढ़ रही। उन्होंने आसपास के कृषि विशेषज्ञों को खेत दिखाया, फिर जिसने जो सलाह दी, उसे मान कर खेत में खाद और दवा भी डाली। फिर भी कोई लाभ नहीं हुआ। इसी तरह की समस्या से हरियाणा में पानीपत जिले के उरलाना खुर्द गांव के किसान प्रीतम सिंह भी गुजर रहे थे। उन्होंने भी कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क कर अपनी समस्या बताई। तमाम उपाय किए, पर कोई लाभ नहीं हुआ। धान की फसल में बौनेपन का कारण कोई भी खोज नहीं पा रहा था।
इधर, एक के बाद एक कई किसानों के खेतों में यह बीमारी नजर आने लगी। हरियाणा, पंजाब ही नहीं, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों से भी शिकायतें मिलने लगीं। स्थानीय वैज्ञानिक इस बीमारी का कारण नहीं खोज पाए तो केंद्र की चिंता बढ़ गई। प्रभावित राज्यों में धान की फसल में 5 से 20 प्रतिशत तक बौनेपन की बीमारी देखी जा रही है।
केंद्रीय टीम की रिपोर्ट
जब इस बीमारी ने विकराल रूप ले लिया तो केंद्र सरकार ने इसका अध्ययन करने के लिए एक आठ सदस्यीय टीम का गठन किया। इसमें कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी) के निदेशक डॉ. राजबीर सिंह और राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र (नई दिल्ली) के निदेशक सुभाष चंद्र के साथ पंजाब विश्वविद्यालय (लुधियाना) के डॉ. अजमेर सिंह, सीसीएसएचएयू (हिसार) के निदेशक (अनुसंधान) डॉ. जीत राम शर्मा, आईएआरआई, पूसा के वरिष्ठ वैज्ञानिक (वायरोलॉजी) डॉ. अमलेंदु घोष, आरसीआईपीएमसी, फरीदाबाद के उप-निदेशक डॉ. वी.डी. निगम, सीआईपीएमसी जालंधर के असिस्टेंट निदेशक सुरेश कुमार और डीडब्ल्यूडी, गुरुग्राम के संयुक्त निदेशक डॉ. विक्रांत सिंह शामिल हैं।
केंद्रीय टीम ने कृषि मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में आशंका जताई है कि इस बीमारी की वजह ‘ग्रास स्टंट वायरस’ या ‘फाइटोप्लाज्मा बैक्टीरिया’ हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) की टीम ने 2 अगस्त, 2022 को उरलाना खुर्द में किसान प्रीतम सिंह के खेतों से पौधों के नमूने लिए थे। इसके बाद पूसा के निदेशक डॉ. ए.के. सिंह ने भी कुरुक्षेत्र के पेहवा स्थित बेचकी गांव में किसान प्रकाश सिंह के खेत का दौरा कर धान के पौधों के नमूनों की जांच की। केंद्रीय टीम की रिपोर्ट के मुताबिक, धान की फसल में उर्वरक और जरूरी पोषक तत्व देने के बावजूद पौधों में बौनेपन की समस्या खत्म नहीं हुई। इस आधार पर माना जा सकता है कि पौधों के बौनेपन के पीछे उर्वर तत्वों की कमी नहीं है। नमूनों में फाइटोप्लाज्मा होने के लक्षण मिले हैं। साथ ही, ग्रास स्टंट वायरस को भी एक संभावित कारक के रूप में देखा जा रहा है।
पहली बार देखी गई बीमारी
हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल ने बताया कि पहले यह माना गया कि बीमारी की वजह खाद और पोषक तत्वों की कमी है। लेकिन आईएआरआई की टीम द्वारा नमूने की जांच से यह आशंका भी दूर हो गई। हालांकि यह शुरुआती जांच ही है। यह बीमारी अगेती किस्म के धान की फसलों में देखी गई है। पौधों का विकास सामान्य के मुकाबले 1/2 से घटकर 1/3 रह गया है। इन पौधों की जड़ें उथली हैं और इन्हें आसानी से उखाड़ा जा सकता है। धान मे बौनेपन की बीमारी उत्तर-पश्चिम भारत में पहली बार सामने आई है। हरियाणा में अंबाला, यमुनानगर
और पंजाब के होशियारपुर, रूपनगर जिलों में इसे पहली बार देखा गया।
पूर्व कृषि वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र सिंह लाठर ने बताया कि यह बीमारी सबसे पहले हाइब्रिड धान उगाने वाले जिलों में देखी गई। यहां से यह कीटों के जरिए धान की सभी किस्मों मे फैली है। शुरुआत में बीमारी की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। जब समस्या बढ़ती गई तो बीमारी का अध्ययन किया गया। उन्होंने कहा कि यह भी हो सकता है कि यह बीमारी हाइब्रिड बीज के साथ आई हो, क्योंकि हरियाणा में आम तौर पर दक्षिण भारत में तैयार किए गए हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल किया जाता है। कई बीज कंपनियां बीजों की पर्याप्त जांच नहीं करतीं। इसी तरह से नकली बीजों की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यह बीमारी धान की सीधी बिजाई वाले खेतों में नजर नहीं आ रही है। इससे यह माना जा सकता है कि धान की सीधी बिजाई कर भी किसान इस बीमारी पर रोक लगा सकते हैं। गौरतलब है कि हरियाणा सरकार धान की सीधी बिजाई को बढ़ावा दे रही है। इससे पानी की भी बचत होती है।
चीन से आया वायरस!
