भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में एडवांस्ड टेक्नोलॉजी एंड प्लानिंग के निदेशक के पद से सेवानिवृत्त वरिष्ठ वैज्ञानिक नंबी नारायणन का जीवन ऐसे असाधारण घटनाक्रमों का साक्षी है जिसने न सिर्फ उनके व्यक्तित्व पर दाग लगाने की कोशिश की बल्कि उन्हें खुद को निर्दोष साबित करने के लिए एक लंबी न्यायिक लड़ाई लड़नी पड़ी। इसके बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने न सिर्फ उन्हें हर आरोप से मुक्त किया, बल्कि केरल सरकार से उन्हें 50 लाख रुपए का मुआवजा भी दिलवाया। इसी वर्ष केन्द्र की मोदी सरकार ने उन्हें पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत किया।
नंबी नारायणन को नवंबर 1994 में के. करुणाकरन की यूडीएफ सरकार के तहत केरल पुलिस ने ‘दूसरे देश को इसरो की महत्वपूर्ण जानकारियां देने’ के आरोप में जेल में डाल दिया था। उन्होंने जेल में 48 दिन जांच अधिकारियों की यातनाएं सहीं। मई 1996 में केरल उच्च न्यायालय ने सीबीआई की नारायणन के खिलाफ लगाए गए आरोप वापस लेने और जांच अधिकारियों पर कार्रवाई करने की अर्जी स्वीकार कर ली। जून 1996 में केरल सरकार ने सीबीआई से केस वापस लिया और राज्य पुलिस ने नारायणन व अन्य आरोपियों के खिलाफ दोबारा केस खोला। नवंबर 1996 में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के केस दोबारा शुरू करने के निर्णय को बहाल किया। अप्रैल 1998 में सर्वोच्च न्यायालय ने जांच दोबारा शुरु करने के केरल सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया। मई 1998 में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल सरकार को नारायणन को 1 लाख रु. मुआवजा देने को कहा। मार्च 2001 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को नारायणन को 10 लाख रु. मुआवजा देने का आदेश दिया। जून 2011 में केरल सरकार ने जांच अधिकारियों के खिलाफ केस आगे न चलाने का फैसला किया। सितम्बर 2012 में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को मानवाधिकार आयोग द्वारा तय किया गया 10 लाख रु. का मुआवजा देने को कहा। अक्तूबर 2014 में उच्च न्यायालय ने जांच अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने पर विचार करने को कहा। मार्च 2015 में उच्च न्यायालय ने जांच अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई आगे न बढ़ाने के केरल सरकार के फैसले को स्वीकृति दे दी। सितम्बर 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल सरकार को नारायणन को मुआवजे के तौर पर 50 लाख रु. देने और जांच अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पर फैसला करने के लिए एक समिति गठित करने को कहा। ऐसी कष्टप्रद न्यायिक लड़ाई लड़ने वाले कर्मठ और देशभक्त वैज्ञानिक नंबी नारायणन के संघर्षपूर्ण जीवन पर एक फिल्म ‘रॉकेट्री: द नंबी इफैक्ट’ बनी है, जिसे नंबी अपने संघर्षपूर्ण जीवन की वास्तविक झलक मानते हैं।
पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक आलोक गोस्वामी ने वरिष्ठ वैज्ञानिक पद्मभूषण नंबी नारायणन से अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदमों और भविष्य की योजनाओं के संदर्भ में विस्तृत बातचीत की थी, जो पाञ्चजन्य के 28 अप्रैल, 2019 अंक में प्रकाशित हुई थी। उस साक्षात्कार को हम यहां पुन: प्रस्तुत कर रहे हैं
इसरो ने पिछले कुछ साल में बड़े-बड़े काम किए हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में इन बढ़ते कदमों पर क्या कहेंगे?
इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी कामयाबियां हासिल की हैं। साथ ही, मेरा मानना है कि यह उसका ‘रूटीन’ काम है। यानी वह अपना काम सही दिशा में कर रहा है। वह जो भी अनुसंधान, शोध कर रहा है वे हमारी जरूरतों के अनुसार ही हैं। इसमें संदेह नहीं है कि पीएसएलवी और जीएसएलवी के जरिए अंतरिक्ष में उपग्रह लगातार छोड़े जा रहे हैं।
हमने एक साथ 104 उपग्रहों को कक्षाओं में स्थापित किया। इसे एक रिकार्ड माना गया। दुनिया में अपनी तरह की इस असाधारण उपलब्धि के बारे में आपका क्या कहना है?
सही कहा आपने। 104 उपग्रह एक ही साथ छोड़े गए हैं और उन्हें उनकी कक्षाओं में स्थापित किया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन यह भी कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है, ऐसा मैं नहीं मानता। इसे इस तरह समझिए कि एक बस में सवारियां बैठी हैं जो बारी-बारी से अपने स्टैंड पर उतरती गई।
जासूसी के झूठे आरोप में उलझााए गए इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण को पद्म पुरस्कार देने का मौका मिलना हमारी सरकार के लिए गौरव की बात है। दो दशक से भी पहले एक कर्मठ और देशभक्त वैज्ञानिक नंबी नारायणन को यूडीएफ नेताओं ने अपने राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने के लिए एक झूठे मामले में फंसाया था। उन्होंने राष्ट्रीय हितों को धक्का पहुंचाया और एक वैज्ञानिक को संकट में डाला था। -नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री (त्रिशूर की एक जनसभा में)
सही कहा आपने, पर दुनिया में इस काम की काफी सराहना हुई थी।
इसमें संदेह नहीं है कि यह बड़ी बात है, पर एक चीज होती है जरूरत, और एक होती है किसी चीज की इच्छा करना। आपके जैसे मीडिया को इस बात को जानना चाहिए कि जरूरत और इच्छा में क्या फर्क होता है।
हमारे सेटेलाइट व्हीकल्स पीएसएलवी और जीएसएलवी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। हमारी मौजूदा क्षमता क्या है और आगे के लिए हमें किस क्षमता को अर्जित करना चाहिए?
हां, यह बड़ी उपलब्धि है, जिस तरह हमने पीएसएलवी और जीएसएलवी का इस्तेमाल किया है। पहले हमारी क्षमता एक टन वजन तक की थी जो कई तरह के कामों में इस्तेमाल होती थी। पर अब हमारे पास बड़े उपग्रहों को जियो सिन्क्रोनाइज्ड ऑर्बिट, जो 36,000 किमी. पर है, तक पहुंचाने की क्षमता आ गई है। जहां तक हम अपने इनसेट वगैरह को पहुंचा सकते हैं। अब हम 4 टन वजनी उपग्रह तक छोड़ सकते हैं और आज उन देशों की कतार में आ गए हैं जिनके पास ऐसे सामर्थ्य है। पर अभी बहुत काम करना बाकी है। कई देश हैं जिनके पास इससे ज्यादा वजनी उपग्रह कक्षा में पहुंचाने का सामर्थ्य है।
हमारे प्रक्षेपक यानों या रॉकेट व्हीकल्स की प्रक्षेपक शक्ति या प्रोपल्शन पॉवर को और बढ़ाने के बारे में आपका क्या कहना है?
