प्राचीन शिक्षा प्रणाली में गुरु-शिष्य परंपरा के तहत औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। उस समय विद्यार्थी आश्रमों में रहकर शिक्षा ग्रहण करते और निपुण होकर घर लौटते थे।
समाज और लोगों के लिए शिक्षा व्यवस्था का अर्थ क्या है? जवाब है कि यह चरित्र निर्माण और ज्ञान प्राप्ति के साथ व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर लक्षित होती है। प्राचीन शिक्षा प्रणाली में गुरु-शिष्य परंपरा के तहत औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। उस समय विद्यार्थी आश्रमों में रहकर शिक्षा ग्रहण करते और निपुण होकर घर लौटते थे। इस प्रणाली का उद्देश्य विषयों को रटकर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना नहीं था, बल्कि चिंतन, मनन, तर्क आदि के साथ ज्ञान को आत्मसात करना था। इस पद्धति में व्यक्ति की योग्यता का निर्धारण उसकी क्षमताओं या कार्य कौशल के विकास के आधार पर होता था और व्यक्ति शिक्षा पूरी करने के बाद आत्मनिर्भर और रोजगार सक्षम होकर घर लौटता था। इसमें कोई संशय नहीं है कि प्राचीन शिक्षा पद्धति उत्कृष्ट थी।
भारत में तुर्कों के हमलों और उनके सत्ता में आने के बाद उन्होंने यहां की संस्कृति और शिक्षा पद्धति को प्रभावित करना शुरू किया। मध्यकाल में मामलूक वंश, जिसका संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था, के काल खंड में मदरसों में मजहब आधारित शिक्षा दी जाने लगी। यह शिक्षा प्रणाली व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित न होकर मजहब केंद्रित थी। बाद में मुगलों के शासन काल में इस शिक्षा प्रणाली का प्रचार-प्रसार हुआ और हमारी ज्ञान आधारित शिक्षण परंपरा हाशिए पर खिसकती चली गई। मुगलों के बाद अंग्रेजों ने देश पर शासन किया। औपनिवेशिक काल में आधुनिक शिक्षा पद्धति की नींव रखी गई, लेकिन इसकी बागडोर ईसाइयों के हाथ में रही, इसलिए इसमें भी एक मत केंद्रित विचारधारा का ही पोषण होता रहा। इस शिक्षा प्रणाली के तहत इतिहास, भूगोल, व्याकरण, साहित्य, गणित आदि पढ़ाए जाने वाले विषयों की पृष्ठभूमि पश्चिमी थी।
- भाषा के चुनाव के लिए छात्रों पर कोई बाध्यता नहीं होगी। उनके लिए संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं को पढ़ने के विकल्प भी मौजूद रहेंगे।
- कक्षा 10 में बोर्ड की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है। अब छात्र को सिर्फ2वीं की परीक्षा देनी होगी।
दरअसल, 1835 में औपनिवेशिक शासन ने प्राचीन शिक्षा पद्धति की ओर पुन: लौटने की भारत की बची हुई उम्मीद को अंधे कुएं में धकेल दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने मैकाले की पश्चिम आधारित शिक्षा प्रणाली लागू की। इसका उद्देश्य भारत में उच्च और मध्यम वर्ग के एक छोटे तबके को शिक्षित करना था, जो हो तो भारतीय, लेकिन वैचारिक और नैतिक रूप से अंग्रेजी संस्कृति की पैरवी करे, ताकि ब्रितानी सरकार अपने हित साधने के लिए उनका इस्तेमाल कर सके। अंग्रेजी शासन के दौरान शिक्षण संस्थान तो बढ़ते रहे, पर शिक्षा का स्तर गिरता रहा। मैकाले द्वारा पेश शिक्षा नीति के करीब 100 साल बाद शिक्षा प्रणाली में बदलाव किया गया।
