महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली महाविकास अघाडी सरकार ही नहीं, खुद शिवसेना पर भी खतरा मंडरा रहा है। पार्टी के 42 विधायकों ने उद्धव से विद्रोह कर शिवसेना के चुनाव चिह्न पर दावा ठोक दिया है। आलम यह है कि सरकार कभी भी गिर सकती है, पार्टी कभी भी टूट सकती है
महाराष्ट्र में मंत्री और वरिष्ठ शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली महाविकास अघाडी सरकार को घुटनों पर ला खड़ा किया है। एकनाथ शिंदे के साथ करीब 42 शिवसेना विधायकों ने कड़े तेवर दिखाते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस से गठबंधन तोड़ने तथा हिंदुत्व पर कायम रहने की मांग ठाकरे के सामने रखी है। शिवसेना टूट की कगार पर है, सरकार अल्पमत में है, फिर भी उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने से इनकार कर रहे हैं। वहीं, शरद पवार द्वारा मुख्यमंत्री बनाने के प्रस्ताव को एकनाथ शिंदे ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि मुख्यमंत्री पद हिंदुत्व से बड़ा नहीं है।
बता दें कि महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव के बाद विधान परिषद चुनाव में भी भाजपा ने बड़ा उलटफेर किया। खास बात यह रही कि शिवसेना और कांग्रेस में जमकर क्रॉस वोटिंग हुई, जिससे भाजपा का पलड़ा भारी पड़ा और वह 10 में से पांच सीट जीतने में सफल रही। यानी 20 जून को विधान परिषद चुनाव में एक ओर भाजपा जहां तय से अधिक सीटें जीत रही थी, उसी समय राज्य के सड़क तथा सार्वजनिक निर्माण मंत्री एकनाथ शिंदे 33-35 शिवसेना विधायकों के साथ राज्य से बाहर चले गए।
अगले दिन यानी 21 जून की सुबह खबर आई कि शिंदे तथा उनके साथ के विधायक गुजरात के सूरत में एक होटल में हैं। वहां से उन्होंने मांग रखी कि उद्धव ठाकरे महाविकास अघाडी से नाता तोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बनाएं और हिंदुत्व का नारा बुलंद करें। जैसे-जैसे दिन बीतता गया, शिंदे के साथ शिवसेना विधायकों की संख्या बढ़ती गई।
शुरू में जहां मीडिया 17-20 विधायकों के शिंदे के साथ होने की बात कह रही थी, वहीं दोपहर बाद यह स्पष्ट हो गया कि उनके साथ कम से कम 33 विधायक हैं। इसके बाद उद्धव ठाकरे की ओर से उन्हें मनाने की कवायद शुरू हुई, जो नाकाम रही। कारण, महाविकास अघाड़ी के साथ गठबंधन तोड़ने को लेकर उद्धव ने एक शब्द नहीं कहा। इसी बीच, उद्धव के राजनीतिक सलाहकार मिलिंद नार्वेकर भी सूरत पहुंच गए। लेकिन उनकी तथा उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि की मध्यस्थता भी काम नहीं आई और शिंदे हिंदुत्व के मुद्दे पर अड़े रहे।
उद्धव और राउत की धमकी
एकनाथ शिंदे शिवसेना विधायक दल के नेता हैं। लेकिन बदले घटनाक्रम के बाद उद्धव के आवास पर एक बैठक हुई, जिसमें शिंदे की जगह विधायक अजय चौधरी को विधायक दल का नेता बनाने का फैसला लिया गया। साथ ही, चौधरी की नियुक्ति के लिए विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल को पत्र सौंपा गया। दूसरी ओर, इस बात का पता चलते ही शिंदे समर्थक विधायकों ने पार्टी के अधिकृत लेटर हेड पर विधानसभा उपाध्यक्ष तथा राज्यपाल को पत्र लिखा कि एकनाथ शिंदे ही शिवसेना विधायक दल के नेता हैं। इस पत्र पर 35 विधायकों के हस्ताक्षर थे। इसके बाद उद्धव ठाकरे और संजय राउत की ओर से यह घोषणा की गई कि बागी विधायकों वापस लाने के लिए शिवसेना के कट्टर कार्यकर्ताओं को सूरत भेजा जाएगा। तब बागी विधायकों ने तत्काल गुवाहाटी जाने का फैसला किया। रात को विमान से निकलते समय शिवसेना के बागी विधायकों की संख्या 38 हो गई थी।
आज पार्टी ही नहीं, सरकार भी खतरे में है, तब भी ठाकरे परिवार हिंदुत्व को नकार रहा है और शरद पवार का गुणगान कर रहा है। यह स्थिति तब है, जब उद्धव ठाकरे के पास केवल 13 विधायक ही बचे हैं। एकनाथ शिंदे ने पार्टी के चुनाव चिह्न पर भी दावा ठोक दिया है। लिहाजा, यह लड़ाई लंबी खिंचती नजर आ रही है।
