मनोहर लाल सरकार शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव का उदाहरण पेश कर रही है। वह इसका भी ध्यान रख रही है कि बच्चों को अत्याधुनिक और तकनीकी शिक्षा देने के साथ उन्हें रोजगार मिले और लड़कियां बीच में ही पढ़ाई नहीं छोड़ें। खास बात यह है कि राज्य के सरकारी स्कूल अब निजी स्कूलों को टक्कर दे रहे
हरियाणा में अगले चार साल में शिक्षा के क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव होने वाला है। आंगनवाड़ी से लेकर माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा का स्वरूप पूरी तरह बदल जाएगा। रोजगार के बदलते परिवेश में बच्चों को दक्ष बनाने के लिए छठी कक्षा से व्यावसायिक शिक्षा शुरू की जाएगी। इसके अलावा, राज्य सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025 तक ड्रॉपआउट दर को शून्य पर लाने का है। इसके लिए परिवार पहचान पत्र के जरिये हर बच्चे की ट्रैकिंग कर उसे स्कूल लाया जाएगा। साथ ही, सरकार ने 2025 तक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को राज्य में लागू करने का लक्ष्य रखा है।
निजी स्कूलों को टक्कर
हरियाणा में जब से मनोहर लाल सरकार सत्ता में आई है, तब से शिक्षा के क्षेत्र में गंभीरता से काम किया जा रहा है। इसका परिणाम यह है कि यहां के सरकारी स्कूल निजी स्कूलों को टक्कर दे रहे हैं। पढ़ाने के तौर-तरीकों में बदलाव किया जा रहा है। इसके लिए बाकायदा नई शिक्षा नीति तैयार की गई, जिसमें पाठ्यक्रम के साथ कौशल विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि जब छात्र पढ़ाई पूरी कर ले तो उसके हाथ में डिग्री के साथ-साथ रोजगार पाने के लिए हुनर भी होना चाहिए। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने बताया, ‘‘हमने प्रदेश में शिक्षा को लेकर नई नीति बनाई है। हमारी कोशिश है कि जितनी जल्दी नई शिक्षा नीति के उद्देश्य प्राप्त होंगे, उतना ही जल्दी हमारा राष्ट्र प्रगति की ओर अग्रसर करेगा। इसमें अध्ययन पाठ्यक्रम के साथ कौशल विकास पर भी ध्यान देना और शिक्षा प्रणाली को समग्र, लचीला, बहु-विषयक बनाना शामिल है।’’
सरकार का उद्देश्य शिक्षा के जरिये विद्यार्थियों को संस्कारवान व स्वावलंबी बनाने के साथ उन्हें रोजगार के लिए भी आत्मनिर्भर बनाना है ताकि वे दुनिया में भारत को पुन: विश्व गुरु बनाने में योगदान दे सकें। मुख्यमंत्री का मानना है कि शिक्षा के लिए पर्याप्त आधारभूत ढांचा है। राज्य में न केवल पर्याप्त स्कूल-कॉलेज हैं, बल्कि विभिन्न विषयों की विशेषज्ञता से युक्त विश्वविद्यालय और विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थान भी हैं। नई शिक्षा नीति के अनुरूप प्रदेश में 4000 प्ले-वे स्कूल खोले जा रहे हैं। अब तक 1135 स्कूल खोले जा चुके हैं। यही नहीं, निजी स्कूलों की तर्ज पर 113 नए संस्कृति मॉडल स्कूल भी खोले गए हैं, जबकि अंग्रेजी माध्यम वाले 1418 बैग फ्री स्कूल भी खोले जा रहे हैं। नई शिक्षा नीति का लक्ष्य 2030 तक उच्चतर शिक्षा में लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक करना है।
ड्रॉपआउट पर जिम्मेदारी तय