बुनियादी शिक्षा नाम से एक योजना अस्तित्व में आई, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि शिक्षा मातृभाषा में तो हो ही, पाठ्यक्रम में करघा, कृषि, चरखा सीखने के साथ साहित्य, भूगोल, इतिहास, गणित की पढ़ाई भी हो। साथ ही, 7-11 साल के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा को अनिवार्य किया गया, जिसे बाद में 6-14 वर्ष किया गया। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में शिक्षा व्यवस्था को वापस स्वदेशी परंपरा आधारित बनाने के प्रयास के प्रयास शुरू हुए। इस व्यवस्था में शिल्प आधारित शिक्षा के जरिए व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर जोर देकर विद्यार्थी को आदर्श नागरिक बनाने के लक्ष्य को सबसे ऊपर रखा गया, जो हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली का एक अहम तत्व था।
पसंद अपनी, रास्ता अपना
वीशू मलिक ने अपने पिता के कहने पर बी. कॉम किया था। पर उन्होंने अकाउंटेंट की नौकरी नहीं की, क्योंकि उन्हें उसमें आगे बढ़ने की संभावना नहीं दिखाई दी और यह विषय उन्हें बहुत नीरस भी लगा। लिहाजा उन्होंने आईटी का क्षेत्र चुना, जिसमें उनकी दिलचस्पी थी। वे कहते हैं, ‘‘आईटी क्षेत्र पूरी दुनिया से जोड़ कर रखता है। हर दिन दुनिया भर में नई सूचनाएं तैयार होती हैं। उन्हें संकलित करना और जमा करना एक महती कार्य है। यह कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी के मेल से ही संभव हो पाया है। भारत जैसे विकासशील देश में इसकी मांग में तेजी आ रही है। यह ऐसा क्षेत्र है, जो न केवल तेजी से बढ़ रहा है, बल्कि इसमें सीखने का भी मौका मिलता है और यह रोजगार के नए दरवाजे भी खोल रहा है।’’ वीशू सॉफ्टवेयर कंपनियों के बनाए एप में होने वाली गड़बड़ियों और समस्याओं का कारण पता कर उनका निवारण करते हैं।
साकेत मोदी एमबीबीएस के बाद मास्टर्स इन मेडिकल साइंस एंड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रहे हैं। उनका मानना है कि चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनियों में उन्हें अच्छी नौकरी मिल सकती है। इसके अलावा, उनके सामने शोध का विकल्प भी है। वे कहते ‘‘भारत में मेडिकल क्षेत्र में शोध और विकास के लिए अभी उतना मजबूत ढांचा उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण हमें अधिकांश चिकित्सा उपकरण विदेशों से मंगाने पड़ते हैं। इसके कारण देश का बहुत पैसा बाहर चला जाता है। कोरोना के समय इस कमी को सबसे अधिक महसूस किया गया। साकेत का लक्ष्य शोध करना है और उनका सपना है कि भारत चिकित्सा उपकरण के क्षेत्र में साधन संपन्न बने।’’ वहीं, साक्षी आईपी यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन कर रही हैं। उनका मानना है कि खबरों की दुनिया लोगों को जागरूक बनाने में अहम भूमिका निभाती है। हम पूरे विश्व से खबरों के जरिए ही जुड़े रहते हैं। उनका सपना सकारात्मक पत्रकारिता के जरिए देश में सार्थक बदलाव लाना है।
पहला शिक्षा आयोग
आजादी के बाद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग बना, जिसे राधाकृष्णन आयोग या विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग कहते हैं। इसके तहत देश के विश्वविद्यालयों में दी जा रही शिक्षा के स्वरूप को नए सिरे से गढ़ने पर जोर दिया गया, ताकि विभिन्न विदेशी शासनों के दौरान हाशिए पर धकेल दी गई हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली पर आधारित आधुनिक शिक्षा पद्धति का गठन हो। आधुनिक शिक्षा पद्धति राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पुनरुत्थान में सहायक होने के साथ वैज्ञानिक, तकनीकी, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्र में मानव संसाधन का विकास सुनिश्चित करे। बाद के वर्षों में शिक्षा को बेहतर करने, उसे रोजगार उपयोगी बनाने के लगातार प्रयास हुए।
