यूपी के सहारनपुर और उत्तराखंड के राजा जी टाइगर रिजर्व से सटे शिवालिक रेंज के जंगलों में फिर से गिद्ध दिखाई दिए हैं। जंगलों में गिद्ध झुंड की मौजूदगी एक सुखद खबर है। उल्लेखनीय है कि गिद्ध पिछले कई सालों से तेजी से लुप्त हो रहे हैं और इसके संरक्षण के लिए कई स्तर पर प्रयास भी हो रहे हैं।
गिद्ध इस धरती का ऐसा परिंदा है जिसे पर्यावरण स्वच्छता के दूत का दर्जा प्राप्त है। मृत पशुओं को गिद्ध के झुंड साफ करते हैं। पिछले कुछ सालों से मृत पशु ही गिद्ध प्रजाति के लुप्त होने का कारण भी बन गए हैं। जानकारी के मुताबिक पालतू पशुओं को खिलाए जाने वाली दर्द निवारक डाइक्लोफेनिक ने सम्पूर्ण एशिया में गिद्ध के अस्तित्व को चोट पहुंचाई है। एक रिसर्च में पाया गया है कि उक्त दवा जिस पशु के अंदर गई और उसका मांस यदि गिद्ध ने खा लिया तो उसका अंत निश्चित है। यही वजह थी कि शहर के आसपास मंडराने वाले गिद्ध तेजी से लुप्त हो गए। ऐसा बताया गया है कि भारत में गिद्ध की आबादी कुछ हजार में ही रह गई है। भारत में गिद्ध की हिमालयन ग्रिफिन प्रजाति ही ज्यादा पाई जाती है और ये गिद्ध माउंट एवरेस्ट से भी अधिक ऊंचाई करीब 37 हजार फीट ऊंचाई की उड़ान भर लेते हैं।
सहारनपुर और राजा जी पार्क के बीच जंगल में 11 साल बाद गिद्धों के झुंड देखे जाने की खबर है। सहारनपुर शिवालिक फॉरेस्ट रेंज की डीएफओ श्वेता सेन कहती हैं ये खबर उत्साहजनक है, हमारे जंगलों के ऊंचे पेड़ों में गिद्ध आकार निवास करें, यहां घोंसले बनाएं और जंगल पर ही आश्रित रहें तो ही इनका संरक्षण हो सकेगा।
उत्तराखंड में गिद्धों के संरक्षण पर काम करने वाले सुमंता घोष कहते हैं कि राजा जी पार्क और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में इनके घोंसले बढ़ रहे हैं, शिवालिक और हिमालय के जंगलों में भी इन्हे संरक्षण मिल रहा है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि शहरों और गांवों में डाइक्लोफेनिक दवा को बिल्कुल भी बिकने नहीं दिया जाए। ये दवा सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई है बावजूद इसके ये बिक रही है। इसके विकल्प के रूप में पशु दवा विक्रेताओं को मेलाकिस्कम दवा देनी चाहिए।
सुमंता घोष बताते हैं कि गिद्ध इस धरती को कुदरती स्वच्छता देते हैं। हमें इनका ख्याल रखना होगा, नहीं तो हम इन्हे खत्म होते देखेंगे और इसके दोषी भी इंसान ही होंगे। गिद्धों के लुप्त होने की खबरों के बीच मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तराखंड में इनके संरक्षण के लिए अभियान चलाए गए हैं। इन राज्यों के संरक्षण केंद्रों में घायल गिद्धों के इलाज उनके अंडो के संरक्षण जैसे कार्यक्रम चल रहे हैं।
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