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परमाणु वैज्ञानिकों की मौत : रहस्य से परदा कब उठेगा?

भारत में समय-समय पर परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिक षड्यंत्र के शिकार होते रहे हैं। अब तक कई परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय तरीके से मौत हो चुकी है, लेकिन वर्षों बाद भी उन रहस्यों पर से परदा नहीं उठ सका है। हरियाणा के आरटीआई कार्यकर्ता और अधिवक्ता राहुल सेहरावत के आरटीआई के जवाब में परमाणु ऊर्जा विभाग ने बताया था कि 2009 से 2013 के दौरान 11 वैज्ञानिकों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई। विभाग की प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों में कार्यरत आठ वैज्ञानिकों की मौत हुई, लेकिन पुलिस जांच में इसे आत्महत्या या दुर्घटना बताया गया। वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौत पर  उच्च स्तरीय जांच की जरूरत नहीं समझी गई। उस समय केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार थी। महाराष्ट्र के आरटीआई कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल कर वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौतों की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की थी। लेकिन अभी तक यह मामला लंबित है

by WEB DESK
Jul 20, 2022, 01:27 pm IST
in भारत
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लोकनाथन महालिंगम
कर्नाटक के कैगा परमाणु पावर स्टेशन में कार्यरत 47 वर्षीय महालिंगम प्रतिभावान वैज्ञानिक थे। 8 जून, 2009 की सुबह वे सैर के लिए निकले। 14 जून को उनका क्षत-विक्षत शव काली नदी से बरामद किया गया। पुलिस ने इसे आत्महत्या करार देते हुए कहा कि वे घरेलू कलह से परेशान थे। डीएनए रिपोर्ट से उनकी पहचान होती, इससे पहले ही पुलिस ने उनका अंतिम संस्कार करवा दिया गया। अधिकारियों के अनुसार, महालिंगम जब तमिलनाडु के कलपक्कम परमाणु बिजली संयंत्र में कार्यरत थे, तब भी वे कुछ दिनों के लिए लापता हो गए थे।

उमंग सिंह और पार्थ प्रतिम बाग
दोंनों युवा वैज्ञानिक भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) के रेडिएशन एंड फोटोकेमिस्ट्री प्रयोशाला में कार्यरत थे। दोनों परमाणु रिएक्टरों से जुड़े एक संवेदनशील विषय पर शोध कर रहे थे। 29 दिसंबर, 2009 को दोपहर बाद प्रयोगशाला में रहस्यमय तरीके से आग लगी, जिसमें दोनों की मौत हो गई। फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट के मुताबिक, प्रयोगशाला में ऐसा कुछ नहीं था, जिससे आग लगने का खतरा हो। रिपोर्ट में मौत के पीछे षड्यंत्र की ओर इशारा किया गया था। उमंग मुंबई के रहने वाले थे, जबकि पार्थ बंगाल के। बार्क के तत्कालीन निदेशक श्रीकुमार बनर्जी ने तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार  एम.के. नारायणन और पीएमओ में फोन कर घटना की जानकारी दी थी, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।

डलिया नायक
कोलकाता के साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स की वरिष्ठ शोधार्थी 35 वर्षीया डलिया नायक ने अगस्त 2009 में रहस्यमय परिस्थिति में मौत हुई थी। पुलिस का कहना था कि उन्होंने कोई रसायन पीकर आत्महत्या की। लेकिन साथी वैज्ञानिक यह मानने को तैयार नहीं थे, क्योंकि डलिया के पास आत्महत्या की कोई वजह नहीं थी। महिला कर्मियों ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी, लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण नतीजा नहीं निकला।

भारत में समय-समय पर परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिक षड्यंत्र के शिकार होते रहे हैं। अब तक कई परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय तरीके से मौत हो चुकी है, लेकिन वर्षों बाद भी उन रहस्यों पर से परदा नहीं उठ सका है। हरियाणा के आरटीआई कार्यकर्ता और अधिवक्ता राहुल सेहरावत के आरटीआई के जवाब में परमाणु ऊर्जा विभाग ने बताया था कि 2009 से 2013 के दौरान 11 वैज्ञानिकों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई। विभाग की प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों में कार्यरत आठ वैज्ञानिकों की मौत हुई, लेकिन पुलिस जांच में इसे आत्महत्या या दुर्घटना बताया गया। वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौत पर  उच्च स्तरीय जांच की जरूरत नहीं समझी गई। उस समय केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार थी। महाराष्ट्र के आरटीआई कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल कर वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौतों की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की थी। लेकिन अभी तक यह मामला लंबित है