पश्चिमी शिक्षा प्रणाली ने अभिभावकों में मन में यह भावना भर दी कि परंपरागत करियर ही सबसे अच्छा है, क्योंकि उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक जैसी नौकरियां सुरक्षित लगती थीं या इनमें स्थायित्व दिखता था। लेकिन जरूरी नहीं कि सभी बच्चों में पढ़ाई को लेकर समान रुचि, प्रतिभा या रुझान हो
शिक्षा व्यवस्था को दोहरा दायित्व निभाना होता है। पहला, इनसान को ऐसा ज्ञान देना ताकि वह जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित अपनी भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वाह कर सके। दूसरा, उसे ऐसे शिक्षित करना, जिससे वह समाज में उत्पादक भूमिका निभाए और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। पश्चिमी शिक्षा प्रणाली ने अभिभावकों में मन में यह भावना भर दी कि परंपरागत करियर ही सबसे अच्छा है, क्योंकि उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक जैसी नौकरियां सुरक्षित लगती थीं या इनमें स्थायित्व दिखता था। लेकिन जरूरी नहीं कि सभी बच्चों में पढ़ाई को लेकर समान रुचि, प्रतिभा या रुझान हो। अभिभावकों की अपेक्षा बच्चों पर भारी पड़ती है। बच्चे दबाव में आ जाते हैं और अपनी क्षमता के अनुरूप परिणाम नहीं दे पाते।
अक्सर वे अवसाद में घिर जाते हैं। यानी पढ़ाई में पिछड़ना बच्चों के लिए अभिशाप बन जाता है। कुछ अलग करने और सफलता पाने की क्षमता होने के बावजूद वे कुछ नहीं कर पाते। अंतत: निराशा और हताशा में या तो वे गलत दिशा में कदम बढ़ाते हैं या आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठा लेते हैं। कई बच्चे माता-पिता के कहने पर परंपरागत विषय लेकर पढ़ाई तो करते हैं, पर बाद में अपने पसंद के क्षेत्र की ओर बढ़ जाते हैं। जब उस क्षेत्र में सफल हो जाते हैं और उनकी भी अच्छी आय हो जाती है तो अभिभावक भी संतुष्ट हो जाते हैं। आज वैश्वीकरण के दौर में जीवन के हर आयाम से जुड़े क्षेत्र में रोजगार की संभावना है।
खेल, मनोरंजन, कुकिंग, फैशन, शिल्पकला, सेवा आदि क्षेत्रों में रोजगार के ढेरों विकल्प हैं। यही नहीं, परंपरागत विषयों के पाठ्यक्रमों में भी प्रयोग हो रहे हैं। दो विषयों को मिलाकर एक नया विषय तैयार हो रहा है। जैसे- एमबीबीएस के साथ टेक्नालॉजी का पाठ्यक्रम उपलब्ध है, तो कोई एमबीए से हासिल प्रबंधन कौशल को कृषि क्षेत्र में आजमा रहा है। कोई बैचलर आॅफ डिजाइन करके फैशन टेक्नोलॉजी में काम कर रहा है, जिसमें ग्राफिक्स डिजाइन से लेकर कंटेंट तैयार करना और फैशन फोटोग्राफी भी शामिल है। सूचना प्रौद्योगिकी ने हर क्षेत्र के लिए दरवाजे खोल दिए हैं।
इंजीनियरिंग में नए पाठ्यक्रम
इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में कुछ नए विषयों ने अपनी पैठ बनाई है। इन पाठ्यक्रमों को दुनियाभर में अपनाया जा रहा है। ऐसे ही कुछ नए पाठ्यक्रम हैं-
पॉलीमर इंजीनियरिंग: 20वीं सदी की शुरुआत में प्लास्टिक के आविष्कार के साथ दुनियाभर में इसका इस्तेमाल इतनी तेजी से बढ़ा। आज दुनिया इसके बगैर नहीं चल सकती। हवाई जहाज से लेकर घर में प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक या पॉलीमर (कृत्रिम रेशे) से तैयार उत्पादों और फर्नीचर तक ने लोगों के जीवन में जगह बना ली है। यह क्षेत्र पॉलीमर इंजीनियरिंग के तहत आता है जो बेहतर संभावनाओं के कारण युवाओं में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
