17वीं सदी का मानव 21वीं सदी में आ जाए तो यकीन मानिए कि वह हमारी जीवनशैली देख कर पूरी तरह चकरा जाएगा। कारण कि उसने विज्ञान व तकनीक की इस जादुई दुनिया की कल्पना कभी सपने में भी नहीं की होगी।
अपने इर्द-गिर्द निगाह दौड़ा कर देखें, आज समूची दुनिया तकनीक की गिरफ्त में है। बीती सदी में कंप्यूटर क्रांति और 21वीं सदी के बीते दो दशकों में डिजिटल क्रांति ने दुनिया की काया ही पलट दी है। जरा कल्पना करके देखें कि यदि 17वीं सदी का मानव 21वीं सदी में आ जाए तो यकीन मानिए कि वह हमारी जीवनशैली देख कर पूरी तरह चकरा जाएगा। कारण कि उसने विज्ञान व तकनीक की इस जादुई दुनिया की कल्पना कभी सपने में भी नहीं की होगी।
निस्संदेह कोई भी इस तथ्य को अनदेखा नहीं कर सकता कि तकनीक आज हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गई है। उदाहरण के तौर पर मोबाइल फोन को ही देखिए! जेब और पर्स में सहजता से समा जाने वाले इस छोटे से तकनीकी उपकरण में अलादीन के चिराग की भांति आज के अत्याधुनिक इंसान की हर छोटी-बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी तथा सुख-सुविधा का त्वरित समाधान निहित है।
स्मार्ट फोन का प्रभाव
अत्याधुनिक फीचर्स से लैस स्मार्ट मोबाइल फोन ने लोगों की आदतों और जिंदगी के तरीकों को बेहद गहराई से प्रभावित किया है। स्मार्ट फोन जानकारी, सूचना और संवाद की नई दुनिया रचने के साथ संवाद का सबसे सुलभ, सस्ता और उपयोगी साधन साबित हो रहा है। इस बहुपयोगी संचार उपकरण ने मैसजिंग के टेक्स्ट को एक नए पाठ में बदल दिया है। यह हमें फेसबुक से भी जोड़ता है और ट्विटर से भी। यहां व्यक्त किया गया एक पंक्ति का विचार सोशल मीडिया पर हाहाकार मचा सकता है। इसने एक पूरी की पूरी जीवन शैली और भाषा विकसित कर दी है।
यह करामाती फोन जहां एक ओर खुद में रेडियो, टीवी, तमाम बहुउपयोगी एप्स और सोशल साइट्स के साथ सक्रिय है, वहीं आॅनलाइन गेम्स, गीत-संगीत, टीवी धारावाहिक तथा फिल्मों के माध्यम से लोगों का भरपूर मनोरंजन भी कर रहा है। नई पीढ़ी को आकर्षित करने में इस तकनीकी उपकरण ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस पर प्यार से लेकर व्यापार सब पल रहा है। मनोरंजन के नाम पर आॅनलाइन गेम्स के खतरे किसी से छुपे नहीं हैं। बच्चे हिंसक व चिड़चिड़े हो रहे हैं। प्रो. संजय द्विवेदी की मानें तो उत्तर आधुनिक संवाद का यह अनूठा यंत्र आज के मनुष्य के एकांत को भरने वाला ऐसा हमसफर बन रहा है जो अपनी तमाम अच्छाई व बुराई के साथ लोगों को पूरी शिद्दत से बांधता है। हमारे कान, मुंह, उंगलियां और दिल सब इसके निशाने पर हैं।
बदल दिया जीवन का मतलब
एक कक्षा में शिक्षक ने बच्चों से पूछा- जीवन क्या है? एक बच्चे ने छोटा सा, लेकिन बहुत चौंकाने वाला जवाब दिया। बच्चे ने कहा, ‘‘मोबाइल फोन के साथ बिताया गया समय ही असली जीवन है।’’ सोशल मीडिया पर वायरल इस संदेश को हमारे जीवन में इस उपकरण की गहराती पकड़ का बेहद सटीक उदाहरण माना जा सकता है। बेशक यह जवाब आपको भी भीतर तक छू गया होगा। वाकई 6 इंच की मोबाइल स्क्रीन आज देश की 70 प्रतिशत आबादी की जिंदगी बन गई है। इसने संचार माध्यमों की दुनिया को बड़े बुनियादी ढंग से बदल दिया है और यह प्रक्रिया लगातार जारी है।
