श्रीसंत पाल रावल
साहिवाल, पाकिस्तान
उन दिनों आजादी का जोश था। हर तरफ मेरा रंग दे बसंती चोला…जैसे देशभक्ति के गीतों की धुन सुनाई देती थी। लेकिन धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा। अब नारे आने लगे- ‘नारा-ए-तकबीर अल्लाह-हू-अकबर’, ‘लेकर रहेंगे पाकिस्तान।’ तब मैं सात साल का था।
मेरे पिताजी जमींदार थे। घर-परिवार बहुत समृद्ध था। अचानक घर के पास एक दिन मुनादी होती है कि देश बंट गया है, इसलिए हिन्दू पाकिस्तान से चले जाएं। यह मुनादी होते ही मेरे पड़ोसी मुसलमान, खेतों में काम करने वाले मजदूर जो कल तक हमारी आवभगत करते थे, उनकी नजरें ही बिल्कुल बदल गई।
अब इलाके में एक डर का माहौल बनने लगे लगा था। वही मुसलमान डरा रहे थे। जान का खतरा बन चुका था। मुसलमान समृद्ध परिवारों को निशाना बनाने लगे थे, क्योंकि जिहादियों को पता था कि इनके घरों से काफी माल-पैसा मिल सकता है।
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