सिरेमिक टेक्नोलॉजी: सिरेमिक ने एक बहु-उपयोगी पदार्थ के रूप में अपनी पहचान बनाई है। इस उद्योग में ईंट, टाइल्स, बिजली के इंसुलेटर, कटाई के उपकरण बनाए जाते हैं। इसके अलावा सजावटी सामान, डिनर सेट, कप-प्लेट आदि भी बनते हैं।
वुड एंड पल्प टेक्नोलॉजी: इस पाठ्यक्रम में लकड़ी से बनने वाले विभिन्न उत्पादों पर केमिकल, फिजिकल और इंजीनियरिंग के विभिन्न सिद्धांतों के प्रयोग के बारे में सैद्धांतिक और व्यावहारिक बातें पढ़ाई जाती हैं। इसमें कागज तैयार करने के लिए लकड़ी की लुगदी का उपयोग करना और उससे संबंधित विभिन्न प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण भी शामिल है।
टेक्सटाइल इंजीनियरिंग: कपड़ा क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है, जिसमें हथकरघा बुनाई से लेकर आज की अत्याधुनिक मशीनों पर तैयार होने वाले कपड़ों का लंबा इतिहास रहा है। शोध की दृष्टि से यह बड़ा क्षेत्र है, जिसमें कपड़ा निर्माण की पूरी प्रक्रिया में टेक्सटाइल फैब्रिक और यार्न के उत्पादन के विभिन्न चरणों पर हो रहे काम, कपड़ा बुनने के रेशे, कपड़े से बनाए जा रहे परिधान, अन्य उत्पाद और मशीनरी से जुड़े सभी काम, व्यवस्थित तरीके से किए जाते हैं। इस पाठ्यक्रम के जरिए निटवेयर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स, टेक्सटाइल डाइंग एंड प्रिंटिंग यूनिट्स, टेक्सटाइल मिल्स, एक्सपोर्ट हाउस में नौकरी करने के अवसर मिल सकते हैं। इसके अलावा, सरकार द्वारा प्रायोजित या निजी सिल्क, हैंडलूम, जूट, खादी, क्राफ्ट डेवलपमेंट संस्थानों में भी काम करने का मौका मिल सकता है। यही नहीं, चिकित्सा विज्ञान भी कृत्रिम धमनी और किडनी डायलिसिस मशीन के फिल्टर्स के लिए टेक्सटाइल्स पर निर्भर करती है, जैसे-जार्विक, जो 7 कृत्रिम हृदय 50 प्रतिशत टेक्सटाइल फाइबर से बना होता है और उसमें वेल्क्रो फिटिंग्स होती है।
आर्किटेक्चर, इंटीरियर डिजाइन एवं प्लानिंग: इसमें भवन निर्माण संबंधी विभिन्न आयामों पर ध्यान दिया जाता है। यह पाठ्यक्रम इमारतों की योजना, डिजाइन और निर्माण के बारे में बताता है। इसके साथ ही स्केचअप, रेविट थ्री-डी स्टूडियो मैक्स जैसे कुछ सॉफ्टवेयर भी सीखने पड़ते हैं, जिसकी मदद से कंप्यूटर पर इमारत का खाका तैयार किया जाता है।
डेयरी टेक्नोलॉजी: हाल के वर्षों में दूध और इससे तैयार उत्पादों का बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। लिहाजा डेयरी उत्पादों की सही प्रसंस्करण और उन्हें देर तक ताजा रखने की तकनीक के कारण दूध-दही, खोया, पनीर-मक्खन के अलावा दूध से बने शीतल पेय, विभिन्न तरह की वस्तुएं और नए उत्पाद भी तैयार हो रहे हैं। देश में दुधारू पशुओं की बड़ी संख्या इस क्षेत्र में संभावनापूर्ण भविष्य की राह तैयार कर रही है। डेयरी टेक्नोलॉजी इन्हीं सभी कार्यों के व्यवस्थित प्रबंधन से जुड़ा है।
एन्वायर्नमेंटल इंजीनियरिंग: आज लोगों में पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के प्रति गहरी जागरूकता आई है। इस पाठ्यक्रम में पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने, उसकी स्थिति में सुधार लाने संबंधी तकनीकों, समाधानों और उपायों के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके तहत सिर्फ वायुमंडल का ही नहीं, बल्कि भूमि, जल और ध्वनि संबंधी प्रदूषण का निवारण भी शामिल है।
खेल क्षेत्र: इस क्षेत्र में भी करियर के लिए अपार संभावनाएं हैं। हालांकि अन्य क्षेत्रों के मुकाबले इसमें शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता है। रुचि के अनुसार बच्चे संबंधित प्रशिक्षण संस्थान में प्रवेश ले सकते हैं। कड़े अभ्यास से न केवल वे उस खेल में पारंगत हो सकते हैं, बल्कि ख्याति और अच्छी आय भी अर्जित कर सकते हैं।