महादेवन पद्मनाभन अय्यर
बार्क में इंजीनियर पद पर कार्यरत 48 वर्षीय पद्मनाभन का शव 22 फरवरी, 2010 को दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी स्थित उनके घर से बरामद हुआ। फॉरेंसिक जांच में मौत का कारण ‘अज्ञात’ बताया गया। पुलिस को जांच में कोई सुराग नहीं मिला। लिहाजा 2012 में फाइल बंद कर दी गई। हालांकि फॉरेंसिक रिपोर्ट बताती है कि वे स्वस्थ थे और उनकी मौत सामान्य नहीं थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया कि उनके सिर पर किसी भोंथरे हथियार से प्रहार किया गया था।

तिरुमला प्रसाद टेंका
30 साल के तिरुमला प्रसाद इंदौर के राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में वैज्ञानिक थे और एक महत्वपूर्ण परमाणु परियोजना पर काम कर रहे थे। 10 अप्रैल, 2010 को उनका शव फंदे से लटकता पाया गया। पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया, लेकिन परिजन यह मानने को तैयार नहीं थे। इस मामले में भी पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें उन्होंने अपने वरिष्ठ सहयोगी पर मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगाए थे। उस वरिष्ठ वैज्ञानिक पर केस भी दर्ज हुआ, लेकिन मामला रफा-दफा हो गया।

तीतस पाल
27 वर्षीया तीतस बार्क में काम करती थीं। 3 मार्च, 2010 को ट्रांबे स्थित परिसर में 14वीें मंजिल पर फ्लैट के वेटिलेटर से उनका शव लटकता मिला था। बार्क में उनकी नियुक्ति 2005 में हुई थी। वे एक खुशमिजाज महिला थीं और कुछ हफ्ते बाद उनकी शादी होने वाली थी। लेकिन पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया। पहले वह रेडियो मेटलर्जी विभाग में कार्यरत थीं, लेकिन अप्राकृति मौसे दो हफ्ते पहले ही उनका स्थानांतरण रेडिया केमिस्ट्री विभाग में किया गया था। कोलकाता में अपने माता-पिता से मिलकर वह 3 मार्च को ही मुंबई लौटी थीं और उसी दिन सुबह 10 बजे मुंबई आफिस ज्वाइन किया था।  उनके पिता नहीं मानते कि उनकी बेटी ने आत्महत्या की।

उमा राव
28 साल तक बार्क में काम करने वाली 63 वर्षीया उमा राव ने 30 अप्रैल, 2011 को कथित तौर पर आत्महत्या की थी। पुलिस जांच में बताया गया कि बीमारी के कारण वह अवसाद में थीं। मौत का कारण अधिक मात्रा में नींद की गोलियों का सेवन बताया गया। मुबई के गोवंडी में 10वीं मंजिल पर फ्लैट में उनका शव मिला। सुसाइड नोट में उन्होंने अवसाद को ही कारण बताया था। हालांकि परिवार, पड़ोसियों और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों का कहना था कि उमा राव में अवसाद के लक्षण ही नहीं थे। वह एक बुलंद हौसले वाली महिला थीं और इतनी उम्र में भी नौजवानों की तरह काम करती थीं।

मोहम्मद मुस्तफा
कलपक्कम के इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटमिक रिसर्च (आईजीसीएआर) के साइंटिफिक असिस्टेंट 24 वर्षीय मोहम्मद मुस्तफा का शव 23 अप्रैल, 2012 में उनके सरकारी आवास से बरामद किया गया। वे केरल के रहने वाले थे। पुलिस ने उनकी मौत को आत्महत्या बताया। पोस्टमर्टम रिपोर्ट के अनुसार, मुस्तफा की कलाइयों की नसें कटी हुई थीं। घटनास्थल से एक सुसाइड नोट भी मिला था, लेकिन उसमें आत्महत्या की वजह नहीं लिखी थी। पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला और जांच बंद कर दी गई।

के.के. जोशी और अभीश शिवम
दोनों केरल के इंजीनियर थे। 34 वर्षीय जोशी कोझिकोड, जबकि 33 वर्षीय शिवम एर्नाकुलम के थे। दोनों भारत की पहली परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत में संवेदनशील परियोजना से जुड़े हुए थे। 6 अक्तूबर, 2013 में विशाखापत्तनम नौसैनिक यार्ड के पास पेंडुरुती में उनका शव रेलवे लाइन पर पड़ा मिला। प्रयास तो रेल हादसे में मौत दिखाने का किया गया, लेकिन पोस्टमार्टम में मौत का कारण जहर बताया गया। रेलवे पुलिस को जांच में हत्या का कोई सुराग नहीं मिला। इनके परिजन और केरल कला समिति के सदस्य मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते रहे, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। पुलिस ने इसे दुर्घटना बताते हुए केस बंद कर दिया और जल्दबाजी में दोनों वैज्ञानिकों के परिवारों को उनके गांव भेज दिया।