हरियाणा स्कूल शिक्षा विभाग कक्षा 6 और 9 की लड़कियों के सरकारी स्कूल छोड़ने पर सतर्क हो गया है। नए शैक्षणिक सत्र से स्कूल के मुख्य शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों की जिम्मेदारी तय की गई है कि एक भी बालिका न तो बीच में पढ़ाई छोड़े और न ही सरकारी स्कूल से निजी स्कूल में दाखिला ले। मुख्यमंत्री कहते हैं कि पिछली सरकारों ने लड़कियों की शिक्षा की ओर ध्यान ही नहीं दिया। इस वजह से बच्चियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ जाती थीं। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में तो लड़कियों की ड्रॉपआउट दर 40 प्रतिशत से भी ज्यादा थी। हमने इस रोकने की पहल की है। इसके तहत लड़कियों को स्कूलों में इतनी सुविधाएं दी जाएंगी कि वे पढ़ाई छोड़े ही नहीं। इसके बाद भी कोई बच्ची स्कूल आना बंद कर देती है, तो उसके अभिभावकों से स्कूल के प्रधानाचार्य बातचीत करेंगे और यह पता लगाएंगे कि वह किन कारणों से स्कूल नहीं आना चाहती है। उसकी जो भी समस्या या परेशानी होगी, स्कूल के प्रधानाध्यापक विभाग को उससे अवगत कराएंगे। इसके बाद विभाग की जिम्मेदारी होगी कि वह उस बच्ची की दिक्कत को दूर करे। कुल मिलाकर स्कूल के प्रधानाध्यापक लड़कियों का ड्रापआउट रोकने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होंगे।
जो माता-पिता बेटी को आगे नहीं पढ़ाना चाहते, उनकी पहचान स्कूल के मुखिया द्वारा दाखिला प्रक्रिया के शुरुआती दौर में ही करनी होगी। मुख्य शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों को आसपास के सरकारी स्कूल में लड़कियों को अगली कक्षा में दाखिला दिलाना होगा। 11वीं कक्षा के दाखिलों पर सरकार का विशेष ध्यान है। स्कूल शिक्षा विभाग ने 12 अप्रैल से प्रवेश उत्सव शुरू किया, जो जून तक चलेगा। इसके तहत सरकारी स्कूलों में पहली से 12वीं कक्षा तक विद्यार्थियों की संख्या को बढ़ाकर तीन लाख से अधिक की जाएगी। इसके अलावा, शिक्षा निदेशालय ने 11वीं में निजी स्कूलों को कड़ी टक्कर देने के लिए कमर कस ली है।
राज्य सरकार बच्चों को टैब दे रही है। साथ ही, शिक्षकों को घर-घर जाकर अभिभावकों को सरकारी स्कूलों की पढ़ाई, फीस, सुविधाओं और टैबलेट से होने वाले लाभ के बारे में बताने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है, ताकि उन्हें अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए प्रेरित किया जा सके। बता दें कि ग्रामीण इलाकों में आर्थिक तंगी के कारण लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं। इसे देखते हुए शिक्षा निदेशालय ने स्कूल अध्यापकों को कक्षा पांचवीं व आठवीं पास करने वाली छात्राओं का अगली कक्षा में दाखिला सुनिश्चित करने के आदेश दिए हैं।
बेटियों को निशुल्क शिक्षा
मुख्यमंत्री कहते हैं कि सरकार बेटियों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसके तहत सालाना 1.80 लाख रुपये आय वाले परिवारों की बेटियों को स्नातकोत्तर तक निशुल्क शिक्षा दी जाएगी। साथ ही, उन्हें दूर नहीं जाना पड़े, इसके लिए हर 20 किलोमीटर के दायरे में एक कॉलेज खोला गया हैं। यही नहीं, उन्हें 150 किलोमीटर तक निशुल्क बस पास की सुविधा भी दी गई है। शिक्षा विभाग का प्रयास है कि सरकारी स्कूलों में अधिक से अधिक संख्या में बच्चों का दाखिला हो। किसी स्कूल में बीते वर्ष के मुकाबले कम बच्चों का दाखिला होने पर वहां के जिम्मेदार शिक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। विभाग के आदेशों के बाद शिक्षकों ने स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के प्रयास तेज किए हैं। जिन गांवों में माध्यमिक स्कूल नहीं हैं, वहां के पांचवीं पास बच्चों को नजदीक के माध्यमिक स्कूलों में दाखिला दिया जाएगा।
