आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित महाकाली मंदिर के विकसित स्वरूप का उद्घाटन किया। इसके साथ ही इस मंदिर के शिखर पर 500 वर्ष बाद पताका फहराई गई।
यह समय भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का है। पहले श्रीराम मंदिर बनने का काम शुरू हुआ। फिर काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर को भव्य रूप दिया गया। अब गुजरात स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ महाकाली मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ है। मंदिर के इस जीर्णोद्धार स्वरूप का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज किया। उन्होंने पारंपरिक लाल ध्वज भी फहराया।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज गुजरात के तीर्थों में दिव्यता है, भव्यता है, शांति है और समाधान भी है। गुजरात पर शक्ति का आशीर्वाद है। तीर्थों और मंदिरों में आने वाले श्रद्धालु कई तरह के अवसर भी लाते हैं। उन्होंने पावागढ़ मंदिर के संदर्भ में कहा कि पुराने जमाने में कहा जाता था कि पहले कभी कोई शादी हुआ करती थी तो यहां निमंत्रण सबसे पहले दिया जाता था और मंदिर के पुजारी दिनभर में आए हुए सभी निमंत्रण कार्डों को पढ़कर मां को सुनाया करते थे। निमंत्रण भेजने वालों को इस मंदिर से उपहार भी भेजा जाता था। उन्होंने कहा कि इस मंदिर को इतना भव्य स्वरूप देने के बाद भी मंदिर के गर्भगृह को अक्षुण्ण रखा गया है। मंदिर में यज्ञशाला, भोजनशाला पर्यटकों के लिए निवास आदि की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि
पहले इस मंदिर में दो दर्जन लोग भी नहीं पहुंच पाते थे। आज 100 से भी अधिक लोग आकर आराम से दर्शन कर सकते हैं। मंदिर के अंदर सुरक्षात्मक कदम उठाए गए हैं ताकि भीड़ में कोई हादसा न हो जाए।
उन्होंने कहा कि गुजरात में अलग-अलग क्षेत्रों में शक्ति चक्र के रूप में माताएं हैं, जो गुजरात की रक्षा करती हैं। पूरे गुजरात को शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है। उन्होंने कहा कि पावागढ़ एक तरह से सर्वधर्म समभाव का केंद्र रहा है। यहां पर माता काली का मंदिर है, तो जैन तीर्थ भी है।
महमूद बेगड़ा ने तोड़ा था मंदिर का शिखर
उल्लेखनीय है कि यह मंदिर चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्विक पार्क का हिस्सा है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर माना है। बतायश जाता है कि इस मंदिर की भव्यता की कथा दूर—दूर तक फैली हुई थी। इस कारण यह मंदिर मुसलमान शासकों की नजरों में था। यही कारण है कि 500 वर्ष पहले सुल्तान महमूद बेगड़ा ने इस मंदिर के शिखर को तोड़ दिया था। स्वामिनारायण मंदिर वडताल, गुजरात के महंतश्री स्वामी वल्लभदास जी महाराज ने बताया कि उन दिनों महमूद चंपानेर पर आक्रमण कर रहा था। उसी दौरान उसने हिंदुओं के मनोबल को तोड़ने के लिए मंदिर पर हमला कर दिया। उसे मंदिर के शिखर पर लहरा रही पताका बिल्कुल पसंद नहीं थी। इसलिए उसने मंदिर के शिखर को ही तोड़ दिया। इसके बाद से मंदिर का शिखर कभी नहीं बना।
अब सरकार की पहल पर मंदिर का शिखर फिर से बन गया है। इसके लिए 125 करोड़ रु खर्च किए गए हैं। इनमें से 15 करोड़ रु मंदिर न्यास ने दिए हैं। मंदिर का परिसर लगभग 30,000 फीट में है। मंदिर को भव्य रूप देने से पहले वहां स्थित सदनशाह की दरगाह को दूसरी जगह स्थानान्तरित किया गया। स्वामी वल्लभदास का मानना है कि पावागढ़ मंदिर का जीर्णोद्धार कोई साधारण और छोटा कार्य नहीं है। यह हिंदू समाज के लिए श्रीराम मंदिर जैसा ही कार्य है।
मंदिर के व्यवस्थापक अशोक पंड्या ने बताया कि लोककथा है कि सदनशाह हिंदू थे और उनका असली नाम सहदेव जोशी था। उन्होंने सुल्तान महमूद बेगड़ा को प्रसन्न करने के लिए इस्लाम स्वीकार कर लिया था।
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