तपन मिश्रा
23 मई, 2017 को इसरो के वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने एक फेसबुक पोस्ट लिखा। इसमें उन्होंने दावा किया कि उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की जा रही है। यह जहर उन्हें पदोन्नति साक्षात्कार के दौरान इसरो मुख्यालय में नास्ते में मिला कर दिया गया था। इस कारण उनके शरीर से  बहुत अधिक खून का स्राव हुआ और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। उन्हें सांस लेने में दिक्कत तो हो ही रही थी, उनकी त्वचा भी निकल रही थी।  हाथ-पैर की उंगलियों से नाखून उखड़ने लगे थे।  इसके अलावा न्यूरोलॉजिकल समस्याएं, हड्डियों में दर्द और अंदरूनी अंगों में संक्रमण जैसी कई समस्याएं भी होने लगी थीं। उन्होंने यह भी लिखा था, ‘‘इसरो में कभी-कभी बड़े वैज्ञानिकों के संदिग्ध मौत की खबर मिलती रही है। 1971 में प्रोफेसर विक्रम साराभाई की मौत संदिग्ध हालात में हुई थी। उसके बाद 1999 में वीएसएससी के निदेशक डॉ. एस. श्रीनिवासन की मौत पर भी सवाल उठे थे। इतना ही नहीं 1994 में नंबी नारायण का मामला भी सबके सामने आया था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि एक दिन मैं इस रहस्य का हिस्सा बनूंगा।’’

 

यूरेनियम की तस्करी

भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए यूरेनियम काफी महत्वपूर्ण है। परमाणु बम ही नहीं, बिजली बनाने के लिए भी परमाणु संयंत्रों में यूरेनियम का प्रयोग कच्चे माल के तौर पर होता है। चूंकि यूरेनियम एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है, इसलिए इसके विकीरण से स्वास्थ्य को होने वाले खतरे और अन्य कारणों से खुले बाजार में इसकी बिक्री नहीं होती। प्राकृतिक यूरेनियम के इस्तेमाल के बाद जो बाईप्रोडक्ट निकलते हैं, उसे प्लूटोनियम कहा जाता है। परमाणु संयंत्र से हर साल जो यूरेनियम निकलता है, उससे 2-3 परमाणु बम बनाए जा सकते हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी तस्करी भी होती है। मेघालय, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित देश के कुछ राज्यों में यूरेनियम के भंडार हैं, पर इसका खनन केवल झारखंड और आंध्र प्रदेश में ही होता है। 

तस्कर एक किलो यूरेनियम करोड़ों रुपये में बेचते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में कई बार यूरेनियम की तस्करी के मामले सामने आए हैं। 2008 में मेघालय के एक खदान से यूरेनियम चोरी कर तस्करी करने के आरोप में पुलिस ने 5 लोगों को गिरफ्तार किया था। इसके बाद 2016, 2021, 2022 में भी यूरेनियम तस्करी के आरोप में कई गिरफ्तारियां हुई हैं। लेकिन 2021 में मुंबई में पकड़ी गई खेप बड़ी थी। 7.1 किलो यूरेनियम के साथ मुंबई में तस्करों की गिरफ्तारी पर पाकिस्तान और चीन ने भारत को घेरने की कोशिश भी की थी। चीन और पाकिस्तान ने यूरेनियम की बरामदगी पर चिंता जताते हुए सरकार से इसकी जांच कराने की मांग की थी। पाकिस्तान ने तो अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से मामले की जांच कराने की मांग की थी। हालांकि ठाणे क्षेत्र में बरामद यूरेनियम पर भाभा अनुसंधान केंद्र ने स्पष्ट किया था कि डिप्लेटिड यूरेनियम विदेश से भारत में लाया गया। इसी तरह, पिछले साल झारखंड के बोकारो जिले में सात तस्करों की गिरफ्तारी हुई थी। इनके पास से 6.5 किलो यूरेनियम बरामद हुआ था। इसके अलावा, भी कई बार यूरेनियम तस्करी के मामले में कार्रवाई हुई है।  

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