खेल प्रबंधन: यह खेल से जुड़ा ऐसा क्षेत्र है, जिसमें खेलों के आयोजन, उनकी मार्केटिंग आदि के जरिए आयोजकों को मोटी आमदनी होती है। यह सब इस पर निर्भर करता है कि खेल आयोजन का प्रबंधन कैसा हुआ। इस काम को सफल तरीके से पूरा करने की जिम्मेदारी खेल प्रबंधक की होती है। उनका कार्य खेल के साथ मुनाफे को जोड़ना है। इसलिए आज यह करियर का एक बेहतरीन विकल्प है।
करियर के प्रति सचेत युवा पीढ़ी
सोहम बोस 9वीं कक्षा का छात्र है। उसकी विज्ञान में रुचि नहीं थी, इसलिए उसने राजनीति शास्त्र चुना। सोहम का कहना है, ‘‘मैं राजनीति में जाना चाहता हूं, इसलिए यह विषय चुना है। मेरा सपना देश का नेता बनकर राष्ट्र के विकास में योगदान करना है।’’ इसी तरह, स्वप्निल श्रेयांस ने एक उभरते क्षेत्र को करियर के तौर पर चुना। उन्होंने प्रोडक्ट डिजाइनिंग में डिग्री ली है। वे कहते हैं, ‘‘यह एक उभरता हुआ करियर है। इसमें कई चीजें सीखने का मौका मिलता है, क्योंकि इसके तहत वस्त्र उद्योग से लेकर डिजिटल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, फर्नीचर उद्योग, फूड एंड पैकेजिंग आदि क्षेत्र में रोजगार की भरपूर संभावनाएं हैं। इसमें बाजार के मौजूदा रुझानों के अनुसार उत्पाद को सफल बनाने से जुड़े सभी पहलुओं पर काम होता है।’’
श्रेयांसी सिन्हा ने अंग्रेजी और चीनी भाषा में डिग्री ली है। वे एक अच्छी कंपनी में कंटेंट डेवलपमेंट विभाग की मैनेजर हैं। उन्हें इस बात की तसल्ली है कि उन्होंने एक अलग भाषा सीखी है, जिससे उन्हें दुभाषिए का काम करने का मौका भी मिलता है। विदेशी भाषा का ज्ञान संबंधित दूतावासों या बहुराष्ट्रीय कंपनियों में शानदार नौकरी का आश्वासन देता है। तन्वी वर्मा इवेंट मैनेजर हैं। वे बताती हैं कि कोई भी समारोह जैसे- संगीत समारोह, फैशन शो, अवार्ड समारोह, कॉर्पोरेट सेमिनार, प्रदर्शनी, विवाह समारोह, थीम पार्टी या कोई उत्पाद पेश करने से जुड़े कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संपन्न कराने की जिम्मेदारी इवेंट मैनेजर की होती है। इसमें कार्यक्रम की रूपरेखा तय करने, उसके संयोजन, बजट आदि से लेकर उसे अच्छे से संपन्न कराना शामिल है। यह एक दिलचस्प क्षेत्र है।
नई शिक्षा नीति की भूमिका
नई शिक्षा नीति-2020 भी इस दिशा में बेहद सार्थक भूमिका निभाने वाली है। इसमें हमारी प्राचीन शिक्षा परंपरा के बुनियादी तत्व शामिल हैं। इसमें औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों ही तरह के पाठ्यक्रम रखे गए हैं। स्कूल स्तर से ही व्यावसायिक और कौशल आधारित विषयों की पढ़ाई और प्रशिक्षण से कुशल मानव संसाधन तैयार होगा, जिसके पास रोजगार प्राप्त करने या व्यवसाय करने, दोनों ही तरह की योग्यता होगी। कोरोना महामारी के दौर में दुनिया जितनी भावनात्मक यंत्रणा से गुजरी, उसने उतने ही आर्थिक संकट का भी सामना किया। उसी का नतीजा है कि लोगों में स्वरोजगार की भावना जागी है, जिसमें नई शिक्षा नीति बहुत मददगार साबित होगी। कल तक परंपरागत विषय क्षेत्र लोगों की पहली पसंद हुआ करते थे, आज उनके साथ-साथ कई अपरंपरागत विषयों ने भी अपनी मजबूत जगह बना ली है। आज बच्चे जिस क्षेत्र को पसंद कर रहे हैं, उसमें जा रहे हैं और अभिभावक भी सहयोग देने लगे हैं। अब ऐसे युवाओं की नई पौध तैयार हो रही है जो हर क्षेत्र को आजमा रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं।
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