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नई विधानसभा में पंजाब बाधा

हरियाणा को पंजाब से अलग हुए 56 साल बीत गए, लेकिन आज तक विधानभवन में उसे 40 प्रतिशत हिस्सा नहीं मिला। 2026 में होने वाले परिसीमन को देखते हुए हरियाणा का मौजूदा विधान भवन पर्याप्त नहीं होगा। नई विधानसभा बनाने के लिए केंद्र चंडीगढ़ में राज्य को 10 एकड़ जमीन दे रहा है तो पंजाब इसमें बाधा बन रहा

by डॉ. राजेश चौहान
Aug 12, 2022, 08:25 am IST
in विश्लेषण, हरियाणा
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पंजाब से अलग होने के 56 वर्ष बाद हरियाणा अपनी जरूरत के हिसाब से नई विधानसभा बनाने की तैयारी कर रहा है, किन्तु इस पर विवाद खड़ा हो गया है। इसे लेकर हरियाणा और पंजाब आमने-सामने हैं। दरअसल, 2026 में अपेक्षित परिसीमन को देखते हुए हरियाणा का वर्तमान विधानभवन पर्याप्त नहीं होगा।

समय का चक्र विकास क्रम में घूमता है तो नई आवश्यकताएं, अपेक्षाएं और अवधारणाएं जन्म लेती हैं, किन्तु कई बार अतीत की अड़चनें चुनौती बन जाती हैं। हरियाणा के साथ यही हो रहा है। पंजाब से अलग होने के 56 वर्ष बाद हरियाणा अपनी जरूरत के हिसाब से नई विधानसभा बनाने की तैयारी कर रहा है, किन्तु इस पर विवाद खड़ा हो गया है। इसे लेकर हरियाणा और पंजाब आमने-सामने हैं। दरअसल, 2026 में अपेक्षित परिसीमन को देखते हुए हरियाणा का वर्तमान विधानभवन पर्याप्त नहीं होगा। इसलिए राज्य ने नए विधानभवन के लिए केंद्र सरकार से चंडीगढ़ में जमीन मांगी तो यूनेस्को के नियम बाधा बन गए।

हालांकि केंद्र ने नई विधानसभा के लिए हरियाणा को चंडीगढ़ में 10 एकड़ भूमि आवंटित करने की सैद्धांतिक स्वीकृति दे दी है। इसके बदले हरियाणा को इतनी ही जमीन चंडीगढ़ से लगते क्षेत्र में देनी होगी। यहां तक सब ठीक था, लेकिन पंजाब ने इसका विरोध कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। दोनों राज्यों के बीच राजधानी चंडीगढ़, हिंदी भाषी क्षेत्र, अलग उच्च न्यायालय, जल बंटवारे, भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड और पंजाब यूनिवर्सिटी को लेकर विवाद अब तक नहीं सुलझ सके हैं। जब से पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तब से विवादों को पोषित करने का प्रयोजन और तेज हो गया है।

राज्य विभाजन के समय से ही जिस भवन को दोनों राज्य 56 साल से विधानसभा के रूप में साझा करते आ रहे हैं, उस पर भी विवाद है। वर्तमान विधान भवन कैपिटल कॉम्प्लेक्स में स्थित है। इस भवन में 1950 के दशक में दो सदनों का निर्माण किया गया था। एक पंजाब विधानसभा के लिए और दूसरा विधान परिषद के लिए। 1966 में इस भवन को 60:40 के अनुपात में बांट दिया गया। विधान परिषद का सदन हरियाणा को विधानसभा के रूप में आवंटित किया गया। लेकिन पूरे भवन में हरियाणा को अभी तक 40 में से 27 प्रतिशत हिस्सा ही मिला है। हरियाणा विधानसभा के 20 कमरों पर अभी तक पंजाब विधानसभा सचिवालय का कब्जा है।

हरियाणा विधानसभा की ओर से इस बारे में समय-समय पर मांग उठाई गई, किन्तु आज तक विवाद जस का तस है। हरियाणा में वर्तमान में विधायकों की संख्या 90 है, किन्तु 2026 में होने वाले परिसीमन में यह संख्या बढ़ कर 100 से अधिक हो जाएगी। लिहाजा सदन में और विधायकों के बैठने की व्यवस्था नहीं हो पाएगी। इसलिए नए विधानभवन को लेकर हरियाणा ने कवायद शुरू की तो कैपिटल कॉम्प्लेक्स में केंद्र ने उसे जमीन दे दी, जिसका आम आदमी पार्टी विरोध कर रही है।

दोनों राज्यों के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर जल बंटवारा और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड को लेकर भी विवाद पुराना है