गुवाहाटी पहुंचने के बाद शिंदे ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलने का समय मांगा, लेकिन वे कोरोना संक्रमित हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। तब शिंदे समर्थक विधायकों ने बैठक कर एक बार फिर उद्धव के समक्ष शिवसेना को फिर से हिंदुत्व की चौखट पर लाने की मांग रखी। इसी बैठक में शिंदे को विधायक दल का नेता बनाए रखने का प्रस्ताव भी पारित किया गया। इसी बीच, विधानसभा उपाध्यक्ष ने 23 जून को बागी विधायक एकनाथ शिंदे की जगह अजय चौधरी को सदन में शिवसेना का विधायक दल का नेता बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
शिंदे के पाले में 49 विधायक
इधर, मुंबई में फेसबुक लाइव होते हुए उद्धव ठाकरे ने घोषणा की कि वह त्यागपत्र नहीं देंगे। हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि शिवसेना के अधिकांश विधायक उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर देखना नहीं चाहते हैं। लेकिन इस दौरान उन्होंने हिंदुत्व पर कोई बात नहीं की, उल्टे शिवसेना विधायकों के आरोपों की अनदेखी करते हुए शरद पवार और सोनिया गांधी का गुणगान किया।
उद्धव के फेसबुक लाइव के बाद शिवसेना के पांच और विधायक गुवाहाटी पहुंच गए और एकनाथ शिंदे को समर्थन की घोषणा की। यानी शिंदे के पाले में अब शिवसेना के 42 विधायकों के अलावा 7 निर्दलीय विधायक भी आ गए हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। इस बीच, 23 जून को शिंदे ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने बहुमत के आधार पर शिवसेना के चुनाव चिह्न धनुष-बाण पर अपना अधिकार जताया है। विधायक ही नहीं, पार्षद भी उद्धव ठाकरे से दूर हो रहे हैं। मुंबई महानगर पालिका के कम से कम 25-30 पार्षद भी एकनाथ शिंदे के पाले में जाने को तैयार हैं।
नाराजगी के कई कारण
बागी विधायकों की नाराजगी के कई कारण हैं। इनमें एक मुद्दा पार्टी नेताओं की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तक सीमित पहुंच भी है। कहा जाता है कि विधायक और मंत्री भी आसानी से उद्धव से मिल नहीं पाते हैं। इसका कारण उद्धव के करीबी और पार्टी के राजनीतिक सलाहकार मिलिंद नार्वेकर को माना जाता है। केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने भी आरोप लगाया था कि नार्वेकर न तो उनका फोन उठाते हैं और न ही उद्धव तक उनकी बात पहुंचाते हैं। वे पार्टी के सलाहकार हैं, लेकिन पार्टी नेताओं, विधायकों, कार्यकर्ताओं और उद्धव ठाकरे के बीच खाई पैदा कर रहे हैं। यही नहीं, राज ठाकरे ने भी शिवसेना नेतृत्व के साथ तनातनी के लिए नार्वेकर को ही जिम्मेदार ठहराया था।
दूसरा, ठाकरे परिवार का हिंदुत्व छोड़कर सेकुलर बनना भी शिवसेना विधायकों और शिवसैनिकों के गले नहीं उतर रहा है। जिस राकांपा और कांग्रेस का जीवन भर विरोध किया, उन्हीं के साथ सरकार बनाना भी शिवसेना कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहा। इसके अलावा भी नाराजगी की कई वजहें हैं। बीते दो वर्ष से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं, लेकिन शिवसेना विधायकों का एक भी काम नहीं हुआ।
शिवसेना विधायकों से जुड़े संगठनों के बजाय राकांपा को सरकारी निधि और योजनाओं का लाभ दिया जाता रहा है। उद्धव राकांपा के भ्रष्ट मंत्रियों से घिरे हैं और जेल में होने के बावजूद नवाब मलिक को मंत्रिमंडल में बनाए रखना, पार्टी विधायकों से दूरी तथा आदित्य ठाकरे, संजय राउत और मिलिंद नार्वेकर द्वारा बार-बार उन्हें अपमानित करने से पार्टी में नाराजगी बढ़ती गई। आज पार्टी ही नहीं, सरकार भी खतरे में है, तब भी ठाकरे परिवार हिंदुत्व को नकार रहा है और शरद पवार का गुणगान कर रहा है। यह स्थिति तब है, जब उद्धव ठाकरे के पास केवल 13 विधायक ही बचे हैं। एकनाथ शिंदे ने पार्टी के चुनाव चिह्न पर भी दावा ठोक दिया है। लिहाजा, यह लड़ाई लंबी खिंचती नजर आ रही है।
कुल मिलकर महाराष्ट्र की महाविकास अघाडी सरकार अल्पमत में आ चुकी है। वहीं, इस पूरे घटनाक्रम से भाजपा ने दूरी बनाए रखते हुए कहा है कि यह शिवसेना का आंतरिक मामला है।
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