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विद्यालय से आया बदलाव

बिहार में भोजपुर जिले के सिकरिया गांव में संचालित आदर्श महथिन विद्यापीठ के कारण आसपास के क्षेत्रों में बहने लगी बदलाव की बयार

by संजीव कुमार
Sep 8, 2022, 12:35 pm IST
in भारत, शिक्षा
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समाज में कितना परिवर्तन लाया जा सकता है, इसका उत्कृष्ट उदाहरण भोजपुर जिले के सिकरिया गांव में देखने को मिल रहा है। आज से कुछ वर्ष पहले तक यह गांव अशिक्षा, गरीबी और नशाखोरी के लिए जाना जाता था। अब ये सारी व्याधियां समाप्त हो गई हैं। गांव के बच्चे पढ़-लिखकर देश-दुनिया में अपनी सेवा दे रहे हैं।

एक विद्यालय के माध्यम से समाज में कितना परिवर्तन लाया जा सकता है, इसका उत्कृष्ट उदाहरण भोजपुर जिले के सिकरिया गांव में देखने को मिल रहा है। आज से कुछ वर्ष पहले तक यह गांव अशिक्षा, गरीबी और नशाखोरी के लिए जाना जाता था। अब ये सारी व्याधियां समाप्त हो गई हैं। गांव के बच्चे पढ़-लिखकर देश-दुनिया में अपनी सेवा दे रहे हैं।

इसका श्रेय गांव में चल रहे आदर्श महथिन विद्यापीठ को जाता है। इसे कमल कुमार चौबे और रामेश्वर चौबे चला रहे हैं। कमल दोनों पैरों से लाचार हैं, लेकिन उन्होंने अपने संकल्प से गांव की तस्वीर ही बदल दी। यह विद्यापीठ ‘महथिन माता संस्थान’ के अंतर्गत चल रहा है। कमल इसके सचिव हैं। वे बचपन में कोलकाता में रहते थे।

महाविद्यालय की पढ़ाई के दौरान एक बीमारी से वे चलने-फिरने से लाचार हो गए। इसके बाद वे गांव वापस आ गए। गांव की दयनीय स्थिति देख वे बहुत दुखी हुए। उसी समय उनकी भेंट रामेश्वर चौबे से हुई, जो एक पुस्तकालय चलाते थे। फिर इनके संपर्क में जितेंद्र कुमार आए। इन तीनों ने गांव के लिए कुछ करने का निर्णय लिया। फिर 4 जनवरी,1988 को इन तीनों ने एक विद्यालय प्रारंभ किया।

पहले वर्ष काफी मेहनत के बाद 49 छात्रों ने नामांकन कराया। बच्चों को सामान्य और नैतिक शिक्षा देने के साथ ही उन्हें नशे से दूर करने के भी प्रयास हुए। इसका अनुकूल प्रभाव पड़ा। बच्चों ने नशा छोड़ दिया। इसके बाद नशे के धंधे में शामिल लोग परेशान होने लगे। वे लोग विद्यालय के विरुद्ध षड्यंत्र करने लगे, लेकिन विफल रहे।

प्रारंभ में यह विद्यालय सुबह से शाम तक चलता था, परंतु कुछ अभिभावकों ने आग्रह किया कि बच्चों को ज्यादा समय अपने पास रखें। वे समय-समय पर उनसे मिलते रहेंगे। फिर मात्र 10 रुपए शुल्क पर जैसे-तैसे आवासीय व्यवस्था शुरू हुई। सुबह और शाम में बच्चों को एक-एक घंटे की छुट्टी दी जाती थी, ताकि वे लोग खाना खा सकें। धीरे-धीरे विद्यालय का विकास होने लगा।

आज गांव के 25 से अधिक छात्र अभियंता बन चुके हैं। कुछ प्रशासनिक सेवा में हैं। अन्य सरकारी सेवाओं में तो 100 से अधिक छात्र हैं। कुछ छात्रों को विदेश में भी नौकरी मिली है। विद्यालय द्वारा स्नातक के छात्रों का मार्गदर्शन भी किया जाता है। 16 शिक्षक तथा 3 शिक्षकेत्तर कर्मचारी वाले इस विद्यापीठ ने दिखा दिया है कि यदि संकल्प सही हो तो परिणाम अच्छा ही निकलता है। 

आसपास के गांवों के बच्चे भी इस विद्यालय में आने लगे। बाद में विद्यालय में ही बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था की गई। वर्तमान में दो प्रकार की व्यवस्था है- कुछ छात्र अपने खाने की व्यवस्था घर से करते हैं तो कुछ छात्र माह में निर्धारित शुल्क जमा करा देते हैं और उनके नाश्ते एवं भोजन की व्यवस्था विद्यालय द्वारा की जाती है। अब यह विद्यालय एक वट वृक्ष बन चुका है।

वर्तमान समय में यहां लगभग 450 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। आवासीय छात्रों का दिनक्रम प्रात: 4 बजे से प्रारंभ होता है, जो रात के 9.30 बजे तक लगातार जारी रहता है। प्रत्येक छात्र को नशे से स्वयं मुक्त रहने एवं समाज को मुक्त कराने का संकल्प कराया जाता है तथा साल में एक वृक्ष लगाने की सलाह भी दी जाती है। विद्यालय के कुछ छात्र बाहर जाकर आगे की पढ़ाई कर रहे हैं।

आज गांव के 25 से अधिक छात्र अभियंता बन चुके हैं। कुछ प्रशासनिक सेवा में हैं। अन्य सरकारी सेवाओं में तो 100 से अधिक छात्र हैं। कुछ छात्रों को विदेश में भी नौकरी मिली है। विद्यालय द्वारा स्नातक के छात्रों का मार्गदर्शन भी किया जाता है। 16 शिक्षक तथा 3 शिक्षकेत्तर कर्मचारी वाले इस विद्यापीठ ने दिखा दिया है कि यदि संकल्प सही हो तो परिणाम अच्छा ही निकलता है।

Topics: गरीबी और नशाखोरीछात्रों का मार्गदर्शनअशिक्षा
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