भव्य होगी नई विधानसभा: ज्ञानचंद गुप्ता

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जयपुर में हुई उत्तर क्षेत्र परिषद की बैठक में नई विधानसभा का विषय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समक्ष रखा। उन्होंने हरियाणा की अलग विधानसभा को सैद्धांतिक स्वीकृति दी। नई विधानसभा के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल और विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता चंडीगढ़ में 10 एकड़ भूमि चिह्नित कर चुके हैं। गुप्ता का कहना है कि नए विधानभवन के लिए हम एक साल से प्रयास कर रहे थे। केंद्रीय गृह मंत्री ने चंडीगढ़ में हरियाणा की नई विधानसभा बनाने को मंजूरी दी है। देश के अलग-अलग विधानसभा भवनों को देखकर हम एक भव्य विधान भवन बनाएंगे। इसमें मंत्रियों, विधानसभा समितियों कमेटियों के अध्यक्षों के बैठने की व्यवस्था और मीडिया गैलरी बनाएंगे। इमारत विरासत है। इसका सदुपयोग करने के लिए क्या बनाया जा सकता है, इस पर विचार करेंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि हम वर्तमान भवन को नहीं छोड़ेंगे, बल्कि उसका सदुपयोग किया जाएगा। जहां तक पंजाब के विरोध का प्रश्न है, उसका कोई औचित्य नहीं है।

 

विवाद की जड़ें गहरी
हरियाणा विधानसभा का विवाद चंडीगढ़ पर अधिकार की लड़ाई से उपजा है। पंजाब पूरे चंडीगढ़ पर दावा जताता है, जबकि हरियाणा भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। यह तथ्यात्मक सच्चाई है कि 1966 के पंजाब पुनर्गठन के बाद से चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी जरूर है, लेकिन इनमें से किसी भी राज्य का हिस्सा नहीं है। उच्च न्यायालय में एक मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से कहा गया था कि 1966 से पहले चंडीगढ़, पंजाब का हिस्सा था, लेकिन राज्य विभाजन के बाद से यह केंद्र शासित प्रदेश है। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत चंडीगढ़ में हिमाचल प्रदेश की 7.19 प्रतिशत हिस्सेदारी है, इसलिए वह भी चंडीगढ़ पर दावा करता है। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश नवंबर 1996 से भाखड़ा नंगल विद्युत परियोजना से पैदा होने वाली बिजली का 7.19 प्रतिशत हिस्सा पाने का भी हकदार है। हालांकि हिमाचल हमेशा याचना भाव में रहा है, जबकि पंजाब ने हमेशा आक्रामकता दिखाई है।

भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले लाहौर पंजाब की राजधानी हुआ करती थी। 1947 में जब बंटवारा हुआ तो लाहौर पाकिस्तान में चला गया। इसलिए मार्च 1948 में केंद्र सरकार ने शिवालिक की तहलटी के इलाके को नई राजधानी के लिए तय किया। चंडीगढ़ 1952 में पंजाब की राजधानी बना। यह शहर खरड़ तहसील के 27 गांवों की जमीन पर बसाया गया। खरड़ वर्तमान में पंजाब का हिस्सा है। इसी आधार पर पंजाब यह दावा करता है कि यह पंजाब की राजधानी है और तर्क दिया जाता है कि इसे बसाने के लिए पंजाब के 27 गांव उजाड़े गए थे। किन्तु अंबाला के सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री रतनलाल कटारिया इस तर्क को खारिज करते हुए कहते हैं कि 1966 में खरड़ अंबाला जिले की तहसील थी।

जब अंबाला हरियाणा का हिस्सा है तो इन 27 गांवों को पंजाब का कैसे कहा जा सकता है? चंडीगढ़ पर पंजाब अपना दावा करता है तो हरियाणा के पास भी जवाब हैं। सरदार हुकुम सिंह संसदीय समिति की सिफारिश पर पंजाब का बंटवारा हुआ और हरियाणा को अलग राज्य बनाने की घोषणा की गई। दोनों राज्यों की सीमा तय करने के लिए केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति जेसी शाह की अध्यक्षता में 23 अप्रैल, 1966 को एक आयोग का गठन किया। दोनों राज्यों की सीमाएं शाह आयोग की सिफारिश पर तय की गर्इं। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 31 मई, 1966 को केंद्र को सौंपी। इसके बाद 1 नवंबर, 1966 को हरियाणा राज्य का गठन हुआ।

