उत्तराखंड के चंपावत जिले के बाराहीधाम देवीधुरा में हर साल रक्षा बंधन के दिन पत्थर मार बग्वाल युद्ध होता है देश मे अपने तरह के इस अनोखे बगवाल युद्ध की अवधि करीब दस मिनट रही। इस दौरान चार खाम और सात थोकों के रणबांकुरों में से करीब अस्सी लोग चोटिल हो गए। जो लोग घायल हुए उनका रक्त माँ बाराही को अर्पित माना जाता है ।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बग्वाल मेले में हिस्सा लेने पहुंचे, उल्लेखनीय है कि सीएम धामी ने इस उत्सव को उत्तराखंड सरकार का उत्सव घोषित किया था।
क्या है पत्थर मार बग्वाल युद्ध की कहानी
कहते है सालो पहले यहां नर बलि की प्रथा थी,चार गांवो बारी बारी से एक नर बलि दिए जाने की परंपरा में एक बार एक वृद्धा के पुत्र की बारी आगयी। दो गांवों ने इस का विरोध किया तो लड़ने झगङे पर उतारू हो गए दोनों पक्षो में मंदिर परिसर में पथराव हुआ,दोनों पक्षो का रक्त बहता देख मंदिर पुजारी ने बीच मे आकर आपसी संघर्ष रोक दिया और जिनका रक्त बहा उसे माता बाराही को अर्पित मान लिया तब से हर रक्षा बंधन के दिन येही परंपरा चली आ रही है देवीधुरा के दो दो गांव आमने सामने होकर पत्थर युद्ध करते है इसी युद्ध को बग्वाल कहा जाता है।
हजारों की संख्या में जुटती है भीड़
हर साल इस युद्ध को देखने हज़ारों लोग देवीधुरा पहुंचते है। सुबह दस बजे सबसे पहले गहरवाल खाम के योद्धाओं ने बाराही मंदिर की परिक्रमा की। उसके बाद लमगडिय़ा खाम के योद्धा मंदिर में पहुंचे। जबकि बालिक और चम्याल खाम के योद्धा सबसे अंत में मंदिर की परिक्रमा को पहुंचे। चारों खामों के मंदिर परिसर में स्थित खोलीखांड दुर्बाचौड़ मैदान में पहुंचने के बाद मंदिर के पुजारी के संकेत के बाद बगवाल युद्ध शुरू हो गया। जो करीब दस मिनट तक चला, जिसमे दोनो तरफ से पत्थरो की बौछारें शुरू हो गई। जिनमे करीब अस्सी लोग घायल हुए।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मां बाराही देवी का आशीर्वाद लेने मंदिर परिसर में पहुंचे और पूजा अर्चना की, उन्होंने देवीधुरा में मौजूद एक लाख से ज्यादा श्रद्धालुओ का अभिवादन किया और उन्हे बग्वाल उत्सव की शुभ कामनाएं देते हुए कहा कि बाराही धाम का हमारी सरकार मानसखंड सेक्टर के तह विकास करने जा रही है ताकि तीर्थयात्री यहां आसानी से पहुंच सके।
कोविड के बाद इस दफा प्रशासन की सख्ती नही थी जिस वजह से बगवाल मेले में हजारों श्रद्धालु और तीर्थयात्री यहां पहुंचे। बाद में पत्थर मार युद्ध में चोटिल हुए लोगों का मंदिर परिसर में ही उपचार किया गया, चोटिल लोगो का रक्त ही मां बाराही देवी को अर्पित माना जाता है कहते है मां इन्हे आशीर्वाद देती है।
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