जानना दिलचस्प है कि सोशल मीडिया जब से डेस्कटॉप व लैपटॉप से आगे निकल कर मोबाइल फोन पर सक्रिय हुआ है, तब से इसकी द्विपक्षीय संवाद क्षमता ने इसे लोकप्रियता के चरम पर पहुंचा दिया है। गौरतलब है कि देश में स्मार्ट फोन के बढ़ते उपयोग पर जारी एक ताजा सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक बीते दो साल में लोगों के मोबाइल इस्तेमाल करने का समय डेढ़ गुना बढ़ गया है। आज देश के लोग औसतन दिन के सात घंटे फोन पर बिता रहे हैं। मार्च 2019 में किए गए एक सर्वे के अनुसार, उस समय देशवासी रोजाना औसतन 4.9 घंटे फोन पर बिताते थे, लेकिन मार्च 2020 के कोरोना लॉकडाउन के दौरान यह अवधि बढ़कर 12 से 14 घंटे हो गई थी। आज भी बड़ी संख्या में लोग 6-10 घंटे प्रतिदिन स्मार्टफोन पर बिता रहे हैं।
बिगाड़ रहा सेहत
पुरानी कहावत है-‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’। तकनीक के इस्तेमाल के मामले में यह कहावत आज सही साबित हो रही है। तकनीक ने आज इनसान की पूरी जिंदगी पर कब्जा कर लिया है। हम इसके गुलाम बन गए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो हर समय स्मार्टफोन से चिपके रहने की वजह से लोगों में तनाव, बेचैनी और अवसाद की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इससे न केवल आंखों और मनो-मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, बल्कि कई अन्य गंभीर बीमारियां भी जन्म ले रही हैं। मनोचिकित्सक डॉ. सुमित कुमार कहते हैं कि तकनीकी उपकरणों के असीमित और अनियंत्रित उपयोग से ‘लाइफ स्टाइल डिसआर्डर’ की समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। अगर आप भी हर वक्त फोन से चिपके रहते हैं और 30 मिनट के लिए भी मोबाइल से दूर नहीं रह पाते तो यह आपकी सेहत के लिए खतरे की घंटी है। उनके मुताबिक सोते समय फोन को सिरहाने रखने की आदत बहुत खतरनाक है। अंतरराष्ट्रीय कैंसर रिसर्च एजेंसी ने मोबाइल फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरणों को संभावित कार्सिनोजन (कैंसरकारी तत्वों) की श्रेणी में रखा है।
उसने चेताया है कि स्मार्टफोन का अत्यधिक इस्तेमाल मस्तिष्क और कान में ट्यूमर पनपने की वजह बन सकता है, जिसके आगे चलकर कैंसर का भी रूप लेने की आशंका रहती है। इस अध्ययन में मोबाइल फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरणों का नपुंसकता से भी संबंध बताया गया है। इसी तरह, इज्राएल की हाइफा यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में कहा गया है कि मोबाइल से निकलने वाली नीली रोशनी ‘मेलाटोनिन’ नामक हार्मोन के उत्पादन को बाधित करती है, जिससे नींद में दिक्कत होती है। इससे घबराने की नहीं, वरन् सावधानी बरतने और चेतने की जरूरत है। हमें यह समझना होगा कि हम जीते-जागते इनसान हैं, रोबोट नहीं। अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव लाकर हम इस तकनीकी उपकरण से अपने स्वास्थ्य को होने वाले खतरों से काफी हद तक बच सकते हैं-
- मोबाइल व लैपटॉप पर काम करते समय थोड़ी-थोड़ी देर में 5-10 मिनट के लिए आंखों को विश्राम जरूर दें। पीठ व गर्दन को यथासंभव सीधा रखें ताकि आंखें कमजोर न हों और स्पोंडलाइटिस की समस्या से बचा जा सके।
- मोबाइल के उपयोग की समयसीमा निर्धारित व नियंत्रित करें, खासकर बच्चों के लिए। घर वालों के साथ मिलकर कोई ऐसा समय तय करें, जब पूरा परिवार एक साथ बैठे और वहां कोई डिजिटल उपकरण न हो।
- देर रात तक फोन पर नेट सर्फिंग व चैटिंग से बचें, क्योंकि अच्छी सेहत के लिए सात से आठ घंटे की नींद बहुत जरूरी है।
- अपनी रुचि के कामों के लिए समय जरूर निकालें। मसलन, अपनी पसंद की किताब पढ़ें, बाग-बगीचे में समय बिताएं, पसंद के व्यंजन बनाएं, पसंद के खेल खेलें।
- प्रतिदिन नियमित रूप से कुछ देर खुली हवा में टहलें और ध्यान व प्राणायाम करें ताकि मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से होने वाले तनाव, व्यग्रता व बेचैनी से मुक्त हुआ जा सके।
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