वहीं, पंजाब के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि चीन से आए एक वायरस के कारण धान की फसलों में यह बीमारी लगी है। इस पर एक अंग्रेजी दैनिक ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें इस वायरस की पहचान एसआरबीएसडीवी (साउथ राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वाफ वायरस) के रूप में की गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बीमारी से बचाव का कोई उपाय नहीं है। यह बीमारी उन पौधों में लगी है, जिनकी बुआई 25 जून से पहले की गई थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि बौनेपन की बीमारी डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस के कारण होती है। यह वायरस सबसे पहले 2001 में दक्षिणी चीन में पाया गया था। चावल के साथ जीनोम संरचना पर उत्पन्न होने वाले लक्षण चावल के काले-धारीदार बौने वायरस के समान होते हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि भविष्य में वे सुझाई गई तारीखों पर ही धान की रोपाई करें। इससे न केवल इस वायरस के प्रबंधन में मदद मिलेगी, बल्कि पानी भी बचेगा।
बीमारी पर अध्ययन जारी
पूसा के निदेशक डॉ. ए के सिंह ने बताया कि बीमारी का अध्ययन किया जा रहा है। खेतों से लिए गए नमूनों के डीएनए को अलग कर इनकी जीन सिक्वेंसिंग करने के बाद काफी हद तक पौधों में बौनेपन समस्या को स्पष्ट होगी। किसानों ने बताया कि जिस भी धान की फसल में यह बीमारी आ जाती है, उसका विकास रुक जाता है। पौधे उचित ऊंचाई नहीं ले पा रहे हैं। पौधों को उखाड़ने पर ये आसानी से उखड़ जाते हैं, क्योंकि इनकी जड़ों का विकास अच्छा नहीं होता। जड़ों में कालापन भी आ गया है।
कृषि वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इस बीमारी की वजह से धान का उत्पादन 40 से 70 प्रतिशत तक घट सकता है। केंद्र सरकार ने इस बीमारी को खासी गंभीरता से लिया है। जांच टीम की ओर से दावा किया गया है कि बीमारी के कारण और निवारण की तलाश जल्दी ही कर ली जाएगी। कुछ रिपोर्ट के परिणाम आने हैं। इसके आते ही पुख्ता तौर पर बीमारी का इलाज सामने आ जाएगा। साथ ही, बीमारी की रोकथाम की दिशा में भी शोध किया जा रहा है। कृषि स्नातक अशोक चौहान ने बताया कि जिस तेजी से केंद्र सरकार ने जांच के लिए टीम गठित की है, उससे पता चलता है कि वह किसानों को लेकर कितनी गंभीर है।
कहां, कितना नुकसान
पंजाब में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग पूरे पंजाब में ही सामान्य धान और बासमती धान की फसलों में बीमारी की शिकायतें मिल रही हैं। पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, रोपड़, मोहाली, होशियारपुर, पठानकोट, गुरदासपुर और लुधियाना से अधिक मामले सामने आए हैं। लुधियाना में किसानों को 50 करोड़ से अधिक के नुकसान की संभावना जताई जा रही है। इस खरीफ सीजन में लुधियाना में 2,58,600 हेक्टेयर में धान की रोपाई हुई है, जो सूबे में सबसे अधिक है। इस बीमारी के कारण 3,500 हेक्टेयर से अधिक की फसल खराब हो गई है। यह धान के कुल रकबे का 1.35 प्रतिशत है। पूसा के वैज्ञानिकों ने हरियाणा में सोनीपत, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला और यमुनानगर में 24 क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया। इन इलाकों में धान की फसल को 2 से 20 प्रतिशत तक नुकसान हुआ है। सबसे ज्यादा नुकसान पानीपत में दर्ज किया गया। यहां 20 प्रतिशत फसल बीमारी से प्रभावित है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में भी इस बीमारी का असर दिखा है।
क्या करें किसान?
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों को इस वायरस के प्रति सचेत करने के लिए एक वीडियो बनाया है। इसमें यह बताया गया है कि किसान बीमार पौधों की पहचान कैसे करें। साथ ही, किसानों को सलाह दी गई है कि धान के पौधों में बेवजह छिड़काव नहीं करें। किसान अपनी फसलों की निगरानी करें और तेला व चेपा कीटों से इसका बचाव करें। इसी से बौनेपन की बीमारी फैलती है। इन कीटों से बचाव के लिए किसान सप्ताह में 2-3 बार प्रति एकड़ 20 ग्राम डाइनेटोफ्यूरान 20 एसजी या प्रति एकड़ 94 मिलीमीटर पेक्सलॉन 10 एससी (ट्राइफ्लूजोपाइरम) या प्रति एकड़ 80 ग्राम ओशीन/टोकन 20 एसजी (डाइनोटफ्यूरान) या पाइमेट्रोजीन का छिड़काव पौधों की जड़ों में करें। जो पौधे स्वस्थ हैं, उनमें अब बीमारी नहीं लगेगी, इसलिए किसान डरें नहीं। फसल को इस रोग से बचाने के लिए किसान बंधों और मेड़ों की भी सफाई करते रहें और खतपतवार को बढ़ने न दें।
इस बार मानसून असामान्य रहा। कुछ राज्यों में बारिश बहुत अधिक हुई है, जबकि कुछ राज्य सूखे की चपेट में हैं। इससे खरीफ फसलों खासकर धान की खेती बहुत प्रभावित हुई है, ऊपर से चीनी वायरस के हमले ने किसानों और सरकार की चिंता बढ़ा दी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों से मिली रिपोर्ट चिंताजनक है। इसे देखते हुए इस बार उत्पादन कम होने की संभावना है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल के मुकाबले देश में धान के रकबे में 5.6 प्रतिशत की कमी आई है।
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