देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन को देखते हुए समान जनसंख्या नीति को लागू करना होगा, ताकि सभी को आगे बढ़ने के लिए समान अवसर मिल सकें। इसके अलावा, निवेश में तेजी लाने के साथ समावेशी और सांस्कृतिक विविधता को भी बनाए रखना होगा। यह विविधता ही भारत की पहचान है।
11 जुलाई, 1987 को जब विश्व की जनसंख्या 5 अरब हुई थी, तभी से 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। इसी दिन संयुक्त राष्ट्र ने ‘विश्व जनसंख्या संभावना-2022’ शीर्षक से एक रिपोर्ट पेश की, जिसके अनुसार 15 नवंबर, 2022 को विश्व की जनसंख्या 8 अरब हो जाएगी। वर्ष 2030 तक यह बढ़कर 8.5 अरब और 2050 में 9.7 अरब हो जाएगी। यह गति बहुत तेज है। कैलेंडर के पन्ने पलटने में देर नहीं लगती, इसलिए ये आंकड़े डराते हैं।
2050 तक वैश्विक जनसंख्या में संभावित वृद्धि मुख्यत: आठ देशों में केंद्रित होगी। ये देश हैं-भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलिपींस, तंजानिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मिस्र और इथियोपिया। उप-सहारा क्षेत्र में स्थित ये देश जनसंख्या वृद्धि में 50 प्रतिशत से अधिक योगदान देंगे। हालांकि यूएन रिपोर्ट कहती है कि पहली बार जनसंख्या सबसे कम गति से बढ़ रही है।
इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले साल यानी 2023 तक चीन को दूसरे स्थान पर धकेलते हुए भारत सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत के 32.8 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र (विश्व के कुल भू-भाग का 2.4 प्रतिशत) में रहती है। सो, आने वाला समय देश के लिए चुनौतियों से भरा होगा, जैसे-
- लोगों को न्यूनतम जीवन गुणवत्ता देने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर निवेश।
- बेरोजगार युवाओं को रोजगार और सुरक्षा कवच के रूप में न्यूनतम मासिक आय।
- अनाज और खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए नई कृषि तकनीकों के अलावा किसानों की उपलब्धता।
- आवास व स्वच्छ पेयजल आपूर्ति, बिजली, सड़क, परिवहन आदि बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा।
- जनसांख्यिकीय विभाजन इस तरह करना होगा कि देश की अर्थव्यवस्था में सभी का योगदान हो।
- विकास कार्यों के बीच पर्यावरण संतुलन तथा वन व जल संसाधनों का उचित प्रबंधन।
कहने का तात्पर्य है कि लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने तथा बढ़ती आबादी को सामाजिक बुनियादी ढांचा उपलब्ध कर समायोजित करने के लिए भारत को सभी संभावित माध्यमों से अपने संसाधन बढ़ाने होंगे। इसमें काफी खर्च आएगा। असमान और बड़ी आबादी के कारण कई बार भारत वैश्विक सूचकांकों में पिछड़ जाता है, क्योंकि संसाधन सीमित हैं, आवश्यकता ‘सुरसा’।
इसके अलावा, अधिक आबादी के कुछ नकारात्मक परिणाम भी सामने आ सकते हैं, जिनमें आय का असमान वितरण और लोगों के बीच बढ़ती असमानता प्रमुख है। जनसंख्या असंतुलन से देश के अस्तित्व और पहचान के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसे लेकर विशेषज्ञ समय-समय पर आगाह करते रहे हैं, क्योंकि भारत की पहचान सर्वपंथ, समभाव और वसुधैव कुटुम्बकम् आदि सद्गुणों से है। तथ्य यह है कि यह पहचान यहां के बहुसंख्यक समाज के कारण बनी है।
जनसंख्या संतुलन सामाजिक संतुलन का आधार है। यह संतुलन लिंग, आर्थिक और क्षेत्रीय कार्य के आधार पर बनता है, जो ऐसे समाज का आधार तैयार करता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की पहचान, उपासना पद्धति और मत-पंथ महत्वपूर्ण आयाम हो सकते हैं। इसलिए जनसंख्या के साथ इन चीजों का तालमेल बहुत आवश्यक है। यदि तालमेल नहीं रहा तो सामाजिक ढांचा गड़बड़ा सकता है। किसी भी चीज का क्रियान्वयन दो तरह से हो सकता है- पहला, लोगों में जागरूकता लाकर और दूसरा कठोर कानून बनाकर। इसे किस तरह किया जाए, इस दिशा में गंभीरता से सोचने का वक्त आ गया है।
आज दुनिया के कई देश हमारे युवा संसाधन से उम्मीदें लगाए बैठे हैं और कई तो इस बहुमूल्य संसाधन के दम पर फल-फूल रहे हैं। युवा शक्ति हमारी ताकत है और हमें इस युवा शक्ति का प्रयोग अपने विकास के लिए करना होगा, तभी हम बड़ी आर्थिक ताकत बन सकते हैं।
भारत में बीते एक दशक में मुस्लिम आबादी में लगभग 2.5 गुना बढ़ोतरी हुई है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, कट्रता और अपराध से जुड़ी नई चिंताओं और विमर्शों का केंद्र है। विश्व जनसंख्या दिवस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक वर्ग विशेष की बढ़ती आबादी पर चिंता भी इसी संदर्भ में है। उनकी चिंता को मजहबी नजरिये से इतर स्वस्थ संदर्भ में देखने की जरूरत है। उनकी चिंता वाजिब है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी वर्गों की आबादी पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है, अन्यथा किसी वर्ग विशेष की आबादी असामान्य रूप से बढ़ती रही तो देश में सघनता, स्वच्छता, संसाधनों के उचित वितरण से जुड़ी समस्याओं के साथ-साथ अराजकता के हालात तक पैदा हो सकते हैं। मुख्तार अब्बास नकवी ने भी जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताते हुए इस पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने की बात कही है।
बढ़ती आबादी बड़ा मुद्दा है और इसके लिए बड़ा दिल, बड़ी समझ विकसित करने की आवश्यकता है। इसके लिए संकीर्ण वर्गीय सोच और दलगत स्वार्थ से परे समन्वय और समझ का विकास आवश्यक है।
भारत युवा आबादी के लिहाज से दुनिया में पांचवें स्थान पर है। नए युग में युवा कार्यबल जनसांख्यिकीय लाभांश पैदा करेगा, जो देश को 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्यको प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके लिए युवाओं को डिजिटल कौशल, रोजगार व उद्यमिता के अवसर उपलब्ध कराने होंगे, क्योंकि बढ़ती आबादी के साथ उपभोक्ता का एक बड़ा वर्ग भी उभर रहा है।
आज दुनिया के कई देश हमारे युवा संसाधन से उम्मीदें लगाए बैठे हैं और कई तो इस बहुमूल्य संसाधन के दम पर फल-फूल रहे हैं। युवा शक्ति हमारी ताकत है और हमें इस युवा शक्ति का प्रयोग अपने विकास के लिए करना होगा, तभी हम बड़ी आर्थिक ताकत बन सकते हैं।
अत: देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन को देखते हुए समान जनसंख्या नीति को लागू करना होगा, ताकि सभी को आगे बढ़ने के लिए समान अवसर मिल सकें। इसके अलावा, निवेश में तेजी लाने के साथ समावेशी और सांस्कृतिक विविधता को भी बनाए रखना होगा। यह विविधता ही भारत की पहचान है।
@hiteshshankar
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