क्या थी शाह आयोग की रिपोर्ट?
1966 के पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत चंडीगढ़ को अस्थायी तौर पर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और पंजाब-हरियाणा को अस्थायी राजधानी के रूप में काम करने के लिए दे दिया गया। शाह आयोग की 1966 की रिपोर्ट में चंडीगढ़ को हरियाणा को देने की सिफारिश की गई थी, क्योंकि यह अंबाला जिले का हिस्सा था, जो हरियाणा के हिस्से में आया। फिर जुलाई 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता हुआ, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चंडीगढ़ पंजाब को देने के लिए सहमति व्यक्त की। जनवरी 1986 में चंडीगढ़ पंजाब को सौंप दिया जाता, लेकिन विरोध के कारण मामला टल गया।

पूर्व सांसद और भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल सत्यपाल जैन बताते हैं कि जब चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाया गया था, तब शाह आयोग की रिपोर्ट के अनुसार खरड़ तहसील को हरियाणा को दिया जाना था। खरड़ तहसील उस वक्त पंजाब की सबसे बड़ी तहसील थी। इसमें चंडीगढ़ समेत कालका और पंचकूला भी आते थे। अगर खरड़ तहसील हरियाणा के हिस्से आती तो चंडीगढ़ पर स्वत: ही हरियाणा का अधिकार हो जाता, लेकिन अंतिम क्षणों में पंजाब कांग्रेस के कुछ नेता तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास पहुंचे और उनसे बात की। तब इंदिरा गांधी ने खरड़ तहसील पंजाब को दे दी, जबकि कालका और पंचकूला इलाके हरियाणा दे को दिए गए। चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया।

चंडीगढ़ को लेकर लगातार विवाद हो तो रहा है और पंजाब हर बार आक्रामकता दिखाता रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्र के नियम लागू करने का फैसला लिया तो आम आदमी पार्टी को नया मुद्दा मिल गया। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधानसभा में चंडीगढ़ को तत्काल पंजाब में शामिल करने का एक प्रस्ताव पारित कराया। हरियाणा विधानसभा में भी चंडीगढ़ को लेकर सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया।

इसमें पंजाब विधानसभा द्वारा केंद्र शासित प्रदेश पर दावा करने संबंधी प्रस्ताव को लेकर चिंता जताई गई है। हरियाणा विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव में कहा गया है, ‘‘यह हरियाणा के लोगों को स्वीकार्य नहीं है। हरियाणा ने चंडीगढ़ पर अपना अधिकार बरकरार रखा है।’’ सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के निर्माण और हिंदीभाषी क्षेत्रों को राज्य को स्थानांतरित करने का मुद्दा भी उठाते हुए कहा गया है कि शाह आयोग ने सिफारिश की थी कि चंडीगढ़ को हरियाणा में जाना चाहिए। चंडीगढ़ में ही पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय है। अलग उच्च न्यायालय की मांग भी बहुत पुरानी है।

पंजाब पारित कर चुका सात प्रस्ताव
चंडीगढ़ पर दावे को लेकर पंजाब विधानसभा में अब तक सात प्रस्ताव पारित हो चुके हैं, लेकिन मसला वहीं का वहीं है। एक प्रस्ताव आचार्य पृथ्वी सिंह आजाद 18 मई, 1967 को लेकर आए, चौधरी बलबीर सिंह 19 जनवरी, 1970 को जबकि सुखदेव सिंह ढिल्लों 7 सितंबर, 1978 को प्रकाश सिंह बादल की सरकार के दौरान प्रस्ताव लेकर आए थे। इसके बाद सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार के दौरान 31 अक्तूबर, 1985 को बलदेव सिंह मान, 6 मार्च, 1986 को ओम प्रकाश गुप्ता, प्रकाश सिंह बादल की सरकार के दौरान 23 दिसंबर, 2014 को गुरदेव सिंह झूलन भी प्रस्ताव लेकर आए और इसी साल 1 अप्रैल को भगवंत मान की सरकार संकल्प लेकर आई। साल 2018 में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने चंडीगढ़ के विकस के लिए एक विशेष निकाय गठित करने का सुझाव दिया था, लेकिन पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि चंडीगढ़ निर्विवाद रूप से पंजाब का है।

पंजाब-हरियाणा के बीच उच्च न्यायालय को लेकर भी विवाद है

पंजाब विधानसभा सचिवालय को 30,890 वर्ग फीट, पंजाब विधानसभा परिषद सचिवालय को 10,910 वर्ग फीट और हरियाणा विधानसभा सचिवालय को 24, 630 वर्ग फीट जगह का आवंटन हुआ था। हरियाणा के पास फिलहाल 20 हजार वर्ग फीट जगह है, जो आवंटित जगह का 27 प्रतिशत है। 1966 में हरियाणा विधानसभा के 54 विधायक थे। 1967 में विधानसभा 81 सदस्यीय और 1977 में 90 सदस्यीय विधानसभा हुई, जो अभी तक चल रही है। 