हमें यह देखना होगा कि हमारी जरूरतें क्या हैं। सवाल यह है कि क्या आपके हिसाब से 4 टन की क्षमता काफी है या आप 5,6,7 टन तक जाना चाहते हैं। अगर हमें और आगे के कामों या अंतरिक्ष केन्द्र स्थापित करने जैसे मिशन के लिए जाना है तो प्रोपल्शन की क्षमता बढ़ानी होगी, नए रॉकेट चाहिए होंगे। मुझे इस बाबत पूरी जानकारी नहीं है, पर हो सकता है, इस पर काम चल रहा हो। पर यह सच है कि हमें और ज्यादा सामर्थ्य हासिल करने की जरूरत है, जो हम कर सकते हैं। हमें यह बाहरी अंतरिक्ष के लिए चाहिए, जैसे चंद्रयान अभियान गया था। ऐसे अभियानों के लिए हमें व्हीकल्स की जरूरत है। अभी हमारे पास जो व्हीकल्स हैं हम उन्हें ही उस लायक बनाकर काम चला रहे हैं। सवाल है कि आखिर हमें प्रोपल्शन से क्या हासिल होगा? हमारा मानना है कि, यह हमारे संचार में बेहतरी के काम आएगा, इससे और भी कई उद्देश्यों की पूर्ति होगी। बाहरी अंतरिक्ष में हमें यह देखना होता है कि हम किसी उपग्रह को छोड़ने के बाद उससे क्या कराना चाहते हैं। मेरा ख्याल है कि हमारे यहां इस पर काम चल रहा है।
कुछ देश हैं जो नहीं चाहते कि भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में ज्यादा आगे बढ़े? क्या यह सही है?
स्वाभाविक है। कौन देश चाहेगा कि कोई दूसरा देश उससे ज्यादा सामर्थ्य हासिल कर ले। आपकी उपलब्धियों पर वे आपकी तारीफ जरूर करेंगे पर अंदर ही अंदर चाहेंगे कि आप उनसे आगे न निकल जाएं। विकसित देश हर क्षेत्र में खुद को ऊपर देखना चाहते हैं। आपकी तरक्की को लेकर वे खुश नहीं होते, असल में तो उनकी यह कोशिश रहती है कि कैसे आपको आगे बढ़ने से रोकें। अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमारी 4 टन वजन की क्षमता से अमेरिका और रूस की क्षमताएं कहीं ज्यादा हैं। हम अभी चौथे या पांचवें स्थान पर हैं।
क्रायोजेनिक इंजन के मामले में भी क्या यही हुआ? आप के साथ जब जासूसी वाला दुर्भाग्यपूर्ण प्रकरण हुआ तब आप खुद एक टीम के साथ क्रायोजेनिक इंजन पर काम कर रहे थे। उस प्रकरण की वजह से क्या हम इस क्षेत्र में कुछ पिछड़ गए?
मैं 1994 में इस पर काम कर रहा था जब मेरे विरुद्ध जासूसी का आरोप मढ़ा गया था। कह सकते हैं कि क्रायोजेनिक इंजन के संदर्भ में हम कहीं न कहीं कुछ पीछे तो हुए हैं। तो भी आज हम मार्क-3 प्रक्षेपक तैयार करने के बहुत निकट पहुंच चुके हैं जिसमें बहुत ज्यादा ‘थ्रस्ट’ वाला क्रायोजेनिक इंजन लगता है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर राज्य सरकार ने अक्तूबर 2018 में आपको 50 लाख रुपए के मुआवजे का चैक सौंपा। इसे आप किस तरह देखते हैं?
राज्य सचिवालय के दरबार हॉल में एक कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने जब मुझे यह चैक सौंपा तो कई तरह के भाव उमड़ रहे थे अंदर। यह मेरे लंबे संघर्ष की जीत तो थी ही, बल्कि राज्य सरकार इसके माध्यम से यह जताना चाहती थी कि मेरे साथ जो अन्याय हुआ, उस पर वह शर्मिंदा है।
केन्द्र सरकार ने आपको पद्मभूूषण से अलंकृत किया है। कैसा महसूस करते हैं?
मैं बहुत खुश हूं कि उन्होंने मुझे पद्मभूषण के लिए चुना। निश्चित ही मेरे योगदान को मान्यता मिली है।
(पाञ्चजन्य सभागार से साभार – वर्ष 2022 में प्रकाशित इंटरव्यू को फिर से प्रकाशित किया गया है)
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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