पंजाब में सिखों के तेजी से हो रहे मतांतरण पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति (एसजीपीसी) ने गम्भीरता दिखाई है और समिति के महासचिव स. करनैल सिंह पंजोली का कहना है कि इसके लिए एक सर्वेक्षण करवाया जा रहा है और उसकी रिपोर्ट के बाद कोई कदम उठाया जाएगा। ज्ञात रहे कि पंजाब के ग्रामीण इलाकों में रह रहे सिखों का बड़ी तेजी से मतांतरण हुआ है और अभी तक एसजीपीसी इस तरह के आरोपों को यह कहते हुए नकारती रही है कि इससे देश के अल्पसंख्यकों को लड़ाने का प्रयास हो रहा है।
पंजाब वाल्मीकि समुदाय से जुड़े मजहबी सिखों बड़े स्तर पर मतांतरण हुआ है। समस्या यह है कि आरक्षण का लाभ छिन न जाए इसलिए इन लोगों ने अपनी पहचान नहीं बदली है और विभिन्न गुरपर्व व वाल्मीकि जयंती भी मनाते हैं परन्तु सिख समाज का बहुत बड़ा वर्ग ईसाईयत के मकडज़ाल में फंस चुका है। केवल वाल्मीकि समुदाय ही नहीं बल्कि आम ग्रामीण और यहां तक कि जट्ट समुदाय के लोग भी इस जाल में फंसते जा रहे हैं। राज्य के युवाओं में बढ़ी विदेश जाने की ललक, नशा, कैंसर जैसी बीमारियों के प्रकोप, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और अच्छी शिक्षा के नाम पर ईसाई मिशनरियों का प्रभाव बढ़ा है। चंगाई सभाओं में प्रार्थना से इलाज करवाने के नाम पर चर्चों में भीड़ बढ़ती जा रही है।
इस संबंध में एसजीपीसी के पदाधिकारियों ने विगत दिनों राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष स. इकबाल सिंह लालपुरा से भी मुलाकात की और इस समस्या पर उनका ध्यान आकर्षित किया। पंजाब में सिखों का धर्मांतरण इस कदर हुआ है कि दिल्ली व अन्य राज्यों की गुरुद्वारा प्रबन्धक समितियां भी अपनी चिन्ताएं जता युकी हैं। पन्थक हलकों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के होने वाले अन्ध विरोध के चलते राष्ट्रवादी शक्तियों के चेताने के बावजूद न तो एसजीपीसी और न ही अकाल तख्त ने इस समस्या का कोई नोटिस लिया परन्तु जिस तरीके से राज्य के गांवों में कुकुरमुत्तों की तरह चर्चें उग रही हैं उसने सिख हलकों को भी चिन्ता में डाल दिया है। यही कारण है कि एसजीपीसी कोई कदम उठाने को विवश हो रही है।
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