स्कूल के मुख्य शिक्षक दाखिला फॉर्म भर कर अभिभावकों से हस्ताक्षकर कराकर उनका दाखिला कराएंगे और नए स्कूल में दूसरे बच्चों से उनका परिचय भी कराएंगे। स्कूलों में शिक्षकों की कमी पर शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने कहा कि प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। जेबीटी-पीआरटी की कोई कमी नहीं है। 4500 टीजीटी और पीजीटी पदों की भर्ती इसी शैक्षणिक सत्र में की जाएगी। साथ ही, रोजगार निगम भी 3,000 शारीरिक शिक्षा और कला शिक्षा सहायकों की भर्ती करेगा। इसके अलावा, 1,000 से अधिक सेवानिवृत्त शिक्षकों को सुगम पोर्टल के जरिये भी जोड़ा गया है।
यही नहीं, राजकीय प्राथमिक स्कूलों के प्रांगण और शौचालयों की साफ-सफाई नहीं होने पर इसे अनुशासनहीनता माना जाएगा और इसके लिए स्कूल के मुखिया जिम्मेदार होंगे। स्कूलों में साफ-सफाई, हाउस कीपिंग और बागवानी पर प्रतिमाह 8000 रुपये खर्च किए जाएंगे। इसके लिए शिक्षा विभाग हर माह बजट जारी करता है। प्राथमिक स्कूलों को बजट जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा जारी किया जाएगा, जिसका भुगतान एसएमसी द्वारा किया जाएगा। खर्च और भुगतान का पूरा रिकॉर्ड सुरक्षित रखा जाएगा। स्कूल मुखिया एसएमसी के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके स्कूलों में जरूरत के अनुसार कौन-कौन से काम कराने हैं। इसका निर्णय एसएमसी की मासिक बैठक में लिया जाएगा।
ई- शिक्षा पर जोर
प्रदेश सरकार 14,355 स्कूलों के 10वीं, 11वीं और 12वीं कक्षा के 8.10 लाख बच्चों को टैबलेट देगी। शिक्षा मंत्री का कहना है कि बच्चे इसमें वही सामग्री देख सकेंगे, जो विभाग चाहेगा। जो बच्चा जितने समय टैब चलाएगा और सामग्री देखेगा, उसका पूरा रिकॉर्ड विभाग के पास होगा। बच्चों को अत्याधुनिक व सुगम शिक्षा देने की तरफ यह सरकार की बड़ी पहल है। कोरोना महामारी के दौरान बच्चों की ई-शिक्षा पर विचार किया गया। सरकार का प्रयास है कि सरकारी स्कूल के बच्चे हर तरह से सक्षम बनें। उन्हें अत्याधुनिक शिक्षा मिले, इसी को ध्यान में रखते हुए टैब देने का फैसला लिया गया। इसके अलावा, राजकीय स्कूलों में सूचना एवं संचार तकनीक प्रयोगशाला भी स्थापित की जाएगी। इससे बच्चे प्रयोगशाला में वीडियो के जरिये विषय की पढ़ाई कर सकेंगे। साथ ही, उपग्रह के माध्यम से वे विषय विशेषज्ञों से भी पढ़ सकेंगे। हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद की ओर से कंप्यूटर प्रयोगशाला भी स्थापित की जाएगी ताकि विद्याथी तकनीकी शिक्षा में पारंगत हो सकें।
मुख्यमंत्री कहते हैं कि पहले बच्चों को बस्ते में किताबें लेकर स्कूल जाना पड़ता था, लेकिन अब उनकी किताबें टैब में होंगी। भारतीय सेना में हरियाणा के 10 प्रतिशत युवा हैं, लेकिन राज्य से अधिकारियों की संख्या बहुत कम है। अब हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और राज्य के युवाओं को एनडीए प्रवेश परीक्षा के लिए कोचिंग प्रदान की जाएगी।
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