श्रीलंका में पिछले करीब 4 महीने से सरकार विरोधी आंदोलनकारी देश की तमाम व्यवस्थाओं को पंगु बनाए हुए हैं। पहले आंदोलनकारी तत्कालीन राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग कर रहे थे, इस मांग को लेकर वे गॉल फेस पर धरना देकर 125 दिन बैठे रहे थे। इस स्थान का भी उन्होंने नया नाम ‘गोटा गो गामा’ (गोटबया घर वापस जाओ) रख दिया था। गत 10 अगस्त को आखिरकार आंदोनकारियों ने वह स्थान खाली कर दिया। लेकिन इसके ठीक पहले अनेक आंदोलनकारी इस अपील के साथ सर्वोच्च न्यायालय चले गए थे कि आंदोलन के इस स्थान को यथावत रखा जाए।
उन्हीं सब आंदोलनकारियों पर अब सरकार सख्त कार्रवाई करने जा रही है। अभी तक अनेक आंदोलनकारी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इतना ही नहीं, अब शहरी विकास एवं आवास मंत्री प्रसन्ना राणातुंगा ने ऐसा बयान दिया है कि जिसने आंदोलन में सक्रिय रहे आंदोलनकारियों की चिंता बढ़ा दी है। राणातुंगा ने कहा है कि कोलंबो में प्रमुख आंदोलन स्थल गॉल फेस को आंदोलन की वजह से पहुंचे नुकसान की भरपाई उन्हीं आंदोनकारियों की संपत्ति बेचकर की जाएगी।
बता दें कि गॉल फेस का पूरा क्षेत्र राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास के ठीक सामने है। इसे हरित क्षेत्र का दर्जा दिया गया है। मंत्री राणातुंगा का कहना है कि यह सार्वजनिक संपत्ति है। साथ ही, शहरी विकास प्राधिकरण ने इस क्षेत्र के विकास में काफी पैसा खर्च किया है। राणातुंगा ने कहा है कि जिन आंदोलनकारियों ने गॉल फेस में आंदोलन स्थल बनाए रखने के लिए अदालत में अर्जी दी थी, उन्हें इस क्षेत्र को हुए नुकसान की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए, इसको खराब करने के लिए खुद को जिम्मेदार मानें।
उल्लेखनीय है कि राजपक्षे के इस्तीफा देने के बाद आंदोलन के लिए जन समर्थन तेजी से कम होता दिखा था, इसलिए आंदोलन करने वालों ने प्रतिरोध खत्म करने का फैसला किया था। बताते हैं कि राष्ट्रपति पद संभालने के फौरन बाद विक्रमसिंघे ने सरकार विरोधी आंदोलनकारियों पर सख्ती करने की नीति अपनाई। अब आंदोलनकारियों की संपत्ति जब्त करने का संकेत दे दिया गया है। राणातुंगा ने कहा है कि सरकारी संपत्ति के नुकसान के अंदाजा लगाया जाएगा और उसके बाद अदालत में मुकदमा दर्ज होगा। सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई इसके जिम्मेदार आंदोलनकारियों से की जाएगी।
हालांकि मीडिया में आई खबरों को देखें तो पता चलता है कि सरकार के इस सख्त निर्णय से आंदोलनकारी डरे हुए हैं। कुछ ने तो यहां तक कहा है कि आंदोलन में शामिल होने की वजह से उनकी नौकरी चली गई है, अब उनसे नुकसान की भरपाई करने को कहा जा रहा है। एक आंदोलनकारी नेता ने तो एक पोर्टल से बात करते हुए यहां तक कहा कि उसने जो भी किया, वह अपने देश, अपने, अपने परिवार तथा उन लोगों की खातिर किया, जो सरकार से खुश नहीं थे। अब तो मेरी ही जिंदगी खतरे में आ गई है। मेरी नौकरी भी जा चुकी है। जो कुछ पैसा बचा था, उससे ही गुजारा चल रहा है।
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