नई विधानसभा हरियाणा की अनिवार्यता
नया विधानसभा बनाना हरियाणा के लिए अनिवार्य हो गया है, 2026 में होने वाले परिसीमन में हरियाणा में विधायकों की संख्या बढ़ जाएगी। वर्तमान में यह संख्या 90 है किन्तु एक आंकलन के अनुसार नए परिसीमन में यह 120 का आंकड़ा पार कर सकती है. जब हरियाणा अस्तित्व में आया तब 1966 में यहां 54 विधायक थे। बाद में 1967 में इनकी संख्या 81 और 1977 में 90 हो गई। स्टाफ भी बढ़ा है। स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता का कहना है कि हमें बढ़ने वाली सदस्य संख्या को देखते हुए अभी से तैयारी करनी होगी।

वर्तमान भवन में 90 से अधिक सीटों की व्यवस्था नहीं हो सकती। नया भवन बनने में भी समय लगता है। इसलिए अभी निर्णायक समय है। ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं कि हमारे पास मंत्रियों को बिठाने और कमेटियों की बैठकों तक के लिए स्थान नहीं है। हरियाणा के हिस्से के जो 20 कमरे पंजाब विधानसभा के पास हैं, उनमें कुछ में तो उन्होंने कार्यालय बनाए हुए हैं, जबकि कुछ को स्टोर के रूप में काम में ले रहे हैं। इस बारे में चंडीगढ़ के प्रशासक को विधानभवन के बंटवार से संबंधित सारे दस्तावेज भी दिए गए हैं। पंजाब विधानसभा सचिवालय के साथ भी कई बार पत्राचार किया गया, किन्तु सकारात्मक जवाब नहीं मिल पाया।

ऐसे हुआ था विधानसभा भवन का बंटवारा
पंजाब-हरियाणा विधानसभा भवन का कुल 66,430 वर्ग फीट में है। हरियाणा के विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता के अनुसार, विधानसभा के भू-तल में कमरा संख्या-23 से 24 हरियाणा के हिस्से के हैं। इनमें 23 और 26 कमरा नंबर पंजाब के पास है, जबकि ग्राउंड फ्लोर पर भी हरियाणा के हिस्से के कमरा संख्या 27 से 30 पंजाब ने नहीं दिए। पहली मंजिल पर हरियाणा के हिस्से के 14 कमरों पर भी पंजाब विधानसभा का कब्जा है। हालांकि दूसरी मंजिल पर छह कमरे संख्या 154 से 160 आपसी सहमति से पंजाब के पास हैं। इनके बदले पंजाब ने सात कमरे संख्या-129 से 135 तक हरियाणा विधानसभा को दिए हुए हैं। हरियाणा विधानसभा में जगह की कमी के चलते अधिकारियों व कर्मचारियों को बैठने में दिक्कतें आ रही हैं। पंजाब विधानसभा ने हरियाणा के जिन कमरों पर कब्जा कर रखा है, उनमें से कई में पंजाब के कार्यालय चल रहे हैं, जबकि कुछ को उसने स्टोर बनाया रखा है।

हरियाणा के हिस्से की जगह से कब्जा छोड़ने और उसे वापस देने की मांग को लेकर ज्ञानचंद गुप्ता ने पंजाब विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात कर पंजाब विधानसभा में हरियाणा के हिस्से के कमरों की पूरी सूची सौंपी। साथ ही, भू-तल, निचली व पहली मंजिल पर बने 20 कमरों पर अपनी दावेदारी जताई।

1 नवंबर, 1966 को हरियाणा, पंजाब से अलग हुआ था। उस समय दोनों राज्यों के बीच विधानसभा की जगह का बंटवारा हुआ था। इसमें पंजाब विधानसभा सचिवालय को 30,890 वर्ग फीट, पंजाब विधानसभा परिषद सचिवालय को 10,910 वर्ग फीट और हरियाणा विधानसभा सचिवालय को 24, 630 वर्ग फीट जगह का आवंटन हुआ था। हरियाणा के पास फिलहाल 20 हजार वर्ग फीट जगह है, जो आवंटित जगह का 27 प्रतिशत है। 1966 में हरियाणा विधानसभा के 54 विधायक थे। 1967 में विधानसभा 81 सदस्यीय और 1977 में 90 सदस्यीय विधानसभा हुई, जो अभी तक चल रही है।

Topics: शाह आयोग की रिपोर्ट?भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल सत्यपालहरियाणा विधानसभाचंडीगढ़ पर अधिकारभारत-पाकिस्तान के विभाजन
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