लक्ष्मी नारायण जग्गी
रावलपिंडी, पाकिस्तान
बंटवारे के समय मैं 13 साल का था। पिताजी बैंक में नौकरी करते थे। सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन एक दिन रावलपिंडी के बाजार में हिन्दू-मुसलमानों के बीच झगड़े शुरू हो गए।
मुसलमान झुंड में आकर, तलवारें लेकर हमला कर रहे थे। खबरें आ रही थीं कि दंगा होने वाला है और ऐसा ही हुआ। बाजार में जहां भी हिन्दुओं की दुकानें थीं, उन्हें आग लगाई जाने लगी, हिन्दुओं के घरों को लूटा जाने लगा।
यानी माहौल अराजक हो चुका था। मुझे याद है कि रात में मैंने छत पर जाकर देखा तो चारों तरफ शोर था। आग की लपटें थीं। धुंआ उठ रहा था। घर के पास एक गोशाला थी, वहां मुसलमानों ने आग लगा दी थी।
चारों तरफ अल्लाह-हू-अकबर की आवाजें आ रही थीं। गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई दे रही थी। मेरे पड़ोसी को गोली मार दी गई थी। पिताजी हकीमी करते थे, सो वे उसकी चिकित्सा करने गए थे।
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