चीन के विदेशमंत्री के बांग्लादेश दौरे में अन्य बातों के अलावा मेजबान देश की तरफ से मांग की गई है कि चीन अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उनके देश में तादाद से ज्यादा मौजूद रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भिजवाने में मदद करे।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी अपनी आधिकारिक यात्रा में शनिवार की रात बांग्लादेश पहुंचे थे। कल उन्होंने वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना और विदेश मंत्री ए.के. अब्दुल मोमेन से मुलाकात की। इस दौरान बांग्लादेश की ओर से वांग से कहा गया कि वे उनके यहां बसे रोहिंग्या शरणार्थियों को उनके देश म्यांमार वापस भेजने में सहायता करें। बांग्लादेश अपनी तरफ से कई बार उसके लिए सिरदर्द बन चुके रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजने की कोशिशें करता रहा है, लेकिन उसमें कोई खास कामयाबी नहीं मिली है।
आज राजधानी ढाका और चटगांव के बाहरी इलाके कब्जाकर और उन पर बड़ी—बड़ी बस्तियां बसाकर ये रोहिंग्या बसे हुए हैं। उनकी बेलगाम बढ़ती आबादी को खिलाते और बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति करते करते गरीब बांग्लादेश के संसाधनों पर बेहद दबाव बना हुआ है। लेकिन आएदिन वे अपनी मांगें और रौब बढ़ाते ही जा रहे हैं।
दरअसल माना जाता है कि चीन का म्यांमार पर प्रभाव है। इसका प्रयोग ड्रैगन ने नवंबर 2017 के समझौते हेतु किया था। ये समझौता अगस्त 2017 में म्यांमार में अपनी हिंसक प्रवृत्ति के बाद पिटकर भागे करीब करीब 7,00,000 रोहिंग्या मुस्लिमों की म्यांमार वापसी को लेकर था। लेकिन असल में तो ऐसे प्रयास कई बार किए जा चुके हैं, लेकिन रोहिंग्या म्यांमार लौटकर नहीं गए हैं। उन्होंने हर बार यही कहा कि वे वहां नहीं जाएंगे, उनकी जान का खतरा है। उनके हिसाब से अब तो सत्ता में सेना आने के बाद से तो वे और खतरे में हैं।
अपनी यात्रा में रोहिंग्या मुद्दे पर चर्चा के अलावा चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पिछड़े बांग्लादेश में बुनियादी ढांचे की तरक्की, व्यापार संबंधों, निवेश और समर्थन को और बढ़ाने का वायदा किया। इसके अलावा दोनों पक्षों ने अन्य अनेक वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। बांग्लादेश के विदेश मामलों के मंत्री शहरयार आलम ने मीडिया को इस चर्चा के बारे में बताया।
शहरयार के अनुसार, चीन की तरफ से रोहिंग्याओं के कारण पैदा हुईं दिक्कतों को दूर करने में सहयोग देने का वायदा किया गया है। उन्होंने बताया कि वांग यी भी मानते हैं कि म्यांमार में आज जैसी आंतरिक चुनौतियां हैं उनकी वजह से अन्य देश भी दिक्कत में हैं। मीडिया को बताया गया कि बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया था कि रोहिंग्या मुद्दे को सुलझाने के लिए चीन की जरूरत है, तभी बांग्लादेश इस स्थिति से पूरी तरह बाहर निकल पाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के बाद अब कम्युनिस्ट ड्रैगन की नजर पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश पर है। वह इन देशों में बड़े बड़े कर्जे देकर वहां की सरकारों को भी अपने सामने घुटने पर ला देना चाहता है। उनका कहना है कि यह चीन का भारत को घेरने के एजेंडे का ही एक आयाम है।
बांग्लादेश के साथ चीन की कच्चे माल के लिए बड़ी व्यापारिक भागीदारी है। यह भी सही है कि बांग्लादेश जैसे कहीं छोटे और गरीब देश के चीन के साथ करीबी संबंध होना मुश्किल ही है। यह बांग्लोदश के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। लेकिन चीन अपनी संभवत: अपनी भारत विरोधी कूटनीति के तहत बांग्लादेश को साधे रखना चाहता है।
ताजा बातचीत के दौरान चीन और ताइवान में तनाव जारी रहने को देखते हुए लगे हाथ बांग्लादेश ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ के लिए भी अपना समर्थन जता दिया। इससे पहले 2008 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आम चुनाव में अपनी जीत के बाद, चीन के कहने पर ढाका में ताइवान के कारोबारी कार्यालय को बंद करा दिया था। उसके इस कदम के बाद तो चीन बांग्लादेश में ‘प्रगति और विकास’ के काम और ज्यादा करने लगा है।
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